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Tuesday, October 20, 2020

*गीत* *आजादी के दीवानों का*


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*आजादी के दीवानों का,*
*नाम सुनहरा हो गया।*
*त्याग,बलिदान की मूरत,*
*का रंग गहरा हो गया।*


*जब जब दुश्मन आंख दिखाएं*
*खून खौलने लगता है।*
*भूल के सबकुछ,इन्कलाब फिर,*
*सर  बोलने  लगता है।*
*मिला है जब से रंग बसंती*
*रंग लहू का गहरा हो गया ।*


*आन वतन की,शान वतन की,*
*हमें जान से  प्यारी हैं।*
*जो काम न आए  इस वतन के,*
*तो जीना भी गद्दारी है।*
*इंकलाब की शमां से रोशन*
*दिल सहरा-सहरा हो गया ।*


*सरफ़रोशी चिंगारी को ,*
*शोला  बनाएं  रखना है*
*दुश्मन  है  गद्दार  बहुत,*
*खुदको जगाए रखना है*
*गुज़रे क्षण में मिलें धोखों*
*से,जख्म गहरा हो गया हैं।*


*आजादी  की  राहों  में ,*
*तन मन धन की बारी है।*
*तेरा  तुझको अर्पण हैं ,*
*अपनानी समझदारी  है।*
*जो सुनके दिलकी,अंजान*
*बने,सच में बहरा हो गया।*


*अनवर हुसैन*
सरवाड़ अजमेर



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Aksharwarta International Research Journal, April 2024 Issue