Impact Factor - 7.125

Friday, January 3, 2020

पर्दा (लघुकथा) 




आजकल जमाने का दस्तूर दिन प्रति दिन बदलता जा रहा है। जमाना नित नयी-नयी ऊंचाइयों को छू रहा है। ऐसे माहौल में पढा लिखा नौजवान महेश की हिमाचल के एक कस्बे में अध्यापक की नौकरी लग गयी। कस्बा ज्यादा संपन्न तो था नहीं पंरतु जरूरत की चीजें लगभग मिल जाया करती थी। महेश ने प्रगतिशील विचारों की सभी कायल थे।उसे लगता था मानों संस्था  हर जन प्रगतिशील विचारों से लवरेज है। अक्सर देखा जाता कई संस्थाओं में देखा जाता है उंच-नीच जात-पात की बातें होती हैं परंतु महेश को यहाँ बिल्कुल ऐसा कुछ नहीं लगा। महेश ने जो सुना था यहां उसके बिल्कुल विपरीत था अर्थात महेश यहां अपनी नयी रोशनी विचारों के साथ प्रसन्न था। एक दिन विद्यालय के स्टाफ के किसी सदस्य के घर के सदस्य की मृत्यु हो गयी। महेश वहां विद्यालय के साथियों सहित शोक प्रकट करने के लिए चला गया। रास्ते में जाती बार वहां रास्ता बनाते हुए मजदूर मिले आगे जाकर विद्यालय के सदस्य के घर थे जहां शोक प्रकट करने के लिए जाना था। वह व विद्यालय के  सभी सदस्य शोक प्रकट कर रहे थे तभी वाहर एक आदमी आया कि बाहर वाले आये हैं दुःख जताने तो विद्यालय के एक साथी ने कहा कि यहां जगह कम है कोई बात नहीं हम बाहर चले जाते हैं।शोक संतप्त परिवार में से घर के एक सदस्य ने कहा कि  मां आप बाहर वालों से बात कर लो। वह उठी और उनसे बात करने के लिए चली गई। फिर उस सदस्य ने कहा कि गुरु जी यहां पर्दा रखना पड़ता है स्कूल ऐसी बातें नहीं कर सकते हैं। वहां किसी को कुछ नहीं बोल सकते यहां हमें कोई नहीं रोक सकता है। बेचारे गुरु जी कुछ नहीं बोल सके। दुःख जताने बाद जैसे निकले तो महेश की नजर उन रास्ता बनाने वाले मजदूरों पर पड़ी जो भोलेपन से पर्दे की हकीकत से अनजान बड़ी शिद्दत से दुःख जता रहे थे। महेश का भी माथा ठनका और दुनिया की हकीकत से रूबरू हो गया। 

 

हीरा सिंह कौशल गांव व डा महादेव सुंदरनगर मंडी पिन१७५०१८

मोबाइल फोन 9418144751 




Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal, April 2024 Issue