Impact Factor - 7.125

Monday, April 20, 2020

कविता         भूख          (स्वरचित) 

कविता         भूख          (स्वरचित) 


महज फकत एक रोटी लगती मिटाने पेट की भूख। 

हजार कोशिश करने पर नहीं मिटती मृगतृष्णा की भूख।। 

घर रहने की ताकीद में बन रह रही बाहर घूमने की भूख। 

संग रहने की सौगात में क्यों नहीं बढ़ती परिवार

संग की भूख।।

मजदूर सर्वहारा वर्ग था प्यारा आज क्यों सताती उसे भूख।

सहारा न मिलता देख बढ गयी है उनको अपने घर जाने की भूख।। 

जमाखोरी काला बाजारी मुसीबत में दुगने दाम बसूलने की भूख। 

क्यों न बढाते धर्म कर्म समाज सेवा से दूसरों को खुश करने की भूख।। 

 

हीरा सिंह कौशल

गाँव व डा महादेव तहसील सुंदर नगर जिला मंडी हि प्र 



No comments:

Post a Comment

Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal (November - 2024 Issue)