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Sunday, February 23, 2020

कवि सम्मेलनों का सरताज ‘नीरज‘

मानव अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम काव्य ही रहा है। प्राचीन काल में साहित्य का माध्यम ही काव्य था। मंचीय कविता का इतिहास इतना प्राचीन नहीं है। हिन्दी जगत में तो सार्वजनिक रूप में मंचीय कवि संम्मेलनों का काल लगभग 90 वर्ष पूर्व ही हुआ था। इससे पूर्व भारत में उर्दू मुशायरों का ही प्रचलन देखने को मिलता है। उससे भी पूर्व हिन्दी कविता राजदरबारों तक ही सीमित थी। जिसमेे जनसाधारण को प्रवेश नहीं मिलता। इन मंचीय कवि सम्मेलनों के माध्यम से ही जनसाधारण को कविता को कवि मुख से सुन पाने का अवसर प्राप्त हो गया। पर अब मीडिया के कारण वो भी लुप्त हो गये। फिर भी मीडिया के माध्यम से टी.वी., मोबाईल के विभिन्न चैनलों पर आजकल कवि सम्मेलन हो रहे हैं जिनमें हास्य कवि सम्मेलन आदि प्रमुख है।
‘‘मैं विद्रोही हॅंू जग में विद्रोह करने आया हॅंू ,
क्रान्ति, क्रान्ति का सरल सुनहरा राग सुनाने आया हॅंू।‘‘
 गोपालदास सक्सेना ‘नीरज‘ को कवि सम्मेलनों का राजा कहा जाता है। ‘नीरज‘ हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक एवं कवि सम्मेलनों के मंच पर काव्यवाचक एवं फिल्मों के गीत लेखक थे। नीरज हिन्दी काव्य मंच के सर्वाधिक लोकप्रिय गीतकार के, रूप में प्रसिध्द रहे है।
नीरज मुलतः श्रृंगारी कवि थे परंतु उन्होने राजनीतिक, सामाजिक तथा दार्शनिक विषयों पर भी लिखा है। ‘नीरज‘ एक श्रेष्ठ रचनाकार होने के साथ ही सुमधुर गायक थे, अतः कवि सम्मेलनों में इनके काव्यपाठ की धूम मचती थी। तीन-चार घण्टे निरंतर काव्य पाठ करते रहना और श्रोताओं को मंत्र-मुग्ध सा बनाए रखना इनके लिए सामान्य सी बात थी। मानो श्रोताओं पर वे जादू-सा कर देते थे। नीरज सिर से पाॅंव तक स्वयं की काव्य रस मग्न रहते थे। उनका प्रत्येक गीत एक नयी विशेषता लेकर आता था। उनके गीतों में कही ं प्रेम, प्यार की पुलक कहीं तीव्र विरह वेदना, तो कहीं असीम विषाद की छाया देखने को मिलती है।
वास्तव में यही सत्य है -‘‘नीरज से बढके और धनी कौन है यहाॅं, 
उसके -हदय में पीर है सारे हजान की।‘‘ ‘नीरज‘ नाम से लोकप्रिय गीतकार एवं कवि का नाम श्री गोपालदास ब्रजकिशोर सक्सेना है। नीरज का जन्म 04 जनवरी सन 1925 में उत्तरप्रदेश के इटावा जिले के पूरावली गाॅंव में एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। जब वह 6 वर्ष का अबोध बालक ही था कि अचानक पूरावली गाॅंव में एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। जब वह 6 वर्ष का अबोध बालक ही था कि अचानक उनके पिता बाबू ब्रजकिशोर स्वर्ग सिधार गए और वह पिता के स्नेह से वंचित हो गया। पिता ने देहावसान से पूर्व अपनी जमींदारी आदि बेच-बाचकर खानपुर स्टेट में नौकरी कर ली थी। पैतृक सम्पत्ति के नाम पर उनके परिवार के भरण-पोषण के लिए कुछ भी नहीं बचा था। परिणाम स्वरूप नीरज के उपर परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी आ पडी जिसके लिए उन्हे बहुत संघर्ष करना पडा है।
