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Saturday, July 18, 2020

बाल कविता - कालू बन्दर

बाल कविता - कालू बन्दर


कालू बंदर है  बहुत परेशान,
भारी गर्मी से वो होता हैरान।
बादल कभी - कभी है दिखते,
ना जाने फिर क्यों नही टिकते।


प्रभु से फिर करने लगा गुहार,
प्रभु कर दो बारिश की बौछार।
उमड़ - घुमड़ कर बादल आये,
कालू झूम-झूम कर नाचे गाये।


तन - मन कालू के हो गए तृप्त,
बारिश जंगल मे हुई जबरदस्त।
दूर हो गयी जंगल से गर्मी की मार,
कई  दिन  बरसे  बादल  बारम्बार।


नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).


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