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Saturday, April 18, 2020

बस्तर के जनजीवन में पत्तों की महत्ता

बस्तर के जनजीवन में पत्तों की महत्ता


पत्तों से ही हरियाली को अस्तित्व मिलता है। पत्तियां ही पेड़ पौधे के वस्त्र आभूषण बनते हैं। इसी कारण से यह शिरोधार्य होते हैं। पत्तों से ही कोई भी पेड़ छतनार कहलाने की क्षमता रखता है। पत्ते मिलकर ही वृक्ष के नीचे उसकी छाया बनाते हैं और वो छाया ग्रीष्म के ताप से जलते हुए राहगीर को शांति प्रदान करती है। पत्तियां हैं स्टार्च तथा कार्बोहाइड्रेट बनाती हैंऔर खाद्य पदार्थ तैयार करती हैं। पौधों को कार्बन की अत्यधिक आवश्यकता रहती है। इससे वे अपने पत्तियों द्वारा वायुमंडल से कार्बनिक एसिड गैस के रूप में ग्रहण करते हैं। कार्बनिक एसिड गैस में 2 भाग ऑक्सीजन का और एक भाग कार्बन का होता है। इसलिए पत्तियों द्वारा पौधों में न केवल कार्बन अपितु ऑक्सीजन दे पहुंचते ही रहता है। हरे पत्ते वायु को शुद्ध करते हैं कार्बन डाइऑक्साइड से कार्बन ग्रहण कर वायु में ऑक्सीजन वापस कर देते हैं।


हिंदू दर्शन के अनुसार जल प्रलय के समय जल पर बड़के  एक पत्ते पर शिशु के रूप में भगवान चित् लेटे हुए पांव का अंगूठा चूस रहे हैं। प्रस्तुत मिथक सृष्टि के नवीन शुभारंभ का संकेत देता है।भगवान बुद्ध ने दी पीपल के पत्तों की छांव में बुद्धत्व को प्राप्त किया था। पत्ते जब बाल्यावस्था में होते हैं तब भी किसलय कहलाते हैं। किसलय और कोमल व चमकदार होते हैं।शिशिर ऋतु में कई वृक्ष से पत्ते झड़ जाते हैं पतझड़ के बाद बसंत ऋतु में पेड़ पौधों की पत्तियों में निखार आ जाता है। पेड़ पौधे अत्यंत आकर्षक लगने लगते हैं।बस्तर में सरगी पलाश सिआड़ीआम और तेंदू के पत्ते विशेष उपयोगी प्रमाणित होते आ रहे हैं तेंदूपत्ता ने व्यवसाय और मजदूरी को अत्यधिक प्रभावित किया है। सरगी सीआईडी और पलाश के पत्ते इधर ग्रामीण जीवन में उपयोगी माने जाते हैं। आम के पत्ते कलश में रखने और तोरण बनाने के काम भी आते हैं।सरगीसियाड़ी और पलाश के पत्तों से दोनों और पत्थल बनाए जाते हैं। इन्हें बांसकिसीक से सिला जाताहैंसरगी की तुलना मेंसीआईडी पत्तों की उपयोगिता अधिक है। सीआईडी पत्ते छ तोड़ी में जाने के लिए लगाए जाते हैं। तीन पत्तों से अरहर मूंग उड़द सरसों आदि को साल भर सुरक्षित रखने के लिए बड़े-बड़े चिपटे भी बना लिए जातेहैं वर्तमान समय मेंचिपटे का स्थान डब्बा ने ले लिया है


