Impact Factor - 7.125

Sunday, February 23, 2020

सामाजिक परिवर्तन एवं पत्रकारिता: अन्तःसंबंध

 मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। वह जिस समाज में रहता है, उसके साथ उसकी अन्तःक्रिया का होना स्वाभाविक है। पत्रकारिता की कल्पना समाज से अलग करके नहीं की जा सकती है। पत्रकारिता ही है जिसके माध्यम से समाज में नवसंचार, जागरण, सजीवता तथा नवस्फूर्ति का संचार होता है। महात्मा गाँधी ने पत्रकारिता के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए थे- ‘‘पत्रकारिता का पहला उद्देश्य जनता की इच्छाओं और विचारों को समझना तथा उन्हें व्यक्त करना है। दूसरा उद्देश्य जनता में वांछनीय भावनाओं को जाग्रत करना तथा तीसरा उद्देश्य सार्वजनिक दोषों को निर्भीकतापूर्वक प्रकट करना है।’’  इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन करना पत्रकारिता का मूल कार्य है। पत्रकारिता की उपयोगिता को स्पष्ट करते हुए महादेवी वर्मा ने कहा है कि, ‘‘पत्रकारिता एक रचनाशील विधा है। इसके बगैर समाज को बदलना असम्भव है अतः पत्रकारों को अपने दायित्व और कत्र्तव्यों का निर्वाह निष्ठापूर्वक करना चाहिए, क्योंकि उन्हीं के पैरों के छालों से इतिहास लिखा जाएगा।’’ 
समाज में जो कुछ घटित हो रहा है, जो होगा अथवा जो हो चुका है, इन सभी का ब्यौरा पत्र-पत्रिकाओं में अंकित होता है। इस महत्वपूर्ण कार्य को करने का पूरा श्रेय पत्रकार को जाता है। इस प्रकार पत्रकारिता के माध्यम से समाज के प्रतिबिम्ब को देखा जा सकता है। समाज को प्रभावित करने की जो क्षमता पत्र-पत्रिकाओं में है, उसके मूल में भी पत्रकार ही है। पत्रकार को समाज के सजग प्रहरी के रूप में देखा जाता है। एक पत्रकार सामाजिक परिवर्तन के लिए जो त्याग करता है उसका वह त्याग ही समाज को गति प्रदान करता है। समाज के प्रत्येक वर्ग की आवाज पत्रकार होता है। वर्तमान समाज में पत्रकारिता के प्रति लोगों का आग्रह बढ़ा है। व्यक्ति सुबह उठते ही समाचार-पत्र खोजने लगता है, यदि उस समय समाचार-पत्र नहीं मिलता तो उसे बेचैनी होने लगती है। इस प्रकार समाचार-पत्र सामाजिक जीवन का एक हिस्सा बन गया है। इसके बिना दिन कीे शुरुआत की कल्पना करना मुश्किल हो जाता है। समाचार-पत्र आते ही व्यक्ति जिस क्षेत्र से जुड़ा है, उसकी खबरों को पहले देखना पसन्द करता है।
समाचार-पत्र आज के जागरूक नागरिक का अभिन्न अंग हो गया है। पत्र आते ही शिक्षित नागरिक राजनीति, नौकरी, सिनेमा, खेलकूद, खाद्य वस्तुओं का भाव, विवाह हेतु वर की तलाश, धर्म की चर्चा, पुस्तक समीक्षा, नये फैशन आदि विषयों पर अपनी दृष्टि दौड़ाता है। ये तमाम सूचनाएँ समाज के प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनिवार्य संसाधन बन गई हैं। पुराने समय में जहाँ हुक्का होता था वहाँ दो चार व्यक्ति इकट्ठे हो जाते थे, ठीक उसी प्रकार आजकल समाचार-पत्र शिक्षित वर्ग के लिए आकर्षण बिन्दु बन गया है। इसी संदर्भ में कमलापति त्रिपाठी लिखते हैं ‘‘संवाद-पत्र आज की जनता का ऐसा साथी और मित्र हो गया है जिससे यह जीवन के प्रत्येक पहलू में सहायता की अपेक्षा करते हैं। जीवन का कोई अंग नहीं, कोई समस्या नहीं है जिस विषय में जानने की बातें जनता उसके द्वारा उपस्थित किए जाने की आशा न करती हो।’’ पत्रकारिता का अस्तित्व समाज सापेक्ष होता है। इसलिए पत्रकारिता का प्रमुख दायित्व समाज को सच्चाई का बोध कराना है। हमारे समाज में कब, क्या परिवर्तन हो रहा है, इसे जानने की जिज्ञासा प्रत्येक व्यक्ति को होती है। इस प्रकार पत्रकारिता के उत्तरदायित्व को निम्नलिखित रूपों में देखा जा सकता है।
 समाज को सही दिशा प्रदान करना पत्रकारिता का कार्य है।
 समाज में जनजागरूकता पैदा करना पत्रकारिता का कार्य है।
 समाज में मानवीय मूल्यों का विकास करना पत्रकारिता का कार्य है।
 समाज में सत्यं, शिवं, सुन्दरं की स्थापना करना पत्रकारिता का कार्य है।
 सामाजिक कत्र्तव्य बोध विकसित करना पत्रकारिता का कार्य है।
 सामाजिक समस्याओं को उजागर करना एवं हल खोजना पत्रकारिता का कार्य है।
 समाज को सक्रिय बनाना पत्रकारिता का कार्य है।
 भ्रष्टाचार को उजागर करना पत्रकारिता का कार्य है।
 लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना में समाज की निष्ठा उत्पन्न करना पत्रकारिता का कार्य है।
 महिला सशक्तिकरण करना पत्रकारिता का कार्य है।
 समाजिक कुरीतियों को सामने लाना एवं उनका विश्लेषण करना पत्रकारिता का कार्य है।
 समाज में राजनीतिक चेतना विकसित करना पत्रकारिता का कार्य है।
 संस्कृति का संरक्षण एवं प्रसार करना पत्रकारिता का कार्य है।
 नागरिकों को दायित्वबोध के प्रति जागरूक करना पत्रकारिता का कार्य है।
 नागरिकों को उनके अधिकार एवं कत्र्तव्यों के प्रति सचेत करना पत्रकारिता का कार्य है।
 नई-नई सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक आदि योजनाओं को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य पत्रकारिता का है।
 दलित उत्थान की भावना विकसित करना पत्रकारिता का कार्य है।
 विज्ञान व नव तकनीक की नवीनतम उपलब्धियों को समाज तक पहुँचाना तथा समाज में वैज्ञानिक दृष्टिकोण विकसित करना पत्रकारिता का कार्य है।
 राष्ट्रीय अखण्डता की भावना का प्रसार करना पत्रकारिता का कार्य है।
 बाल कल्याण एवं परिवार नियोजन आदि समाजोपयोगी कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करना पत्रकारिता का कार्य है।
इस प्रकार पत्रकारिता की उपादेयता तथा कार्य दायित्वों की फेयरिस्त काफी लंबी है। पत्रकारिता का क्षेत्र इतना व्यापक है कि वह मानव समस्याओं एवं उपलब्धियों से लेकर संपूर्ण तथ्यों की सूचनाएँ स्वयं में समेटता है। पत्रकार का सच्चा धर्म सामाजिक दायित्व को निभाना होता है।
