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Tuesday, January 28, 2020

लिबरल शिक्षा की तरफ कुछ कदम


डॉ. मोनिका बाबेल
सहायक आचार्य, शिक्षा संकाय,
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर


प्रस्तावना
‘लिबरल कलाओं’ से आशय यह है कि हम विभिन्न कला क्षेत्रों को एक अधिक व्यापक नजरिये और अर्थ में देखें। यह विचार कि इंसानी सृजन के सभी क्षेत्रो) को कलाओं के रूप में ही देखा जाना चाहिए, भारतीय चिंतन की देन है। बीतें 2000 सालों में कई प्राचीन भारतीय पुस्तकें (जिसमें बाणभट्ट की कादम्बरी शामिल है जो लगभग 1400 साल पहले लिखी गयी थी और दुनियाँ के सबसे पहले उपन्यासों में जिसकी गिनती होती हैं) 64 कलाओं की विस्तार से व्याख्या करती हैं। इनमें बताया गया है कि सही मायनों में शिक्षित व्यक्ति वो है जो इन 64 कलाओं में पारंगत हो। इन 64 कलाओं में संगीत, नृत्य, पेंटिंग, मूर्तिकला, भाषाएं और साहित्य शामिल है। इनके अलावा इनमें विभिन्न विषय जैसे इंजीनियरिंग और गणित और व्यावसायिक विषय जैसे कारपेंट्री आदि भी शामिल है। आज जब हम ‘लिबरल कलाओं’ की बात करते हैं तो बहुत कुछ वेसा ही कहते हैं जैसा कि ऊपर कहा गया हैं समय के साथ इन कलाओं में बढ़ोतरी हुई, ललिताविस्तार सूत्र में ऐसी 86 कलाओं का जिक्र है, जबकि 13वीं शताब्दी में यसोधरा के जयमंगल में ऐसी  512 कलाओं का वर्णन मिलता है। जैसे-जैसे अलग-अलग विषयों जैसे कलाओं और विज्ञानों के बीच एकीकरण (पदजमहतंजपवद) बढ़ा वैसे-वैसे भारतीय साहित्य अधिक समृद्ध और परिपूर्ण हुआ। भरत मुनि (ईसा से 300 वर्ष पूर्व) का नाटयशास्त्र इस एकीकरण का बेहतरीन उदाहरण है जिसमें ना केवल संगीत और नृत्य पर गहरा चिंतन किया गया है बल्कि इनका गणित और भोतिकी के सिद्धांतों के साथ सूक्षम संबंधों पर भी विमर्श किया गया है। 
भारतीय विश्वविद्यालय जैसे तक्षशिला और नालंदा दुनियाँ के सबसे पुराने और बेहतरीन विश्वविद्य़ालय थे। इन सबस विश्वविद्यालयों ने ‘लिबरल कलाओं’ और ‘लिबरल शिक्षा’ परम्परा पर ही जोर दिया। दुनियाँ भर से विद्यार्थी व्याकारण, दर्शन, चिकित्सा, राजनीति, खगोलशास्त्र, गणित, वाणिज्य,संगीत, और अन्य कई विषयों का अध्ययन करने यहाँ आते थे। प्रसिद्ध दर्शशास्त्री और अर्थशास्त्री चाणक्य; संस्कृत व्याकरण-विशेषज्ञ, गणितज्ञ पाणिनि; राजनीतिज्ञ चन्द्रगुप्त मौर्य; और गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट आदि तमाम ऐसे लोग हैं जो इन विश्वविद्यालय में पढ़े थे।
 लिबरल कला शिक्षा का यह भारतीय विचार आज 21वीं शताब्दी में रोजगार के सन्दर्भ में भी काफी महत्वपूर्ण हो चला है, और इस तरह की लिबरल कला शिक्षा आज विश्व भर में खूब प्रचलित है।( उदाहरण के लिए अमेरिका में (प्अल समंहनम ैबीववस) यही समय है जब भारत अपनी इस महान परंपरा को फिर से इसका समुचित स्थान दिलाए।
