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Wednesday, November 18, 2020

गलत और भ्रामक अनुवाद हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों पर पड़ रहा भारी






















भारतीय राजव्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में सरकार के अलावा जिन संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, उनमें चुनाव आयोग, उच्चतम न्यायालय आदि के साथ-साथ संघ लोक सेवा आयोग भी शामिल है। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) का प्रमुख कार्य सिविल सेवा में नियुक्ति संबंधी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को संपन्न कराना है।



कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अन्य संवैधानिक संस्थाओं के मुकाबले यूपीएससी विवादों से मुक्त रहा है, लेकिन पिछले कुछ वर्षो से यूपीएससी की परीक्षा पद्धति पर हिंदी माध्यम के परीक्षाíथयों द्वारा सवाल खड़े किए जा रहे हैं। यह परीक्षा हिंदी माध्यम के परीक्षाíथयों के लिए टेढ़ी खीर बनती जा रही है।


हिंदी अनुवाद को लेकर विवाद


दरअसल विभिन्न विषयों के प्रश्न-पत्र मूल रूप से अंग्रेजी में बनते हैं, फिर उनका हिंदी में अनुवाद किया जाता है। इन प्रश्नों के हिंदी अनुवाद को लेकर ही विवाद खड़ा हुआ है। पहले भी सामान्यतया प्रश्न-पत्र अंग्रेजी में ही बनते थे, फिर उनका हिंदी में अनुवाद होता था, लेकिन लगता है कि अनुवाद में अब तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल हो रहा है और इसीलिए गड़बड़ियां हो रही हैं।


अंग्रेजी की वाक्य रचना हिंदी से काफी अलग 


अनुवाद में तकनीक का उपयोग कई तरीकों से हो सकता है। एक तो मशीनी या कंप्यूटराइज्ड ट्रांसलेशन, जिसे गूगल ट्रांसलेशन भी कहते हैं। इसमें दिक्कत यह है कि इस अनुवाद में कई बार वाक्यों और शब्दों का सही अर्थ नहीं हो पाता। इसका कारण यह है कि अंग्रेजी की वाक्य रचना हिंदी से काफी अलग होती है।


अंग्रेजी वाक्यों के मशीनी ट्रांसलेशन में हिंदी में अर्थ कई बार स्पष्ट नहीं हो पाता






हिंदी की वाक्य रचना में कर्ता, कर्म और क्रिया का क्रम होता है (राम घर जाता है), जबकि अंग्रेजी में कर्ता, क्रिया और कर्म (राम गोज होम)। यह उदाहरण अत्यंत सरल और छोटे वाक्य का है, इसलिए इसे समझना कठिन नहीं, लेकिन जटिल और बड़े अंग्रेजी वाक्यों के मशीनी ट्रांसलेशन में हिंदी में अर्थ कई बार स्पष्ट नहीं हो पाता, जिसका खामियाजा हिंदी माध्यम के परीक्षार्थियों को भुगतान पड़ता है।


शब्दों के अर्थ का अनर्थ होने की आशंका 


मशीनी ट्रांसलेशन की दूसरी समस्या है कि शब्दों के अर्थ का अनर्थ होने की आशंका रहती है। इसका कारण यह है कि शब्दों के अर्थ अपनी संस्कृति और संदर्भ से भी निकलते हैं। उदाहरण के लिए कई बार अंग्रेजी के ‘बिग ब्रदर’ का अनुवाद ‘बड़ा भाई’ कर दिया जाता है।


 ‘बिग ब्रदर’ अंग्रेजी में नकारात्मक अर्थो में प्रयुक्त


समझना जरूरी है कि जॉर्ज ऑरवेल के प्रसिद्ध उपन्यास ‘1984’ से चर्चित; हुआ मुहावरा ‘बिग ब्रदर’ अंग्रेजी में नकारात्मक अर्थो में प्रयुक्त होता है, जहां इसका अर्थ है डराने-धमकाने वाला व्यक्ति या देश, जबकि इसके उलट भारत में बड़ा भाई का प्रयोग अत्यंत सकारात्मक अर्थो में होता है।


मशीनी या गूगल अनुवाद भ्रामक हो सकता है


भारतीय संदर्भो में बड़ा भाई संरक्षक और अभिभावक होता है। कहने का आशय यह है कि हिंदी या भारतीय भाषाओं में अनुवाद करते समय संदर्भ को ध्यान में न रखने से मशीनी या गूगल अनुवाद भ्रामक हो सकता है। इसी तरह का एक और उदाहरण है अंग्रेजी शब्द ‘हॉट पोटैटो’। इसका अर्थ होता है एक विवादास्पद विषय या असहज करने वाला विषय, लेकिन इसका गूगल ट्रांसलेशन ‘गर्म आलू’ मिलता है, जो कहीं से भी मूल अर्थ को संप्रेषित नहीं करता।


