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Friday, June 5, 2020

विश्व पर्यावरण दिवस(5 जून) एवं कबीर जयंती पर विशेष रचना

विश्व पर्यावरण दिवस(5 जून) एवं कबीर जयंती पर विशेष रचना

 

   धरती की करुण पुकार

 

पर्यावरण के सामने  , संकट है गंभीर

प्रदूषित हो गए है आज हवा,थल,नीर ।।

 

चला रहें पेडों पर अॉरी,कुल्हाड़ी,तीर

स्वार्थ में  खो गए,न जानी इनकी पीर ।।

 

जंगल से गायब हो गए हाथी,शेर और मोर 

रहे ये कैसे जब न हो पेड,पक्षियों का शोर ।।

 

धरती रही पुकार बचा लो मुझे नंदकिशोर

पेडों में है मेरे प्राण , पेड लगाओं चहुँओर ।।

 

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 मन  का  आइना ,  दोहा  मन  की  पीर ।

कभी हाथ का दीप हैं ,कभी बने शमशीर ।।

 

बहता तो दोनो जगह ,नदी,नयन में नीर ।

एक बुझाता प्यास को,एक बहाता पीर ।।

 

दर्द सिंधु - सा हो गया , गहन  और  गंभीर ।

तब गीतों में बूँद - भर, छलका उसका नीर ।।

 

कष्ट  चुनौती  मानिये , कहते  पीर , फकीर ।

मरने कभी न दीजिए ,निज आँखों का नीर ।।

 

दोहा - गीत के फेर में ,  उलझें  राँझा-हीर ।

अर्थ  प्रेम  का  बाँचने ,आओं पुनः कबीर ।।

 

हमने   नापी  उम्र-भर , शब्दों  की  जागीर ।

ढाई आखर लिख हुए ,जग में अमर कबीर ।।

 

पीड़ा जब मन में बसी ,तन-मन हुए अधीर ।

रोम - रोम गाने लगा , बनकर  दास कबीर ।।

                  गोपाल कौशल

              नागदा जिला धार म.प्र.


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Aksharwarta International Research Journal, April 2024 Issue