आज लिबरल कला शिक्षा का महत्व और उद्देश्य इस बात में निहित है कि यह विद्यार्थियों को विज्ञान और मानविकी, गणित और कला, चिकित्सा और भौतिकी आदि के बीच महत्वपूर्ण रिश्तों को समझने और तमाम ज्ञान के क्षेत्रों में अंतर्निहित एकात्मकता के प्रति जागरूकता विकसित करने में काबिल बनाए।
एक लिबरल शिक्षा की सार्थकता इस बात में है कि वह एक इंसान में सभी काबिलयतों- बौद्धिक, सामाजिक, भावानात्मक, नैतिक, सौन्दर्यबोध, शारीरिक- को एक संतुलित और समन्वित रूप में विकसित करती हो। ऐसी शिक्षा जो लोगों में उनके व्यक्तित्व के हर आयाम को विकसित करने का प्रयास करती हो, एक अच्छा इंसान बनाने की कोशिश करती हो, वही शिक्षा सही अर्थों में एक लिबरल शिक्षा है।
हालांकि, कोई व्यक्ति यह पूछ ही सकता है कि, “मैं इन सब चीज़ों को क्यों सीखूं जिनका मेरे उस रोजगार या करियर से कोई संबंध नहीं जिसमें मैं भविष्य में जाना चाहता हूँ?” इस तरह के सवाल के कई जवाब दिए जा सकते है। पहला और शायद सबसे महत्वपूर्ण जवाब यह है कि लिबरल कला शिक्षा एक व्यक्ति के अंदर इंसानी जीवन को देखने और समझने के विभिन्न नज़रियों और सैद्धांतिक दृष्टिकोणों को विकसित करने में मदद करती है। इसके चलते व्यक्ति अपने और दूसरों के जीवन को बेहतर ढंग से और इसकी जटिलताओं को व्यापक अर्थों में समझ पाता है।
दूसरा, जिस तेजी से अर्थव्यवस्थाएँ बदल रही है, कौन जानता हैं कि हम भविष्य में किस तरह के काम कर रहे होंगे। और तो और हम यह भी नहीं कह सकते कि नौकरियों के वर्तमान स्वरुप भी ऐसे ही बने रहेंगे। जो काम और जिम्मेदारियाँ इनमें आज है वो कल भी वैसी ही रहेगी यह पक्का-पक्का नहीं कहा जा सकता। पत्रकार फरीद ज़कारिया ने सही कहा है कि लिबरल कला शिक्षा का उद्देश्य लोगों को केवल उनके पहले रोजगार के लिए तेयार करना भर नहीं है; बल्कि दूसरे, तीसरे, चौथे और आगे के कामों के लिए भी तैयार करती है। चौथी औद्योगिक क्रांति के आगाज़ के साथ, जहाँ रोजगार के स्वरूप और इनकी उपलब्धता की स्थिति तेजी से बदल रही है, लिबरल कला शिक्षा की प्रासंगिकता पहले से कई अधिक बढ़़ी है।
तीसरा,यदि कोई यह जानता भी है कि वह भविष्य में किस तरह के रोजगार में जाना चाहता है और हमेशा वही काम करते रहना चाहता है; फिर भी यह आज अंदाजा नहीं लगाया जा सकता कि दूसरे विषयों और क्षेत्रों में होने वाले सैद्धांतिक और तकनिकी विकास केसे हमारे काम को प्रभावित करेंगे। हो सकता है कि ये सभी बदलाव हमारे काम को भी बदल दे या इन्हें और बेहतर बनाए। दुनियँ भर में ऐसा हुआ है। और इस तरह के कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। जैसे आज (ग्.त्ंलण् ब्।