Impact Factor - 7.125

Sunday, May 17, 2020

मरुस्थल सा मैं

मरुस्थल  सा  जीवन  है मेरा,पूर्णतया  निराशा  भरा,

फिर भी कभी-कभी कुछ ओश की बूंदों से मिलता हूँ।

 

सोचता  हूँ  ,  समेट  लू  सबको  अपनी  आगोश  में,

मेरे गर्म एहसास से मिलकर बूंदे भाँप बन उड़ जाती है।

 

गर्म रेतीले मरुस्थल सा मौन जीवन के साथ चल रहा है।

कभी-कभी शाम की ठंडी हवा के मुखर झोंके से मिलता हूँ।

 

अक्सर सोचता हूँ,तोड़ दू सारी बंदिशे अपने मरुस्थल होने की,

बस इन गुदगुदाती ठंडी मुखर हवाओ में अविरल बहता जाओं।

 

 

 

नीरज त्यागी

ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).

Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal August - 2024 Issue