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Sunday, January 12, 2020

परंपरा और आधुनिकता

परंपरा और आधुनिकता
  वर्षा लांजेवार


43, 'अर्हत',पंचशील नगर, बीएमवाय,चरोदा,दुर्ग, छत्तीसगढ़


 परंपरा और आधुनिकता परस्पर विपरीत प्रदर्शित होते हैं पर ये भिन्न होते हुए भी पृथक नहीं है। वे 'एक-दूसरे के पूरक जरूर हैं और एक-दूसरे को पर्याप्त प्रभावित भी करते हैं। परंपरा जहॉं किसी समाज या देश को समृद्ध बनाती है, वहीं आधुनिकता उसे गतिशीलता प्रदान करती है। आधुनिकता हमें पर देती है, उडऩे को, तो परंपरा हमें जमीन से जोड़े रखती है। इस प्रकार परंपरा और आधुनिकता में सामंजस्य अतीत के गौरव को बनाए रखने के साथ-साथ समाज को उन्नति व समृद्धि की ओर अग्रसर करता है।
परंपरा - परम्+अपरा = परंपरा पूर्व और ऊपर 
 चलति एकेन पादेन, तिष्ठति एके बुद्विमान - हजारी प्रसाद द्विवेदी
अर्थात् बुद्विमान वह होता है, जो एक पॉंव से खड़ा रहता है और एक पॉंव से चलता है। यही बात मनुष्य, समाज और उसके विकास के साथ लागू होती है। परंपरा अर्थात् जो काल के दौरान एक-से दूसरे हाथों से होती हुई आज तक चली आई है। परंपरा की रचना मनुष्य, समाज, जाति के इतिहास से होती है, उसके अतीत से होती है। परंपरा एक श्रृंखला है, कल को आज से जोडऩे वाली श्रृंखला। बदलते परिवेश और नई आवश्यकताओं के दबाव के कारण परंपराएॅं अपना अनुकूलन करती हैं। कुछ त्यागे जाते हैं, जो अनुपयोगी हो चुके हैं और कुछ अपनाए जाते हैं, जिसका कारण नई संस्कृतियों के साथ अंतक्रिया होता है।
 किसी देश, समाज के साहित्य के निर्माण में उसके परंपरा का बहुत योगदान होता है, क्योंकी वह परंपरा के द्वारा अपने अतीत के सैकड़ों या हजारों वर्षों की वह संपदा परंपरा से प्राप्त करता है। जिसकी जितनी समृद्ध परंपरा होती वह जाति, समाज, प्रदेश उतना ही अंदर से समृद्ध परंपरा होगा। उदाहरणत: अमेरिका का इतिहास केवल 400 वर्ष पुराना है इसलिए उनके पास परंपरा के नाम पर अपना ज्यादा कुछ नहीं है वह ज्यादा से ज्यादा ब्रिटेन से जोड़ सकते हैं जबकि भारत, चीन, मिश्र आदि के पास परंपरा का समृद्ध संसार है। इस तरह परंपरा अतीत का वह रचनात्मक हिस्सा है, जो सदियों की यात्रा में हम तक पहॅुचा है, जिसका हमारे साथ होना हमें समृद्ध बनाता है।
पूरा इतिहास, पूरा अतीत ही परंपरा नहीं होती है, क्योंकी वह बहुत व्यापक होती है, सारा कुछ को एक साथ नहीं संभाला जा सकता इसलिए हमें कुछ को छोड़ कर महत्वपूणज़् को ही संभालना पड़ता है। परंपरा और रूढि़ में बारिक अंतर है। जब परंपरा में अंतरनिहित आयाम खो जाता है, तब वह रूढि़ में बन जाती है। इसी तरह जाने-अनजाने जब समाज आत्मकेन्द्रित व्याख्या से रूढि़ को विधान बना लेता है, तब वह रूढि़ होने पर भी परंपरा की तरह ढोई जाती है। रूढि़ परंपरा का जड़ अंग है। उदाहरण स्वरूप जाति-प्रथा प्रारंभ में श्रम का विभाजन व व्यवसाय से था, न कि ऊॅंच-नीच से था। कालांतर में जब काम छोटे और बड़े समझे जाने लगे, तब ऊॅंच-नीच की भावना आती चजी गई और जाति की व्यवस्था रूढि़ बन गई। परंपराएॅं अतीत को वतज़्मान और वतज़्मान को भविष्य से जोड़ती है। मनुष्य के अस्तित्व की व्याप्ति जहॉं तक है, वहॉं तक उसे परंपरा प्रभावित करते हैं।