ज् ैबंदेए डत्प्) चिकित्सा के कई में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं लेकिन वास्तव में इनका भौतिकिशास्त्रियों ने किया था कमाल की बात है कि वें इन चीज़ों का अध्ययन किसी दूसरे ही उद्देश्य के लिए कर रहे थे। रेडियोकार्बन डेटिंग एक दूसरा उदाहरण हैं यह तकनीक आज आर्कियोलोजी, एन्थ्रोपोलोजी और इतिहास में खूब प्रयोग होती है। जबकि इसका विकास केमिस्ट्री  और भौतिकी के क्षेत्रों में हुआ था। संगीत भी इसी तरह का एक उदाहरण हैं आज संगीत मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, इंजीनियरिंग, भौतिकी, और गणित जैसे क्षेत्रों में हुए विकसित तकनीको का खूब इस्तेमाल कर रहा है।
एक लिबरल कला शिक्षा व्यक्ति के दोनों आयामों- सृजनात्मक/कलात्मक और विश्लेषणात्मक-को विकसित करने में सक्षम बनाती हैं किसी भी व्यक्ति की सामाजिक, नैतिक और कलात्मक मूल्य और दक्षताएं मिलकर उसकी वैानिक दक्षताओं को बेहतर बनाती हैं और इससे प्रभावित होकर खुद भी बेहतर होती जाती है। इन सभी क्षेत्रों में यदि किसी व्यक्ति को शिक्षित किया जाता हैं तो यह इन सभी क्षेत्रों में उसकी दक्षताओं और रुझानों को विकसित करने में काफी मदद करेगा। इसके चलते उसकी सजनात्मकता, कुछ नया करने के प्रति रुझान, संवाद के कौशल, मूल्य, सामाजिक सरोकार, स्वतंत्र और तार्किक चिंतन, सहयोग का भाव आदि तमाम आयामों के विकास में मदद करेगा। औद्योगिक दुनियाँ में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जहाँ ऐसे टीम-सदस्य उपलब्ध थे जो अलग-अलग क्षेत्रों में एकसाथ रूचि रखते थे बल्कि खुद भी उनमें पारंगत थे। उदाहरण के लिए स्टीव जॉब्स इस बात के लिए खासे प्रसिद्ध है। उन्होंने बहुत खूबसूरती के साथ इंजीनियरिंग और कला को उपयोग किया और (डंबपदजवे ब्वउचनजमत) को दुनियाँ भर में बेहतरीन बनाया। वो खुद कहते हैं, “यदि (डंबपदजवे) दुनियाँ का बेहतरीन कम्प्यूटर बना तो यह इसलिए संभव हो पाया क्योंकि इसे बनानेवाले लोग एक तरफ तो संगीतज्ञ, कवि, कलाकार, जीवविज्ञानी, इतिहासकार थे और दूसरी ओर वे दुनियाँ के बेहतरीन कम्प्यूटर वैज्ञानिक भी थे।”
 अवलोकन यह बताते हैं कि जिन स्नातक कक्षाओं में मानविकी कला क्षेत्रों के साथ (ैज्म्ड) क्षेत्रों को समन्वित किया गया वहां विद्यार्थियों का बेहतर और सकारात्मक सीखना हुआ-यहाँ इनकी सृजनात्मकता, तार्किक चिंतन, हल ढूँढने की क्षमता, सहयोग का भाव टीम में काम करने की क्षमता, सामाजिक जागरुकता, शिक्षाक्रम के विभिन्न दायरों पर समान पकड़ सीखने में आनंद लेना आदि तमाम चीज़े हैं जो यहाँ बेहतर विकसित हुए। एक सर्वे के अनुसार यह पाया गया है कि नोबेल पुरूस्कार से सम्मिनत वैज्ञानिक एक आम वैज्ञानिक से तीन गुना ज्यादा कला में अभिरूचि रखते हैं।
