ग़ज़ल
बहर-2122 2122
दूर है मुझसे खुशी क्यों
बिखरी सी है ज़िन्दगी क्यों
चार दिन जीना है सबको
दिल में फिर ये दुश्मनी क्यों
रोशनी दी जिसने हमको
उसके घर में तीरगी क्यों
आदमी का खूँ है पीता
अब यहा हर आदमी क्यों
आधुनिकता के भँवर में
हो गई गुम सादगी क्यों
✍जितेंद्र सुकुमार 'साहिर '
शायर