भारत के विभूति , निर्भीक लक्ष्य संधान करो,
मतिधीर दक्ष प्रवीण सूर, प्रवीर उत्सर्ग आह्वान करो ।
अनुरक्ति भक्ति प्रगाढ़ करो , खोलो अराति अवनति के द्वार,
कलुषित रिपु गेह प्रविष्ट करो , प्रतिशोध अनख तीखा प्रहार ।।
निचाकुल आवरण हरण करो , प्रकीर्ण करो नापाक प्रकाश,
स्फूर्ति सुभट्ट प्रविष्ट करो , कर दो आतंक का सर्वनाश ।
अवतरण सार्थक हो तेरा, पुरुषार्थ हो आरुण जग ललाट,
महिशेष स्वरूप प्रचण्ड धरो , कर दो द्रोही के बन्द कपाट ।।
प्रतिवार करो प्रतिबार असाध्य, हो जाये मनोरथ होनहार,
हौसला शून्य उत्साह न हो , कर दो विषाद सरहद के पार ।
ओछा विवेक आतंक भक़्त , जब तक न बोले त्राहिमाम,
हे ! वीर विलम्ब करो न डरो , बढ़ते ही रहो तुम अ विराम ।।
बढ़ते ही रहो तुम अ विराम...................
कवि विपिन विश्वकर्मा "वल्लभ"
कानपूर देहात उ प्र
8601114755
No comments:
Post a Comment