भारत के अतीत में लिबरल शिक्षा को जिस तरह एक समग्रता और खूबसूरती के साथ परिभाषित किया गया है वह आज 21वी शताब्दी के आधुनिक युग में भी उतनी ही प्रासंगिक है। यहाँ तक कि (प्प्ज्) जैसे इंजीनियरिंग संस्थाओं को भी मानविकी और कला शिक्षा को विज्ञान और तकनीकी शिक्षा के साथ समन्वित करना चाहिए। वैसे भी भारत की कला और विज्ञान के क्षेत्र में अपनी एक समृद्ध विरासत रही हैं इसलिए लिबरल शिक्षा की ओर जाना इसका एक स्वाभाविक कदम ही कहलायेगा।
उदार शिक्षा मध्ययुग के उदार कलाओं की संकल्पना पर आधारित शिक्षा को कहते है। वर्तमान समय में ज्ञान युग (।हम वि म्दसपुजमउमदज) के उदारतावाद पर आधारित शिक्षा के उदार शिक्षा कहते हैं। वस्तुतः उदार शिक्षा शिक्षा का दर्शन है जो व्यक्ति को विस्तृत ज्ञान प्रदान करती है तथा इसके साथ मूल्य, आचरण, नागरिक दायित्वों का निर्वहन आदि सिखाती है। उदार शिक्षा प्रायः वैश्विक एवं बहुलतावादी दृष्टिकोण देती है।
उदार शिक्षा विशेषताएँ
 यह जिम्मेदार नागरिक बनाती है।
 यह सामान्य शिक्षा का आधार बनाती है।
 यह सच और झूठ में अन्तर करने की क्षमता को पोषित करती है।
 जिसका महत्व दिया जाता है उसे मापने में विद्यार्थी की सहायता करती है। लेकिन जिसे महत्व दिया जा रहा है उसका सब कुछ मापा नहीं जा सकता।
 यह जानकारी के रूप में उदार हैं
 यह तकनीक और दृष्टि में निर्देश और अनुाव प्रस्तुत करती हैं
 इससे विद्यार्थी में पहल करने, समस्या समाधान करने व विचार विकसित करने का आत्मविश्वास आता है।
 इससे विद्यार्थी में भाषा, अधिगम, नेतृत्व के कौशल विकसित होते है।
 इससे विद्यार्थी देशी व विदेशी संस्कृति, इतिहास, गणित, विज्ञान व तकनीकों के बारे में सीखते है।
 वस्तुत उदार शिक्षा शिक्षा का दर्श है जो व्यकित को विस्तृत ज्ञान प्रदान करती है। तथा इसके साथ मूल्य, आचरण, नागरिक दायित्वों का निर्वहन आदि सिखाती है। उदार शिक्षा प्रायः वैश्विक एवं बहुतावादी दृष्टिकोण देती है।
लिबरल आर्टस एजुकेशन देने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो? 
भारत में लिबरल आर्टस शिक्षा बढ़े और हमारें युवा 21वी शताब्दी की चुनौतियों का सामना करने के लिए समुचित रूप से तैयार हों इसके लिए हमें कुछ आवश्यक कदम उठाने होंगेः
बहु-अनुशासनिक माहौल और संस्थानः
जैसा कि हमने देखा कि एक अच्छी लिबरल शिक्षा की प्रकृति ही यह है कि इसमें बहु-अनुशासनिकता पर जोर रहता है। इसलिए यदि हम चाहते हैं कि लिबरल शिक्षा का प्रसार हो यह फले-फूलें तो हमारी उच्च शिक्षा को बहु-अनुशासनिकता की ओर जाना ही होगा। हमें अब केवल एक ही स्ट्रीम में शैक्षिक कार्यक्रम चलाने के बजाय अपने कॉलेज और विश्वविद्यालयों में एकीकृत बहु-अनुशासनिक कार्यक्रमों को शुरू करना होगा।
विश्वविद्यालयों में विषयों के बीच बढ़ती खाई को पाटनाः
