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Saturday, July 25, 2020

दिहाड़ी मज़दूर का राशन

दिहाड़ी मज़दूर का राशन


 


श्मशान घर के पास


और उन तमाम जगहों पर


जो खाली थीं


विवादित ज़मीनें


या बंद हो गए


सरकारी दफ्तर


पुलों के नीचे


वे बैठे रहे लगभग


छिपकर


कि खदेड़ न दे


उन्हें फिर


सत्ता की पुलिस


 


वे बैठे रहे भूखे


एक के बाद दूसरे दिन चुपचाप


 


आखिर, उनके लिए


राशन लेकर


क्यों नहीं आयी


विपक्ष की एक भी पार्टी?


 


यह सम्पूर्ण ट्विटर पर


सरकार की लगातार


हेकड़ी बजाने से


बेहतर काम होता


 


क्या उन्हें बदलनी नहीं चाहिए


अपनी कैंपेन स्ट्रेटेजी?


 


 


कल के लिए


 


बिना घोषित किये ही


तुम्हें यतीम


उन्होंने सच बना दिया है


यतीम तुम्हें


 


तुम उन्हें मानना बंद कर दो


माई बाप अपना


छोड़ दिया है


तुमने पुकारना उन्हें


साहेब और हुज़ूर


और तुम्हें पूरा हक़ है


एक व्यवस्था की अपेक्षा का


लेकिन अनुपस्थिति में उसकी


और यों भी


 


खुद को तैयार करो


अचानक की एक ऐसी


दुनिया के लिए


जो सच कल्पनाओं से परे है


और हो सकती है


प्रकट कभी भी


 


जिसमें नहीं होंगे रोज़गार के कोई साधन


युद्ध बंदी होगी


एक ऐसी महामारी


जिसका इलाज केवल पैसों से


नहीं हो सकेगा


 


यह दुनिया भर के नेताओं की


साजिशों की दुनिया है


मज़दूरों


उन्हें बनानी थीं कुछ


नीतियां, पर्यावरण सम्बन्धी


लेकिन, यह उनके अभिवादन


आलिंगन, हैंडशेक और नमस्कार के बाद


अस्त्र प्रदर्शन की दुनिया है


और तुम बिल्कुल अपने भरोसे


जो भी करो


आज के लिए नहीं


अपने कल के लिए करो!


 


कल के लिए दाना पानी


कल तुम्हारे बच्चे का दिन


कल की तुम्हारी उम्मीदों की दुनिया


और कुछ योजनाएं


बिल्कुल तुम्हारी अपनी!


ये तुम्हें ही करना है


मज़दूरों!


तुम अगर इतनी बड़ी


अट्टालिकाएं बना सकते हो


 


तो ज़रूर बना सकते हो


अपना आज ही नहीं


कल भी!


 


------------ पंखुरी सिन्हा


 


 


 


 


 


 


 


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Aksharwarta International Research Journal, April 2024 Issue