डिलीवरी शब्द का अनुवाद परिदान किया गया


अनुवाद में तकनीक के उपयोग से होने वाली गड़बड़ी का एक अन्य आयाम यह है कि यूपीएससी अथवा विभिन्न एजेंसियों के अनुवादक मानक शब्दकोशों जैसे कि गृह मंत्रलय के राजभाषा विभाग द्वारा जारी ई-महाशब्दकोश की जगह अन्य वेबसाइटों के आधार पर अनुवाद कर देते हैं। जैसे इसी साल सिविल सेवा के प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए एक प्रश्न में अंग्रेजी के डिलीवरी शब्द का अनुवाद परिदान किया गया है। राजभाषा विभाग द्वारा जारी ई-महाशब्दकोश के अनुसार इसका अर्थ वितरण या सुपुर्दगी है।



परिदान शब्द का अर्थ भी थोड़ा भ्रामक 


परिदान शब्द न केवल अप्रचलित है, बल्कि इसका अर्थ भी थोड़ा भ्रामक है। इसी तरह अंग्रेजी के सिनेरियो का अनुवाद दृश्यलेख कर दिया गया है, जो सही नहीं है। कुछ लोग तर्क दे सकते हैं कि अगर हिंदी अनुवाद गलत या भ्रामक है, तो परीक्षाíथयों को मूल अंग्रेजी पाठ देख लेना चाहिए, लेकिन प्रारंभिक परीक्षा में समय इतना कम होता है कि बार-बार हिंदी और अंग्रेजी, दोनों पाठों में मिलान करना मुमकिन नहीं।



अनुवाद में अर्थ का अनर्थ भी कर दिया जाता है


दुबरेध, अबोधगम्य और भ्रामक अनुवाद के अतिरिक्त कई बार अनुवाद में अर्थ का अनर्थ भी कर दिया जाता है। जैसे 2020 की ही प्रारंभिक परीक्षा में सिविल डिसओबेडिएंस मूवमेंट अर्थात सविनय अवज्ञा आंदोलन को असहयोग आंदोलन अनूदित कर दिया गया, जो नितांत गलत है। इन सबका दुष्परिणाम यह हो रहा है कि हिंदी माध्यम के परीक्षार्थी पिछड़ते जा रहे हैं। गलत और भ्रामक अनुवाद के कारण न केवल उनके उत्तर गलत हो जाते हैं, बल्कि भ्रामक अनूदित शब्दावलियों में उलझकर परीक्षा के दौरान उनका सीमित बहुमूल्य समय भी बर्बाद होता है।



गलत अनुवाद अवसर की समानता से भी वंचित करता है


जिस कठिन परीक्षा में एक-एक अंक के लिए संघर्ष होता हो, जहां एक-एक क्षण मूल्यवान हो, वहां जटिल, भ्रामक, दुबरेध और गलत अनुवाद हिंदी माध्यम के लोगों को अवसर की समानता से भी वंचित करता है। पिछले कुछ वर्षो से हिंदी माध्यम से सफल होने वाले उम्मीदवारों की संख्या में जो खासी गिरावट आई है, उसका एक बड़ा कारण इस तरह के अनुवाद भी हैं। यूपीएससी को समझना होगा कि अच्छे अनुवाद के लिए जरूरी है कि मशीनी अनुवाद का न्यूनतम सहारा लिया जाए।



अनुवादक को विषय का भी सम्यक ज्ञान हो


साथ ही अनुवाद के इस बुनियादी सिद्धांत को ध्यान में रखा जाए कि अनुवादक को न केवल दोनों भाषाओं अर्थात स्रोत भाषा (जिस भाषा से अनुवाद किया जा रहा है) और लक्ष्य भाषा (जिस भाषा में अनुवाद किया जा रहा है) का ठीक-ठाक ज्ञान हो, बल्कि विषय का भी सम्यक ज्ञान हो। भ्रामक अनुवाद से हिंदी माध्यम के परीक्षाíथयों के साथ अन्याय हो रहा है, जो परीक्षा के उद्देश्य के विपरीत है। भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी, यूपीएससी जैसी प्रोफेशनल संस्था से यह अपेक्षा तो की ही जा सकती है।


(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं) 














बाल कविता      *बचपन* 

बाल कविता

 

     *बचपन* 

बचपन के दिन 

कितने है हसीन । 

मजा नहीं आएं 

दोस्तों के बिन ।। 

नीर में ढूंढे रेत 

खेलते ऐसे खेल । 

कभी मिट्टी आएं 

कभी आएं रेत ।। 

नीर में देख छवि

 भरें किलकारी । 

घर बनाने की कर 

रहें नन्हे तैयारी ।।

 

    ✍️ गोपाल कौशल 

नागदा जिला धार मध्यप्रदेश 

कविता..  पीठ पर चांद.. 