देखने में आया है कि ऐसे विश्वविद्यालय जहाँ बहु-अनुशासनिक कार्यक्रम चलाये भी जा रहे हैं वहां भी विद्यार्थी अपने स्ट्रीम के अन्दर ही या तो सभी विषयों को पढ़ने के लिए बाध्य हैं या फिर परंपरागत संकुचित स्ट्रीम (जैसे विज्ञान या मानविकी या इंजीनियरिंग) में ही बंटे हुए हैं। यह चीज़ फायदे के बजाय नुकसान अधिक करती है। क्योंकि इस व्यवस्था में विद्यार्थियों को किसी प्रकार की आज़ादी नहीं हैं कि वे अपनी रूचि और प्रतिभा के अनुसार अलग-अलग स्ट्रीम के विषय भी चुन सकें। इसके चलते उनमें बहु-अनुशासनिक रुझान और क्षमताओं का विकास भी नहीं हो पाता, और ना ही रचनातमक और विश्लेषणात्मक क्षमताएं विकसित हो पाती। इसलिए जरूरी है कि अलग-अलग स्ट्रीम के बीच इन खाईयों को जल्द ही पाटा जाना चाहिए।
बहु-अनुशासनिकता और अंतर-अनुशासनिकता के लिए आवश्यक विभागों को स्थापित करना और इन्हें सशक्त बनानाः
भाषाओं/(खासतौर पर भारतीय भाषाओं), साहित्य (खासतौर पर भारतीय साहित्य) संगीत (जिसमें हिन्दुस्तानी, करनाटिक, लोकसंगीत, सिनेमा शामिल है), दर्शन (खासतौर पर भारतीय दर्शन जिसमें बौद्ध और जैन दर्शन भी शामिल है), इंडोलोजी और अन्य अध्ययन-क्षेत्र जिमें कला, नृत्य थिएटर, शिक्षा, सांख्यिकी, सैद्धांतिक और व्यावहारिक विज्ञान, समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र खेल आदि विभागों की किसी भी विश्वविद्यालय के अंदर एक बहु-अनुशासनिक और विचारोत्तेजक माहौल का निर्माण करने में एक महत्ती भूमिका है। इन विभागों या संकायों की स्थापना हमारे उच्च शिक्षा संस्थाओं और विश्वविद्यालयों को देशभर में सुदृढ़ बनाने में मदद करेगा।
लिबरल शिक्षा के साथ गहन विशेषज्ञता पर जोर
एक व्यापक और लचीली शिक्षा के साथ-साथ कुछ चुने गए विषयों और क्षेत्रों में गहन विशेषज्ञता भी ज़रूरी है। ताकि चुने गए क्षेत्रों और विष्यों में खास विशेषज्ञता हासिल की जा सके। एक व्यापक और बहु-अनुशासनिक शिक्षा अपने चुने गए क्षेत्र या विषय की समझ, पारंगतता और सृजनात्मकता हासिल करने में मदद करेगी। इसलिए स्नातक स्तर की शिक्षा में समुचित लचीलापन होना चाहिए और आजादी होनी चाहिए ताकि विद्यार्थी विभिन्न क्षेत्रों को अध्ययन के लिए चुन सकें। साथ ही साथ वे अपने कोर विषयों (मेजर, डुअल मेजर या माईनर की भी गहरी समझ और समुचित पारंगतता भी हासिल कर सकें। इसके चलते हमारे युवा अपने समग्र विकास में और विषय-विशेष में पारंगतता हासिल करने में सक्षम बन पायेंगे।

लिबलरल एजुकेशन में सेवा का भाव और इसके प्रति प्रतिबद्धता का समावेश
हम अपने द्वारा अर्जित व्यापक ज्ञान, दृष्टिकोणों और विशेष कौशलों का इस्तेमाल अपने और दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने में कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं? विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को आगे आना होगा और सामुदायिक सेवामें नेतृत्व ही बागडोर संभालनी होगी। इन्हें अपने द्वारा विकसित ज्ञान, कौशलों, रिसर्च और संकाय सदस्यों और विद्यार्थियों की प्रतिभा और क्षमताओं का इस्तेमाल