▪ ▪▪कविता▪▪ ▪
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धूप है कहीं पर कहीं पर छांव है
कहीं हैं शहर तो कहीं पर गांव है
आदमी है इस जहां में,
चरिंदे और परिंदे
शजर ,फूल , फल और
बदलते मौसम के दाव है
आफताब की किरण ,
जो इशारा है सहर का
बारिश से रूप निखरे,
सागर ,नदी ,नहर का
सब जरूरत है सभी की
जिसमें समर्पण का भाव है
चांद,चांदनी है ,
फिजा में रागिनी है
पर्वत ,पहाड़ ,पानी ,
हवा प्राण दायिनी है
पथरीली वादियों में
जिसका दिखता जमाव है
इंसान की छेड़खानी
सोची-समझी नादानी
बना रही प्रकृति के
चेहरे पर बदनिशानी
हर चीज में मिलावट
इसे कुरेदते घाव हैं
बाढ़,अकाल,महामारी
भूकंप और बलाएं
मंदिर,मस्जिद ,गुरुद्वारे
व पूजा,अरदास,दुआएं
इन इंद्रधनुषी तस्वीरों से
इसका गहरा जुड़ाव है
आदमी जिसे लूटता,
लोभ,मोह ,स्वार्थ से
यह धर्म का पर्याय ,
है सिर्फ पुरुषार्थ से
करना सदुपयोग ही ,
बस इसका बचाव है
अनवर हुसैन
सरवाड़ जिला अजमेर
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