दोनों कई प्रकार से बनाए जाते हैंअलग अलग नाम से जाना जाता हैबड़े दोनों कोडोबला कहा जाता हैसरगी के लगभग 20 पत्तों से यह तैयार किया जाता है जिसमें यहां के जनजातीय भात खाते हैंसब्जी खाने के लिए 2 पत्तों से बनी चौकोन बनी होती हैजिसमें 4कोनेहोते हैं।नाव के आकार का जो दो ना होता है उसे मुंडी दो ना कहते हैं 10 से 20 पत्तों को सील कर सत्ता बनाया जाता है जो थाली का काम करता है। पेज पीने के लिए तुपकी और शराब पीने के लिएचिपड़ी भी बनाई जाती है। लोक साहित्य में पत्तों को बड़ी आत्मीय अभिव्यक्ति दे रखी है


छीन के पत्ते भी इधर कम उपयोगी नहीं होतेपनारा जाति के लोगशिव के पत्तों का कलात्मक उपयोग किया करते हैं। विवाह के लिए दूल्हे और दुल्हन के लिए मुकुट बनाया जाता है पूर्णविराम सिम के पत्तों से प्रतिवर्ष जन्माष्टमी और हरितालिका व्रत की झांकियों को सजाने के लिए गोल गोल लटकते झूलते झंडू भी बनाए जाते हैं।कुछ समय पहले तक जींद के पत्ते से घर की छत भी बनाई जाती थी। पत्तों का संसार बड़ा विचित्र है छुईमुई की पत्तियों कछूने से वह इटहरी हो जाया करती हैभटकटैया के पास ही में बहुत से कांटे होते हैं जिन्हें छूने से डर लगता है परंतु यह बहुत ही अधिक गुणकारी होता है बस्तर में इसेरेंगनी भेज रही कहा जाता है। रेंगनी का अर्थ है चलना और भेज रही का अर्थ है भटाअर्थात भटकटैया कोऔषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। बेल तुलसी दूब और नीम के पत्ती भी समय-समय पर धार्मिक व सामाजिक कार्यों में प्रयुक्त होते आए हैं। हर साल विजयदशमी के दिन लोग एक दूसरे के घर जाकर सोमपान अर्पित करके और सब भावनाएं प्रकट किया करते हैंअमलतास का पत्ता ही सोमपान कहलाता है बस्तर भूमि में अमलतास के दो स्थानीय नाम प्रचलित है पहला भालू मूसली और दूसरा सोनरली रूख ।गुच्छों में लटकते झूलते अमलतास केसुनहरे फूल इसके इस नाम को सार्थक करते हैं । पत्तों ने भाषा को भी सजाया है उसने कहावतें मुहावरे और गति भी है। हमारी भारतीय संस्कृति में आराध्य श्रद्धालु और श्रद्धालुओं द्वारा पत्र पुष्प फल तो अर्पित करने की एक शालीन परंपरा चली आ रही है जिससे बख्तर का लोग जीवन में प्राया जुड़ा हुआ हैपत्र के कई अर्थ होते हैं पत्ता समाचार पत्र चिट्ठी दस्तावेज और पुस्तक का पन्ना। छोटे पत्ते को पत्री कहते हैं।पत्री के दो प्रमुख अर्थ सामने आते हैं जन्मपत्री और लग्न पत्रीबस्तर में प्रचलित लोक भाषाओं में भी उनके अनुसार कई मुहावरे प्रचलित हैपरंतु आप दिनों दिन इधर भी पत्तों का उपयोग कम होता जा रहा है दोनों और पत्थरों की जगह अभी स्टील जर्मन और प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग होने लगा है मशीन द्वारा दोनों और पत्रों का निर्माण भी जोर पकड़ता जा रहा है जिससे यहां की जनजाति आर्थिक संकट का सामना कर रही है और उनका रोजगार भी कम होता जा रहा है फिर भी पत्तों की पात्रता को कोई चुनौती नहीं दे सकता सचमुच अद्भुत और उल्लेखनीय है बस्तर राज्य के यह बर्तन भांडे और लोग जीवन में पत्तों की महत्ता||


श्रीमती आशा रानी पटनायक व्याख्याता जगदलपुर जिला बस्तर छत्तीसगढ़


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Aksharwarta International Research Journal May - 2024 Issue