वर्तमान सदी में सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम पत्रकारिता को ही स्वीकार किया गया है। अक्सर यह प्रश्न उठता है कि पत्रकारिता ने समाज में क्या परिवर्तन किया है? इसका उत्तर इस प्रश्न से ही स्पष्ट हो जाता है कि आधुनिक समाज की विकास यात्रा में सबसे अधिक परिवर्तनकारी और अहम् भूमिका पत्रकारिता की है। आज समाज के अनेक मुद्दे हैं जिसे पत्रकारिता जगत ने अपने प्रयास से चुनौती देने का कार्य किया है। समाज में फैले अंधविश्वास को काफी हद तक दूर करने में पत्रकारिता की अहम् भूमिका रही है। प्राचीन परम्पराओं, रूढ़ियों अंधविश्वासों के मूल में निहित कारणों का विश्लेषण करते हुए पत्रकारिता जगत ने वैज्ञानिक सोच पैदा करने की सफल कोशिश की है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण यह है कि जहाँ-जहाँ समाचार-पत्र पहुँच रहे हैं वहाँ के लोगों के सोचने का ढं़ग एवं नजरिया उनसे बिल्कुल अलग है, जहाँ पर समाचार पत्रों की पहुँच नहीं है। इसलिए सामाजिक परिवर्तन की दृष्टि से पत्रकारिता के योगदान को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इस संदर्भ में महात्मा गाँधी का यह कथन विचारणाीय है- ‘‘ऐसी कोई भी लड़ाई जिसका आधार आत्मबल हो, अखबार की सहायता के बिना नहीं चलाई जा सकती।’’ 
किसी भी परिवर्तन के लिए विचार अत्यन्त महत्वपूर्ण होते हैं। विशेष रूप से सामाजिक परिवर्तन का मुख्य आधार विचार ही है। वैचारिक शक्ति बड़े-बड़े हथियारों को परास्त करने की ताकत रखती है। समाज को कुरीतियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करना पत्रकारिता का ही उत्तरदायित्व है। राजाराम मोहन राय ने पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन की मूल दृष्टि को स्पष्ट करते हुए बहुत ही सार गर्भित बात कही थी, ‘‘मेरा उद्देश्य मात्र इतना ही है कि जनता के सामने ऐसे बौद्धिक निबंध उपस्थित करूँ जो उनके अनुभव को बढ़ाएँ और सामाजिक प्रगति में सहायक सिद्ध हो, मैं अपनी शक्ति पर शासकों को उनकी प्रजा की परिस्थितियों का सही-सही परिचय देना चाहता हूँ और प्रजा को उनके शासकों द्वारा स्थापित विधि-व्यवस्था से परिचित कराना चाहता हूँ ताकि शासक जनता को अधिक से अधिक सुविधा देने का अवसर पा सकें और जनता उन उपायों से अवगत हो सके, जिनके द्वारा शासकों से सुरक्षा पायी जा सके और अपनी उचित मांगे पूरी कराई जा सकें।’’  राजा राममोहन राय का यह विचार न केवल समाचार-पत्रों के लिए बल्कि सम्पूर्ण पत्रकारिता जगत के लिए एक विचारणीय है।  आज जहाँ तक पत्रकारिता की पहुँच है वहाँ समाज के तमाम अंधविश्वासों पर आधारित मान्यताओं को समाप्त किया गया। एक समय ऐसा था, जब चेचक को शीतला माता का प्रकोप माना जाता था, लेकिन अब लगभग यह मान्यता समाप्त हो गयी है। इसी प्रकार कुष्ट रोग को पूर्व जन्मों के पापों से जोड़ा जाता था लेकिन अब उसे जीवन में लगने वाला एक रोग माना जाता है। आज जहाँ तक पत्रकारिता की पहुँच है वहाँ ‘दूधो नहाओ, पूतो फलो’ जैसे आशीर्वाद देने और लेने वालों की कमी नजर आती है, लेकिन यह सब अभी भी कुछ मात्रा में चल रहा है। इसका उदाहरण सारथी बाबा, आशाराम बापू, रामपाल बाबा, निर्मल बाबा, राधे माँ जैसे ढोंगी संतों के प्रति जनमानस का झुकाव है।