आधुनिकता - संस्कृत का अधुना शब्द की आगे चलकर आधुनिकता में बदल गया है। आधुनिकता का अर्थ है समकालीनता। यह वर्तमान के झरोखे से अतीत को निहारने और भविष्य को संवारने का विवकेशील रवैया है। आधुनिकता एक सापेक्ष अवधारणा है। पुराने की तुलना में जब व्यापक रूप से कुछ नया आता हुआ बदलाव लाता है, तो पुराने की तुलना में वह आधुनिक होता है। उदाहरणत: प्रस्तर-युग के बाद जब लौह-युग आया होगा, जब कृषि -सभ्यता का विकास हुआ होगा, तब वह अपने पूर्व की तुलना में विकसित, नया ओर क्रांतिकारी स्वरूप के कारण आधुनिक था किंतु यह जरूरी नहीं कि केवल काल-भेद से ही कोई आधुनिक या पुरातन समझा जाए। कालिदास ने कहा है कि- पुरानम् इत्येव न साधु सर्वम, नवीनम् अपि एव न अन्यथा अर्थात् पुराना सब कुछ अच्छा हो तथा नया सब कुछ बुरा हो यह आवश्यक नहीं। उदाहरणत: मनुष्यता और समाज के प्रति कबीर का दृष्टिकोण तब भी आधुनिक था और अब भी आधुनिकतम् है, जबकि काल की दृष्टि से आधुनिक कहे जाने पर भी आज घोर पुरातन-पंथी और प्रतिगामी प्रवृत्तियॉं और सोच आज के युग में हमें दिखाई पड़ सकती है।
 आधुनिकता में विचारों की सावज़्भौमिकता है। यह जातीयता, राष्ट्रीयता, वर्ग, विचारधारा, धर्म और परिवेश से परे है। यह मानव-जाति की एकता है। विरूद्धों की सामंजस्य है। आधुनिकता को सर्जनात्मक-ध्वंस के बिंब से समझा जा सकता है। पुराने का ध्वंस किए बगैर नए विश्व का सृजन कैसे संभव है ? आधुनिकता एक वैश्विक प्रक्रिया है। आधुनिकता युग ज्ञान-विज्ञान का युग है। मानव तर्कसंगत हो चुका है तथा प्रत्येक तथ्यों पर तार्किक विचार करता है। सामाजिक, आर्थिक, धामिज़्क सभी परिस्थितियो को आधुनिकता ने प्रभावित किया है। पाप-पुण्य, धर्म-अधर्म की कसौटियों में बदलाव आ गया है, प्राचीन मूल्यों में विघटन हो गया है। युवा-वर्ग फैशन की होड़ में पाश्चात्य-संस्कृति की नकल कर रहा है, किंतु न तो वह पूर्णत: प्राचीन-मूल्यों को छोड़ पाता है न नए मूल्यों को अपना पाता है। इस प्रकार वह बाहरी रूप से तो आधुनिक हो गया है, किंतु उसका अंतर्मन अब भी आधुनिकता से परे है।
परंपरा और आधुनिकता में संबंध - परंपरा और आधुनिकता में अविछिन्न संबंध है। दोनों ही गतिशील प्रक्रियाएॅं है। दोनों में अंतर केवल यह है कि परंपरा यात्रा के बीच पड़ा हुआ अंतिम चरण है, जबकि आधुनिकता आगे बढ़ा हुआ गतिशील हर कदम है। हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में- कोई भी आधुनिक विचार आसमान में नहीं पैदा होता है। सबकी जड़ परंपरा में गहराई तक गई हुई है। सुंदर-से-सुंदर फूल यह दावा नहीं कर सकता कि वह पेड़ से भिन्न होने के कारण उससे एकदम अलग है। इसी प्रकार कोई भी आधुनिक विचार यह दावा नहीं कर सकता कि वह परंपरा से कटा हुआ है।
