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Tuesday, January 7, 2020

कविता:-

कविता:-

      *"कनक"*

"कनक की खनक से ही साथी,

चलता नहीं जीवन-

इसमें खोना नहीं अपना मन।

आभूषण बन बने साथी,

बढ़े सौन्दर्य -

बने नारी तन का आकृषण।

कनक की भी खो जाती चमक,

जब संग उनका-

देता नही तन।

कनक की खनक से तो,

साथी बौराये जाता-

मानव का तन-मन।

पा जाये उसको साथी,

तब भी  उसका-

व्याकुल रहता मन।

न पाये उसको तो भी,

पाने की चाहत में-

व्याकुल रहता मन।

कनक से तो कनक भली,

मिटाये तन की भूख-

न मिले साथी  तन चुभे शूल।

कनक की खनक से साथी,

न बौराये मन-

जीवन रहे अनुकूल।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः     

 

कविता:-

      *"स्वागत"*

"स्वागत करे मिलकर, नव-वर्ष का-

हर पल हो हर्ष का।

भूल जाये कटुता जीवन में,

विगत की साथी-

स्वागत करे नव-वर्ष का।

कौन-अपना-बेगाना यहाँ,

भूले बस सोचे-

जीवन उत्कर्ष का।

सींचे स्नेंह से जीवन बगिया,

महके संबंधों की डोर-

हर पल हर्ष का।

आगत के स्वागत में साथी,

संग चले जो साथी-

अपनत्व रहे पूरे वर्ष का।

स्वागत करे मिलकर ,

नव-वर्ष का-

हर पल हो हर्ष का।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःः          सुनील कुमार गुप्ता


ःःःःःःःःःःःःःःःःः       

 

कविता:-

         *"प्रतीक्षा"*

"यूँही जीवन में साथी तुम,

कब-तक -

करते रहोगे प्रतीक्षा।

अन्याय के विरूद्ध साथी,

लड़ने कोई आयेगा-

लेकर अवतार करते रहो प्रतीक्षा।

जीवन में तुम्हारी आकर साथी,

कोई नहीं करेगा रक्षा-

करते रहो प्रतीक्षा।

पल-पल अपमानित होने से अच्छा,

करो विद्रोह अन्याय के विरूद्ध-

तभी होगी रक्षा।

अन्यथा सहते रहो अन्याय,

जीवन में-

करते रहो प्रतीक्षा।।

ःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता


ःःःःःःःःःःःःःःःःः          

 

कविता:-

     *"सरहद"*

"साथी ख्वाबों को अब तुम,

किसी -भी सरहद मे न बाँधों-

कुछ  पूरे होने की आस हैं- बाकी।

चलना है संग तुम्हारे साथी,

बहुत दूर-

कुछ यादें भी हैं अभी बाकी।

मंज़िल तो मिल जायेगी,

कभी न कभी-

जिंदगी का सफ़र हैं-बाकी।

साथी साथी बन संग चलते,

अभी ख्वाबों की -

उड़ान हैं-बाकी।

मंज़िले मिलती रहेगी साथी,

अभी जिंदगी की-

ख्वाहिशे हैं-बाकी।

साथी ख्वाबों को अब तुम,

किसी -भी सरहद में न बाँधों-

कुछ पूरे होने की आस हैं-बाकी।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः       

 

कविता:-

        *"निशान"*

"निशान बाकी रह गये ,

जहाँ से गुज़रे थे-

साथी तुम।

उन पद-चिन्हो पर चल कर ही,

लोग मिलते रहे-

अकेले न रहे तुम।

कितने -मिले बिछुड़े साथी,

कितने-चले संग-

कहाँ-जान पाये तुम?

कुछ तो तुममें हैं साथी,

जो चले साथी संग-

दुनियाँ देखकर रह गई दंग।

सत्य-पथ पर चले थे अकेले,

साथी मिलते गये-

अपनत्व का चढ़ता रहा रंग।

निशान बाकी रह गये,

जहाँ से गुज़रे थे-

साथी तुम।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         सुनील कुमार गुप्ता


ःःःःःःःःःःःःःःःःःः      

 

कविता:-

        *"सत्य"*

"कुछ भी हो जीवन में साथी,

सत्य तो सत्य-

इसे मानना होगा।

सत्य को जीवन में साथी,

हमें पग पग-

पहचानना होगा।

सत्यानुभूति संग जीवन साथी,

जग में-

जीवन गुजारना होगा।

जीवन की सोच -चिंतन,

कैसी- भी हो साथी-

सत्य को अपनाना होगा।

तभी तो जीवन मे साथी,

सत्य संग-

मानवता का वास होगा।

नैतिकता और आदर्शो का,

तब इस जीवन में-

साथी निवास होगा।

कुछ भी हो जीवन में साथी,

सत्य तो सत्य-

इसे मानना होगा।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःः           सुनील कुमार गुप्ता

S/0श्री बी.आर.गुप्ता

3/1355-सी,न्यू भगत सिंह कालोनी,

बाजोरिया मार्ग, सहारनपुर-247001(उ.प्र.)


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