इस प्रकार वर्तमान दौर में विकास की जो आंधी चल रही है उसमें यह देखना होगा कि परिवर्तन की दिशा और दशा क्या है। शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जो सभी समस्याओं के निदान की ताकत रखता है। इसलिए पत्रकारिता के माध्यम से समाज को जागरूक किया जा सकता है। पत्रकारिता और सामाजिक परिवर्तन दोनों को अलग-अलग चश्में से नहीं देखा जा सकता है, क्योंकि इन दोनों का अन्यान्योश्रित संबंध है। इस संबंध के निर्धारण में पत्रकारिता जगत को स्वमूल्यांकन की आवश्यकता है।
 समग्र आकलन एवं निष्कर्ष 
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि पत्रकारिता का उदय ही सामाजिक अन्याय के प्रति न्याय स्थापित करने, सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने एवं सामाजिक जागरूकता लाने के लिए हुआ। आज समाज में पत्रकारिता के प्रति इतनी रुचि पैदा हो गयी है कि व्यक्ति के दिन की शुरुआत पत्रों से होती है। वर्तमान सदी में पत्रकारिता के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों तक की व्यापकता को नकारा नहीे जा सकता है। आज की पत्रकारिता छोटे-छोटे गाँव तक प्रवेश कर गई है। यही कारण है कि ग्रामीण पत्रकारिता को महत्व दिया जा रहा है क्योंकि पत्रकारिता का उद्देश्य ही जनसामान्य के विचारों को समझना एवं उसे व्यक्त करना है। किसी सामाजिक परिवर्तन के लिए शिक्षा की भूमिका अहम् होती है। शिक्षा के अभाव के बिना सामाजिक परिवर्तन की कल्पना अधूरी है। पत्रकारिता व्यक्ति एवं समाज को शिक्षित करने का एक सशक्त माध्यम है।
 पत्रकारिता को मूल रूप से देखा जाए तो यह एक तरह से ‘दैनिक इतिहास‘ लेखन है। पत्रकार अपनी कार्य कुशलता से प्रतिदिन का इतिहास अखबार के पन्नों में दर्ज करता चलता है। पूर्ण रूप से स्वतंत्र होने के बावजूद भी पत्रकारिता सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों से जुड़ी रहती है। उदाहरण के लिए सांप्रदायिक दंगों का समाचार लिखते समय पत्रकार को यह ध्यान रखना होता है कि उसके समाचार से आग न भड़के। बलात्कार के मामलों में वह महिला का नाम या चित्र नहीं प्रकाशित करता ताकि पीड़िता की सामाजिक प्रतिष्ठा को धक्का न पहुँचे। पत्रकारिता को लोकतंत्र का चैथा स्तंभ  कहा जाता है। पत्रकारिता ने लोकतंत्र में यह महत्वपूर्ण स्थान सहज ही हासिल नहीं किया है। सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति पत्रकारिता के दायित्वों के महत्व को देखते हुए समाज ने ही यह दर्जा दिया है। लोकतंत्र तभी सार्थक और सशक्त होगा जब पत्रकारिता सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति अपनी सकारात्मक सार्थक भूमिका का निर्वाह करे। समय परिवर्तन के साथ पत्रकारिता का कार्य भी बदल गया हैंै। प्रारंभिक काल में इसका मुख्य कार्य नए विचार का प्रचार करना रहा था। तकनीकी विकास, सूचना व संचार क्रांति, उद्योग एवं वाणिज्य के प्रसार के कारण आज पत्रकारिता एक उद्योग बन चुका है। पत्रकारिता का इतिहास चाहे कितना पुराना हो या नया लेकिन इक्कीसवीं सदी में यह एक  सशक्त विषय के रूप में उभरा है, जिसकी पहुँच अति व्यापक बन गई है।