समुदाय की स्थानीय जरूरतों और चुनौतियों जैसे साफ़ पानी, ऊर्जा, प्रौढ़शिक्षा, स्कूली शिक्षा के मुद्दे आदि को हल करने के लिए किया जाना चाहिए। विद्यार्थियों को कुछ ऐसे सवालों के बारे में सोचना चाहिए कि ‘कैसे कला, विज्ञान, इंजीनियरिंग फ्रोफेशलन या व्यवसायिक हस्त-शिलप आदि जो कुछ भी मै सीख रहा हूँ या जिसका मैं अध्ययन कर रहा हूँ, यह कैसे दूसरों के जीवन को बेहतर बनाने में मदद करता हैं? इसके लिए कार्यक्रमों को कुछ इस तरह निर्मित करना होगा कि सामुदायिक सेवा इनके शिक्षाक्रम का एक अहम हिस्सा बन पाए और जहाँ कही भी संभव हो (विश्वविद्यालय के अन्दर या बाहर) विद्यार्थी स्थानीय समुदायों से जुड़े और इनकी जरूरतों और चुनौतियों को समझे, इन पर काम करें। इस तरह के जुड़ाव ही विद्यार्थियों को एक संजीदा और सामाजिक सरोकार रखने वाला व्यक्ति बनने में मदद करेंगे। और साथ ही वे अपने विषयगत ज्ञान और जीवन से इसके जुड़ाव को महसूस कर पाएंगे, इससे वास्तविक परिस्थितियों में रू-ब-रू हो पाएंगे।
इंटर्नशिप और शोध अवसरों की उपलब्धता
लिबरल एजुकेशन में विद्यार्थियों को स्थानीय उद्योगों में इंटर्नशिप के अवसर करवाने होंगे। और साथ ही साथ ही उन्हें अपने और अन्य (भ्म्स्े) में संकाय सदस्यों और शोध-कर्ताओं के साथ शोध करने के अवसर देने होंगे। लिबरल आर्टस डिग्रियों का यह एक हिस्सा होगा और इसे मान्यता दी जाएगी। और जब वें स्नातकोत्तर शिक्षा या रोजगार के लिए आवेदन कर रहे होंगे तब अपने स्नातक कार्यक्रम में इस तरह की गतिविधियों में भागीदारी के अनुसार विद्यार्थियों को क्रेडिट मिलेंगे।
स्नातक डिग्रियों के विकल्पों में लचीलापनः
लिबरल आर्टस एजुकेशन के जिन आदर्शां और खासियतों का ऊपर जिक्र किया गया हैं उनको प्राप्त करने के लिए एक चार-वर्षीय बैचलर ऑफ लिबरल आर्टस (ठस्।) या बैचलर ऑफ़ लिबरल एजुकेशन (ठस्म्) डिग्री (या ठस्।ध्ठस्म् ूपजी त्मेमंतबीद्ध शुरु की जाएँगी- इनमें व्यापक लिबरल एजुकेशन के साथ-साथ विषय-विशेष में गहन विशेषज्ञता पर जोर होगा। जो संस्थान ऐस कार्यक्रम चलाने के लिए सक्षम हैं वहां ऐसे कार्यक्रम शुरु किये जायेगे। तीन-वर्षीय परम्परागत (ठण्।ण्ए ठण्ैबण्  ठण् टवबण्) जैसे कार्यक्रम भी चलते रहेंगे यदि संस्थान इन्हें चलाते रखना चाहते हैं। लेकिन ऐसे सभी स्नातक कार्यक्रमों को लिबरल एजुकेशन एप्रोच को अपनाना होगा और इसके मुताबिक इन कार्यक्रमों को चलाना होगा।
(भ्म्स्े) में स्नातकोत्तर और शोध कार्यक्रमों को समृद्ध बनाने के लिए लिबरल एजुकेशन एप्रोच