कविता.. 

पीठ पर चांद.. 

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कल मैं चांद पर 

घूमने गया..... 

वहां की चांदनी में मैंनें 

झर-झर बहते चश्मे

का पानी पिया!! 

 

वहां का पानी बिल्कुल

साफ था. इतना साफ की 

नीचे

के साफ चिकने पत्थर

पानी में साफ तैरते देखे जा 

सकते थें!!

 

मैंनें चांद की चांदनी में तैरती

साफ हवा को  भी छूआ!! 

हवा, फेफड़ों में भर गई !! 

वो हवा धरती की जहरीली 

हवा  जैसी नहीं थी!! 

 

 

वहां के बागों में बहुत हरियाली

थी, मैनें बिखरी चांदनी के बीच

सेव के पेड़ को छूआ 

अहा, ठस- ठस लाल सेव थें

रस से भरे!!  खाकर, आत्मा

 तृप्त हो गई!!

 

फिर, चांद ने मुझसे पूछा- 

कि तुम बहुत दिनों के बाद 

यहां घूमने आये हो ?? 

 

मैनें हां में सिर हिलाया  !! 

 

फिर,  चांद ने जिद कि, की चलो 

मुझे भी ले चलो घरती पर घूमाने!! 

मैंनें बहुत मना किया, लेकिन चांद 

नहीं माना!! 

 

और, मैनें टांग लिया 

चांद को अपनी पीठ पर!! 

 

धरती, पर आने के बाद

चांद का दम फूलने लगा!! 

 

चांद ने देखा, नदियों का

 गंदा मटमैला पानी  !! 

 

चांद, को गंदा, पानी 

देखकर  ऊबकाई आने

 लगी  !! 

 

चांद ने चखा धरती पर 

का खाना और, थोडा़ सा

चखकर छोड़ दिया  पूरा 

का पूरा खाना!! 

 

चांद ने अनुनय किया कि अब मुझे

वापस मेरी घरती पर छोड़ आओ!! 

मेरा दम अब फूलने लगा है !! 

मैं यहां पर अब नहीं रह सकता!! 

 

मैनें टांग लिया फिर से चांद को 

अपनी पीठ पर , और पहुंचा आया 

चांद को,  उसकी धरती पर!! 

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महेश कुमार केशरी 

लघुकथा शीर्षक-छठ व्रत

लघुकथा

 

शीर्षक-छठ व्रत

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पूरा बाज़ार छठमय लग रहा था|सूप ,फल ,छठ पूजा के सामान से गुलज़ार था |’

लौकी कैसे दिए बाबू?

मलकिनी ,’अस्सी रूपया ‘पीस|

क्या?तारा जी चौंक गई|

कुछ कम करो ,आदतन तारा जी ने ,कम कराना चाहा |

छोड़ो ले लो ,’यही तो समय है इनका कमाने का ...जीवन जी ,ने पत्नी को घूरते हुए कहा।

 

तारा जी ,बच्चों के आने से पहले सारी ख़रीददारी कर लेना चाह रही थीं ।जीवन जी ,रोज़ -रोज़ बाज़ार के चक्कर लगा कर परेशान थे ,पर बच्चों का मामला था तो चुपचाप तारा (श्रीमती )का पूरा साथ दे रहे थे|कपड़े भी ब्रैन्डेड ख़रीदे जा रहे थे बच्चों के पसंद का विशेष ख़्याल रखा जा रहा था।

 

प्रतिवर्ष बेटे और बहू छठ पर्व पर छुट्टी लेकर अवश्य आते |आज नहाय खाए है |छठ पर्व का पहला दिन -कद्दू भात ,इस दिन शुद्धता से बिना लहसुन प्याज़ वाले भोजन बनाया जाता है| ‘सुबह छोटा बेटा और बहू पुणे से आए ।शादी के बाद उनका पहला छठ पर्व है ,इसलिए दोनों विशेष उत्साहित हैं।बड़ा बेटा और बहू और छह साल का पोता दोपहर एक बजे आने वाले थे ,दिल्ली से |सब लोग मिलकर उन्हें लेने एयरपोर्ट गए।