 आज पत्रकारिता के प्रति लोगों का इतना विश्वास बढ़ा है कि जीवन की वे छोटी-बड़ी समस्या का हल समाचार-पत्र, पत्रिकाओं में खोजने लगते हैं। सुबह समाचार-पत्र आते ही हर वर्ग के पाठक राजनीति, नौकरी, सिनेमा, खेलकूद, खाद्य वस्तुओं का भाव, नए फैशन एवं यहाँ तक कि विवाह हेतु वर कन्या की तलाश आदि विषयों पर आवश्यकतानुसार दृष्टि डालकर आवश्यक जानकारी जुटाने लगते हैं। यह सामाजिक जागरूकता को दर्शाता है। आज पत्रकारिता का क्षेत्र इतना व्यापक हो गया है कि क्षेत्रीय भाषाओं के समाचार-पत्रों की संख्या भी दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, यह इस बात को सिद्ध करता है कि पत्रकारिता का भविष्य उज्ज्वल है लेकिन आज पत्रकारिता पर औद्योगीकरण जिस तरह से हावी हो रहा है, इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है। सामाजिक परिवर्तन जरूरी तो है, लेकिन वह परिवर्तन उसी सीमा तक पहुँचाना चाहिए जिससे देश और समाज की संस्कृति पर आँच न आए। पत्रकारों को इस बात का खास तौर पर ध्यान रखना जरूरी है। यह ध्यान देना होगा कि परिवर्तन में भी अपनेपन की पहचान आवश्यक है। परिवर्तन में संस्कृति का मूल स्वर रहना आवश्यक है। इस प्रकार पत्रकारिता ही वह माध्यम है जिसके द्वारा समाज को उचित और सही दिशा का ज्ञान होता है।
सन्दर्भ-ग्रन्थ सूची 
1. पन्त, एन.सी., ‘हिन्दी पत्रकारिता का विकास’, राधा पब्लिेकशन, नई दिल्ली 
2. त्रिपाठी, डाॅ. रमेशचन्द, ‘पत्रकारिता के सिद्धान्त’, अशोक प्रकाशन, दिल्ली, 2005 
3. डाॅ. हरिमोहन, ‘समाचार, फीचर-लेखन एवं संपादक कला’, श्री टी.एस. बिष्ट, नई दिल्ली, 2003 
4. मंत्री, गणेश, ‘पत्रकारिता की चुनौतियाँ’, सत्साहित्य प्रकाशन, दिल्ली, 2004
5. चतुर्वेदी, जगदीश प्रसाद, ‘पत्रकारिता के छह दशक’, साहित्य संगम, इलाहाबाद, 1997
6.  डाॅ. डी.डी. शर्मा, गुप्ता, समाजशास्त्र का परिचय, साहित्य भवन पब्लिकेशंस, आगरा, 2015 
7. अहिरवार, अशोक कुमार, डाॅ. राममनोहर लोहिया के विचार, मध्यभारती-55, वि.वि. मुद्रणालय, सागर, 2005 
8. तिवारी, डाॅ. अर्जुन, ‘आधुनिक पत्रकारिता- संपूर्ण पत्रकारिता’, विश्व विद्यालय प्रकाशन, वाराणसी, 2004 
9. शर्मा, डाॅ. विनय मोहन, ‘शोध प्रविधि’, मयूर पेपर बैक्स प्रकाशन, नोएडा, 2003 
10. गुप्ता, आर.के., ‘हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास और विकास’, दया प्रकाशन, दिल्ली, 2008


 


शोधार्थी
हृदय नारायण तिवारी
हिन्दी अध्ययनशाला
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन (म.प्र.)
मो 9203104739


No comments:

Post a Comment

Aksharwarta's PDF

अक्षर वार्ता अंतरराष्ट्रीय अवार्ड 2024 हेतु आवेदन आमंत्रण सूचना

अक्षर वार्ता अंतरराष्ट्रीय अवार्ड 2024 हेतु आवेदन आमंत्रण सूचना नवंबर 2024, माह के अंतिम सप्ताह में स्थान, उज्जैन,मध्य प्रदेश* India's r...