नीरज का कवि जीवन सन 1942 में विधिवत प्रारंभ होता है। उनका प्रथम कविता संग्रह सन 1944 में प्रकाशित हुआ। सन् 1944 से 2018 तक उनकी काव्य यात्रा के अनेक पडाव मिलते है लेकिन वह सदैव अग्रेसर होते रहे। नीरज को आधुनिक युग के गीतकारों में सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त हुई है। उनकी कविता प्रेम, भक्ति तथा समिष्ट चेतना इन तीन धाराओं को लेकर निरंतर गतिशील होती रही है। वे नरेन्द्र शर्मा, नेपाली एवं बच्चन जी द्वारा आधुनिक क्षेत्र में फूॅंकी गई मानवतावादी चेतना को स्वीकार करके निरंतर युग के साथ बढते रहे। उनकी प्रमुख रचनाएॅं निम्नलिखित है-
‘संघर्ष एवं नदी किनारे ‘, ‘अंतध्र्वनि एवं लहर पुकारे‘, ‘विभावरी एवं बादर बरस गयो‘, ‘‘प्राणगीत‘, लिख लिख भेजत पाती, दर्द दिया है, दो गीत, आसावरी, मुक्तकी एवं नीरज दोहावली आदि है।
कवि नीरज का काव्य चेतना निरंतर विकासोन्मुख ही रही है। उनकी काव्य साधना का सहज ही स्वतंत्र विकास हुआ है। साथ ही यह भी पूर्ण सत्य है कि हमारे आधुनिक कवियों में जैसी लोकप्रियता कवि नीरज को प्राप्त हुई है। वैसी बहुत ही कम कवियों को प्राप्त हो सकी है।
कवि ‘नीरज‘ की भावभूमि निर्विवाद रूप से व्यापक है। उनकी काव्य कृतियों में विभिन्न प्रवृत्तियों के दर्शन होते हैं यहाॅं यह उल्लेखनीय है कि एक ओर तो नीरज किसी भी वाद पर आस्था न रखने के बावजूद छायावाद, रहस्यवाद, व्यक्तिवाद काव्य एवं प्रवृत्तियों से किसी न किसी रूप में न्यूनाधिक प्रभावित अवश्य हुए हैं और दूसरी ओर उनकी सौंन्दर्य भावना भी व्यापक है। इसीलिए उन्होंने प्रकृति के विविध दृश्यों के चित्रण के साथ-साथ मधुर प्रणय भावनाओं एवं मर्मस्पर्शी विरहानुभूतियों का भी चित्रण किया है। पहली बार किसी कवि ने हिन्दी काव्य जगत में मृत्यु संबंधी व्यापक दृष्टिकोण की प्रतिष्ठापना भी की है।
‘‘किसके रोने से कौन रूका है कभी यहाॅं
जाने को ही सब आये हैं सब जायेंगे
चलने की तैयारी ही तो बस जीवन है
कुछ सुबह गये, कुछ डेरा शाम उठायेंगे।‘‘
नीरज का जीवन दर्शन अत्याधिक उदार एवं व्यापक है। उन्होंने अपनी काव्य कृतियों में भौतिक एवं अध्यात्मिक दोनों ही प्रकार ही जीवन दृष्टियों का सहज एवं सुखद समन्वय प्रस्तुत किया है। इनके दार्शनिक गीत उच्च कोटि के है, श्रृंगार गीत भी -हदयग्राही है। ‘जीवन को गति देने वाली शक्ति का ही नाम प्रेम है।‘ कवि नीरज प्रेम को सृष्टि का मूल तत्व मानते हुए एक स्थान पर कहते है-
‘‘प्यार है कि सभ्यता सजी खडी,
प्यार है कि वासना बॅंधी पडी,
प्यार है कि आॅंख में शरम जडी
प्यार बिन मनुष्य दुश्चरित्र है !,
प्यार तो सदैव ही पवित्र है!‘‘
नीरज सौंदर्य, प्रेम, मृत्यु, विरह, भूख प्रकृति चित्रण और भक्ति भावों के गीतों को गाते रहे है। निराशा एवं मायूसी का स्वर आगे बढकर करूण तथा दैन्य में परिवर्तित हो गया है। भाव संवेदना का कवि मानव की धडकनों पर कान लगाये, समाज का स्पर्श किये हुए बेकारी, गरीबी, भुखमरी आदि को स्वर देता रहा है। कवि एक स्थान पर मेहनतकश वर्ग उच्च वर्ग तथा धनियों के हाथों पिसा जाता है। उन पर अन्याय अत्याचार किया जाता है। इसी को कवि अपने कविता में अभिव्यक्त करता है.
