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Friday, June 5, 2020

कविता. मन का चैन

कविता. मन का चैन


झील गहरी आंखों का जादू करें मन को बैचेन। 

अधर मुस्कराये नयन की बोली से मन को चैन।।

सुरमई शाम छिप रहा सूरज आ रही मद भरी रैन।

कुसुम पंखुड़ियों में बंद मधुप रसास्वादन करे सारी रैन।। 

सूरज की किरणें कुसुम पे पडे मधुप भागे कर बैचेन। 

मधुप का इंतजार करते राह तकते तकते थक गए नैण।। 

बदली देख पपीहा मांगे नीर बूंद खोल के नैण। 

घटायें बरसे पपीहा तरसे न मिले नीर बूंद मन हो बैचेन।। 

तेरी सुरीली आवाज की खनक कर दे दिल मन बैचेन।। 

बन संवर के इठलाये गहरी नजर कर दे मन को बैचेन।। 

 

हीरा सिंह कौशल गांव व डा महादेव सुंदरनगर मंडी


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Aksharwarta International Research Journal August - 2024 Issue