तारा जी ,नहीं गई ।गेट पर इंतज़ार कर रही थी |गाड़ी से उतरते ही बड़ा बेटा जो पुलिस में आई जी है माँ को दण्डवत प्रणाम कर गले से लगा लिया |

 

इस बार तारा जी की तबीयत ठीक नहीं थी ,फिर भी छठ व्रत करने की और गंगा घाट पर जाने की ज़िद पर अड़ी थी|सारे बच्चे मिलकर बहुत समझाए कि -“व्रत नहीं रखना है |”बड़ी बहू ने कहा ‘मम्मी जी ,आप के बदले मैं छठ व्रत रखूँगी ‘और घर के आँगन में ही पानी की टंकी में गंगाजल डालकर पूजा करूँगी ‘|बहू और बच्चों के आगे तारा जी ने हथियार डाल दिये ।

शाम को दिनकर को अर्घ्य देते समय तारा जी के आँखों से ख़ुशी के दो अश्रु बूँद जल में टपक पड़े और प्रभु से कहा -“मुझे ऐसे संस्कारवान बच्चे छठी मइया के कृपा से ही तो मिले हैं |”पचास साल तक अपने मन से ज़िन्दगी जिया है अब समय है बच्चों की इच्छानुसार जीने की ,”जिसमें सुकून और अपनापन दोनों है।”

 

सुबह पूजा के लिएफूल तोड़ते वक्त तारा जी गर्व से अपने सुव्यवस्थित फूलों से भरे बगिया को सींचना  भूली साथ ही मधुर गीत गुनगुना रही थी ‘-“घोड़ा चढ़न के बेटा मांगीला गोड़वा लगन के पतोह हे !छठी माई...सुन ली विनती हमार|”...

 

सविता गुप्ता-राँची झारखंड

कविता.... पीठ पर बेटियां... 

कविता....

पीठ पर बेटियां... 

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काकी अक्सर कहा करतीं

कि बाप के पीठ पर बेटे ही 

होते हैं  और बेटे ही 

बनते हैं  बाप का सहारा!! 

 

बेटियां बाप के पीठ पर नहीं 

होतीं!! और, ना ही वो बाद 

में बनतीं हैं बाप का सहारा!!

 

कि, बहू मुझे अबकी बेटा ही

चाहिए!! इसलिए भी कि वंश

आगे चल सके !! 

 

और, थके- हारे, जले - भूने 

मर-मर के खेतों में काम 

करने वाले बाप का सहारा

आखिर  बेटे  ही तो बनेंगें !! 

 

बेटियां , फूल सी कोमल और 

सुकुमारी होतीं हैं, कहां - कहां

बाप के साथ खेतों में जलेंगीं !! 

फिर, बेटियां पराया धन 

भी  तो होती हैं!! 

 

वो, बाप के पीठ पर नहीं होतीं!! 

बाप की सीने में कील की तरह 

होतीं हैं..!!! 

 

कई देवी-थानों में परसादी

से लेकर, मुर्गा- मुर्गी, खस्सी-

पठरु गछती थीं काकी 

छुटकु के लिए!!  

 

कुछ, सालों बाद छुटकु आया!! 

काकी, नाचतीं- झूमतीं इतरातीं!! 

मां की बलैंयां लेतीं, 

मां को अशीषतीं

दूधो नहाओ पूतो -फलों!! 

यहां भी पूत ही फल रहें थें!! 

और, बेटियां हो रहीं थीं होम!!

 

बहुत सालों बाद जब, छुटकु

चला गया, परदेश, पढनें

और, दादी पडीं खूब बीमार!! 

 

इतना बीमार, कि अपने से उठ

भी ना पातीं थीं !! 

 

और अस्पताल था गांव से कोसों

 दूर  !!

तब,  मैनें, अपनी पीठ पर 

टांग कर पहुंचाया था 

उनको अस्पताल!!

 

जब, काकी  ठीक हो गईं 

तो, काकी मुझे अशीषतीं!!

 

आंखों से झरते आंसूं

पोछतीं जातीं.. !! 

पश्चाताप के आंसू आंखों से

मोतियों की तरह झरते जाते!! 

 

इस, बात का अफसोस

काकी को आजीवन रहा!! 

कभी- कभी आत्मग्लानि से

भरकर मेरे बालों में हाथ 

फेरतीं!!

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महेश कुमार केशरी

Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal May - 2024 Issue