‘‘एक बजा है और न पहॅंुचा
कल से मॅंुह में दाना,
फिर भी वह गा रही कुल्हाडी
खुट-खुट खुटट तराना !‘‘
कवि सम्मेलनों में अपार लोकप्रियता के चलते नीरज को मुंबई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में ‘नई उमर की नई फसल‘ के गीत लिखने का निमंत्रण दिया गया जिसे निरज ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फिल्म ‘नई उमर नई फसल‘ में उनके लिखे गीत जैसे देखती ही न दर्पण रहो प्राण ! तुम, प्यार का यह मुहरत निकल जायेगा!, ‘कारवाॅं‘ॅं गुजर गया, गुबार देखते रहे बहुत लोकप्रिय रहे। अब नीरज ने फिल्मी जगत में धूम मंचाना आरंभ किया। और वे सिर्फ एक कवि और साहित्यकार ही नहीं रहे बल्कि हिंदी फिल्मों के बेहतरीन गीतकार भी बने। और यह सिलसिला आगे बढा जैसे फिल्म ‘पहचान‘- ‘बस‘ यही अपराध मैं हर बार करता हॅंू, ‘चंदा और बीजली‘, ‘काल का पहिया घुमे रे भइया,‘मेरा ना जोकर‘ ‘ए भाई ! जरा देख के चलो‘ इन गीतों ने नीरज को कामयाबी की बुलंदियों पर पहॅंुचाया। इन गीतों के लिए उन्हे लगातार तीन बार फिल्म फेअर पुरस्कार के लिए नामांकन मिला जिनमें 1970 का फिल्म फेअर उन्होंने जीता। इसके अलावा उनके और भी गीत लोकप्रिय रहे। जिनमें शोखियों में घोला जाए फुलों का शबाब‘, ‘आज मदहोश हुआ जाए रे‘, ‘ओ मेरी शर्मीली‘, ‘चुडी नहीं मेरा दिल है‘, ‘रंगीला रे तेरे रंग मे‘ं, ‘खिलते है गुल यहाॅं‘, ‘कहता है जोकर सारा जमाना‘, ‘धीरे से जाना खटियमन मे‘ं आदि अधिक लोकप्रिय रहे है। इन गीतों का संकलन नीरज के लोकप्रिय गीत नामक पाकेट बुक्स में दो भागों में प्रथम भाग 1965 एवं 1975 में दुसरा भाग प्रकाशित हुआ।
अभिव्यक्ति की दृष्टि से देखा जाय तो नीरज का काव्य भावपक्ष एवं कलापक्ष दोनों ही दृष्टियों से निस्संदेह सराहनीय है। उन्हे आधुनिक हिन्दी काव्य धारा का उल्लेखनीय कवि माना जाता है। यहाॅं यह भी उल्लेखनीय है कि नीरज की अनेक कविताओं के अनुवाद गुजराती, बंगला एवं रूसी आदि भाषा में भी हुए हैं। इसलिए कवि भदन्त आनन्द कौसल्यायन यदि उन्हें हिन्दी का अश्वघोष घोषित करते है तो दिनकरजी उन्हें ‘हिन्दी की वीणा‘ मानते है।
नीरज की प्रमुख विशेषता यह है कि, वे सहज-सरल अभिव्यक्ति के कवि थे। सीधी सीधी, सहज शब्दावली में वे अपने भावों को अभिव्यक्ति किया है। उन्होंने अलंकार तथा विशेषणों का उपयोग न्यूनतम किया है। उन्होंने एकाधिक शैलियों का उपयोग करके कविता में रंजकता बढाई है। उनका काव्य प्रतीक योजना एवं बिम्ब योजना की दृष्टि से सराहनीय है।
कुल मिलाकर नीरज एक भावुक कवि थे। भावुक हो कर ही वह वस्तु को छुते थे और उसे सरल बना देते थे। जन-मानस की लहरों पर सरगम छोडनेवाले कुछ गिने-चुने कवियों में नीरज का नाम आता है। एक पूरी गीतकारों की पीढी नीरज से प्रभावित रही है। फिल्म की बेहद लोकप्रियता के कारण नीरज मुंबई में रहकर फिल्मों के लिये गीत लिखे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला कई वर्षाे तक जारी रहा किन्तु मुंबई में उनका मन न लगा और वे फिल्मी दुनिया को अलविदा कर फिर अलीगढ चले आये। 
फिल्मी दुनिया की लोकप्रियता के शिखर पर रहे महाकवि नीरज के पूर्व राष्टत्र्पति अब्दुल कलाम भी फैन थे। जो अलीगढ आकर नीरज की मुलाकात की थी। नीरज पहले व्यक्ति थे जिन्हे शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकर ने दो-दो बार सम्मानित किया। सन 1991 में ष्पद्म श्री‘ से और 2007 में ‘पद्म भूषण‘ से नवाजा गया। सन् 2012 में उत्तर प्रदेश की तत्कालिन सरकारने गोपालदास नीरज को भाषा संस्थान का अध्यक्ष नामित कर कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया था।
कवि सम्मेलनों के सरताज रहे महाकवि, गीतकार गोपालदास नीरज ने दिल्ली के एम्स में 19 जुलै 2018 की शाम लगभग 8 बजे अंतिम सांस ली।
अपने बारे में उनका यह शेर आज भी मुशायरों में फरमाइश के साथ सुना जाता है -
‘‘इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में,
लगेेंगी आपको सदियों हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का श क्$र,  
ऐसे भी लोग चले आये है मयखाने में।‘‘
नीरज उनके फिल्मी गीतों के साथ हमेशा जिंदा रहेंगे जब जब उनके ये गीत गुणगुनाएंगे नीरज याद आएंगे।


संजय राठोड 
शोध छात्र
सवित्रीबाई फुले, पुणे विद्यापीठ,पुणे
लोणी खुर्द, ता.राहाता जि.अहमदनगर
संपर्क.9604779464 - 9834111191


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