आधुनिकता की प्रक्रियाओं पर हुए अनुसंधान से भी ऐसे तथ्य सामने आए हैं, जो विकास की अवधारण के कई आधार-वाक्यों का खंडन करते हैं। उदाहरण स्वरूप अध्ययनों से कई परंपराओं में आधुनिक तत्वों की उपस्थिति का पता चला है। ऐसे अध्ययन हैं जो यह प्रदर्शित करते हैं कि किस तरह परंपरा का सफल प्रयोग विकास को बढ़ावा देने में किया जा सकता है। लोकमत के विपरीत आधुनिक जन-संचार माध्यमों तक ने परंपरागत मिथकों तथा मूल्यों के पुनर्वलन में सहायता प्रदान की है। वीडियो और टेलीविजन संचार-वाणिज्य और समाजों की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के शक्तिशाली उपकरण बन गए हैं। उदाहरणत: दो हिंदु पौराणिक महाकाव्यों रामायण और महाभारत पर टेलीविजन धारावाहिक बनाए गए, जिसने दो वर्ष से भी अधिक समय तक दर्शकों को सम्मोहित किया। पौराणिक साहित्य में वणिज़्त वे चमत्कारिक घटनाएॅं, जो पहले पवित्र ग्रंथों के पाठकों को कल्पना की उड़ान के रूप में अविश्वसनीय प्रतीत होती थी, उन्हें नई प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्रदर्शित करना संभव हुआ तथा इस तरह इसने कहानी को विश्वसनीयता प्रदान की। एक परिवर्तनशीलता समाज में परंपरा और आधुनिकता का सहअस्तित्व होता है। एक जीवंत संस्कृति अपने तरीके से नवागतों की जॉंच-पड़ताल करती है, चाहे वे बाहर से लाए गए हों अथवा भीतर से अविष्कृत। कोई संस्कृति अपनी अनम्य नहीं होती कि वह न बदलने के लिए कटिबद्ध हो तथा साथ ही कोई भी संस्कृति इतनी विनीत नहीं होती  कि वह अपने को बाहरी प्रभाव की बाढ़ में पूरी तरह बह जाने दे। साहित्य पर आधुनिकता और परंपरा दोनों की छाप सदैव विद्यमान दिखाई देती है। हर युग का साहित्यकार जीवन के चित्रण में जहॉं संस्कृत और परंपरा के साथ प्रस्तुत होता है, वहीं उसकी सोच प्राय: रूढिय़ों का निषेध करता, पूरोगामी होता हैं।
निष्कर्ष :- परंपरा और आधुनिकता समान न होते हुए भी पूर्णत: भिन्न नहीं हैं, हां वे एक-दूसरे के सापेक्ष जरूर चलते हैं। परंपरा ही अपने में नए तत्वों का समावेश कर आधुनिकता बनती है तथा यही आधुनिकता बाद में परंपरा बन जाती हैं आधुनिकता में कुछ बुराइयॉ ंतो कुछ अच्छाईयॉं हैं, कभी केवल उदारवादी सोच की है। परंपराओं की अच्छी बातों को अपनाते हुए आधु्रनिक विचारों का समावेश ही हमें समृद्धि की ओर ले जाता है। विज्ञान के प्रभाव ने विश्व को एक ग्राम में बदल दिया है, तो इस विश्वग्राम में परंपरा को अपनाते हुए आधुनिक विचारों को शामिल करने से ही आज का युवा पूर्णत: आधुनिकता को प्राप्त कर सकता है।


संदर्भ सुची:- 
1. दुबे, श्यामानारायण. परंपरा इतिहास-बोध और संस्कृति. दिल्ली:  राधाकृष्ण प्रकाशन. 1995.19
2. कुमार, रश्मि. नई कविता के मिथक-काव्य. नई दिल्ली:वाणी   प्रकाशन. 200. 179.
3. पाठक, विनय कुमार. हिंदी साहित्य की वैचारिक पृष्ठभूमि.   दिल्ली:मित्तल एडं संस. 2005.18.
4. पाण्डे, राजेन्द्र. परंपरा का परिप्रेक्ष्य. दिल्ली: नवचेतन प्रकाशन.   2005.16:17.
5. शंभुनाथ. आधुनिकता की पुनज़्व्याख्या. नई दिल्ली:वाणी    प्रकाशन. 2002. 18,19,101,104,107.
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7. मदान, इंद्रनाथ. आधुनिकता और हिंदी साहित्य. 13-14.


 


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Aksharwarta International Research Journal, April 2024 Issue