एक बहु-अनुशासनिक और लिबरल एजुकेशन एप्रोच ना केवल स्नातक कार्यक्रमों को समृद्ध बनाएगा बल्कि स्नातकोत्तर और शोध कार्यक्रमों को भी समृद्ध करेगा। एक बहु-अनुशासनिक माहौल, जहाँ विषयों और स्ट्रीम के बीच कोई खाई ना हो, ओर जहाँ स्थानीय समुदायों और उद्योगों से गहरा जुड़ाव हों  वह अवश्य ही कुछ संकाय सदस्यों और विद्याथियों द्वारा सार्थक और प्रासंगिक शोध करने में सहायक होगा। यह अलग-अलग संकायों और विभागों को स्थानीय कलाओं आदि को संरक्षित करना, आदि को मिलकर अध्ययन करने और इनके हल ढूँढने को प्रेरित करेगा। इस तरह लिबरल आदर्शों के मुताबिक यदि विश्वविद्यालय शोध स्नातकोŸार संचालित किए जाए तो उच्च शिक्षा और शोध बेहतरी की ओर जाऐंगे और अधिक प्रासंगिक होंगे।
लिबरल एजुकेशन एप्रोच के ज़रिये पेशेवर शिक्षा को समृद्ध बनाना
पेशेवर शिक्षा और एकल क्षेत्र (ैपदहसम. थ्पमसक) कार्यक्रमों को बदलनाः देश भर में पेशेवर (जिसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है) और एकल- क्षेत्र शिक्षा के ऐसे ढेरों कार्यक्रमों हैं जिन्हें लिबरल एजुकेशन कार्यक्रमों में बदलना होगा जहाँ मेजर और माइनर कोर्स चलाये जा सकें। बदलाव की इस प्रक्रिया में, और ऐसे संस्थान जो पेशेवर कार्यक्रमों को चलाते रहना चाहते हैं, शिक्षा क्रमों को दुबारा से गढ़ना होगा ताकि इनमें अन्य विषयों जेस मानविकी, कला, सामाजिक, विज्ञान आदि को शामिल करना होगा ताकि बेहतर वैज्ञानिक चिंतन और सृजनात्मक और नवाचारी चिंतन को विकसित करने में मदद मिलें। ये कार्यक्रम व्यापाक सामाजिक सरोकार रखते हो और जन सेवा और सांस्कृतिक जागरण के उद्देश्य के साथ चलाये जाने चाहिए। इस तरह ये कार्यक्रम लिबरल एजुकेशन कार्यक्रमों की तरह ही एक व्यापक और प्रासंगिक हुनर, रुझान और समझ को विकसित करेंगेः और केवल कुछ तकनीकी कौशलों पर ही संकुचित रूप से केन्द्रित नहीं रहेंगे।
अभी जो संस्िान किसी एक या कुछ अध्ययन क्षेत्रों में ही कोर्स चलाते हैं उनहें अपने आप को अब 1, 2, या 3 टाइप के बहु-अनुशासनिक संस्थानों के रूप में विकसित करना होगा। अब उन्हें अपने यहाँ ऐसे अंडरग्रेजुएट औ ग्रेजुएट कार्यक्रम चलाने होंगे जो बहु-अनुशासनिक होंगे। कई पेशेवर क्षेत्रों में ऐसा करना एक महत्वपूर्ण कदम होगा, खास तौर पर उन क्षेत्रों में- जैसे इंजीनियरिंग, चिकित्सा/स्वास्थ्य, कानून, कृषि- जिनकी शिक्षा के लिए पहले से ही ऐसे संस्थान उपलब्ध हैं जो पर्याप्त संसाधनों से परिपूर्ण हैं। इसमें शिक्षक-शिक्षा संस्थान की भी अच्छी-खासी संख्या होगी।  
ऐसे संस्थानों में लिबरल एजुकेशन की संस्कृति को पोषित करने और विकसित करने के लिए कुछ खास किस्म के प्रयासों को कल्पित करना और प्रभावी रूप से लागू करना होगा- जैसे ‘आर्टिस्ट-इन-रेजिडेंस’ और ‘राइटर-इन-रेजिडेंस,
संदर्भ ग्रंथ 



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  • //www.live hindustan.com

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  • In defense of a liberal Education- TA Reed- Zakarla liberal arts education Book


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