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Monday, April 20, 2020

हमारी प्रकृति

  ▪   ▪▪कविता▪▪    ▪
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धूप है कहीं पर  कहीं पर छांव है 
कहीं हैं शहर तो कहीं पर गांव है
आदमी है इस जहां में,
चरिंदे और परिंदे 
शजर ,फूल , फल और 
बदलते मौसम के दाव है


आफताब की किरण ,
जो इशारा है सहर का 
बारिश से रूप निखरे,
सागर ,नदी ,नहर का 
सब जरूरत है सभी की 
जिसमें समर्पण का भाव है


चांद,चांदनी है ,
फिजा में रागिनी है 
पर्वत ,पहाड़ ,पानी ,
हवा प्राण दायिनी है 
पथरीली वादियों में 
जिसका दिखता जमाव है


इंसान की छेड़खानी
सोची-समझी नादानी 
बना रही प्रकृति के 
चेहरे पर बदनिशानी 
हर चीज में मिलावट 
इसे कुरेदते घाव हैं


बाढ़,अकाल,महामारी 
भूकंप और बलाएं 
मंदिर,मस्जिद ,गुरुद्वारे 
व पूजा,अरदास,दुआएं 
इन इंद्रधनुषी तस्वीरों से 
इसका गहरा जुड़ाव है


आदमी जिसे लूटता,
लोभ,मोह ,स्वार्थ से 
यह धर्म का पर्याय ,
है सिर्फ पुरुषार्थ से 
करना सदुपयोग ही ,
बस इसका बचाव है


       अनवर हुसैन 
  सरवाड़ जिला अजमेर 


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Aksharwarta International Research Journal, April 2024 Issue