कविता:-
*"कनक"*
"कनक की खनक से ही साथी,
चलता नहीं जीवन-
इसमें खोना नहीं अपना मन।
आभूषण बन बने साथी,
बढ़े सौन्दर्य -
बने नारी तन का आकृषण।
कनक की भी खो जाती चमक,
जब संग उनका-
देता नही तन।
कनक की खनक से तो,
साथी बौराये जाता-
मानव का तन-मन।
पा जाये उसको साथी,
तब भी उसका-
व्याकुल रहता मन।
न पाये उसको तो भी,
पाने की चाहत में-
व्याकुल रहता मन।
कनक से तो कनक भली,
मिटाये तन की भूख-
न मिले साथी तन चुभे शूल।
कनक की खनक से साथी,
न बौराये मन-
जीवन रहे अनुकूल।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः
कविता:-
*"स्वागत"*
"स्वागत करे मिलकर, नव-वर्ष का-
हर पल हो हर्ष का।
भूल जाये कटुता जीवन में,
विगत की साथी-
स्वागत करे नव-वर्ष का।
कौन-अपना-बेगाना यहाँ,
भूले बस सोचे-
जीवन उत्कर्ष का।
सींचे स्नेंह से जीवन बगिया,
महके संबंधों की डोर-
हर पल हर्ष का।
आगत के स्वागत में साथी,
संग चले जो साथी-
अपनत्व रहे पूरे वर्ष का।
स्वागत करे मिलकर ,
नव-वर्ष का-
हर पल हो हर्ष का।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
ःःःःःःःःःःःःःःःःः
कविता:-
*"प्रतीक्षा"*
"यूँही जीवन में साथी तुम,
कब-तक -
करते रहोगे प्रतीक्षा।
अन्याय के विरूद्ध साथी,
लड़ने कोई आयेगा-
लेकर अवतार करते रहो प्रतीक्षा।
जीवन में तुम्हारी आकर साथी,
कोई नहीं करेगा रक्षा-
करते रहो प्रतीक्षा।
पल-पल अपमानित होने से अच्छा,
करो विद्रोह अन्याय के विरूद्ध-
तभी होगी रक्षा।
अन्यथा सहते रहो अन्याय,
जीवन में-
करते रहो प्रतीक्षा।।
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
ःःःःःःःःःःःःःःःःः
कविता:-
*"सरहद"*
"साथी ख्वाबों को अब तुम,
किसी -भी सरहद मे न बाँधों-
कुछ पूरे होने की आस हैं- बाकी।
चलना है संग तुम्हारे साथी,
बहुत दूर-
कुछ यादें भी हैं अभी बाकी।
मंज़िल तो मिल जायेगी,
कभी न कभी-
जिंदगी का सफ़र हैं-बाकी।
साथी साथी बन संग चलते,
अभी ख्वाबों की -
उड़ान हैं-बाकी।
मंज़िले मिलती रहेगी साथी,
अभी जिंदगी की-
ख्वाहिशे हैं-बाकी।
साथी ख्वाबों को अब तुम,
किसी -भी सरहद में न बाँधों-
कुछ पूरे होने की आस हैं-बाकी।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः
कविता:-
*"निशान"*
"निशान बाकी रह गये ,
जहाँ से गुज़रे थे-
साथी तुम।
उन पद-चिन्हो पर चल कर ही,
लोग मिलते रहे-
अकेले न रहे तुम।
कितने -मिले बिछुड़े साथी,
कितने-चले संग-
कहाँ-जान पाये तुम?
कुछ तो तुममें हैं साथी,
जो चले साथी संग-
दुनियाँ देखकर रह गई दंग।
सत्य-पथ पर चले थे अकेले,
साथी मिलते गये-
अपनत्व का चढ़ता रहा रंग।
निशान बाकी रह गये,
जहाँ से गुज़रे थे-
साथी तुम।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः
कविता:-
*"सत्य"*
"कुछ भी हो जीवन में साथी,
सत्य तो सत्य-
इसे मानना होगा।
सत्य को जीवन में साथी,
हमें पग पग-
पहचानना होगा।
सत्यानुभूति संग जीवन साथी,
जग में-
जीवन गुजारना होगा।
जीवन की सोच -चिंतन,
कैसी- भी हो साथी-
सत्य को अपनाना होगा।
तभी तो जीवन मे साथी,
सत्य संग-
मानवता का वास होगा।
नैतिकता और आदर्शो का,
तब इस जीवन में-
साथी निवास होगा।
कुछ भी हो जीवन में साथी,
सत्य तो सत्य-
इसे मानना होगा।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
S/0श्री बी.आर.गुप्ता
3/1355-सी,न्यू भगत सिंह कालोनी,
बाजोरिया मार्ग, सहारनपुर-247001(उ.प्र.)
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