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Sunday, February 23, 2020

कहानी : नदी किनारे कुछ पल

आज का दिन बहूत ही अच्छा था ,क्यों कि आज सुबह से रिम-झिम बारिश हो रही थी | कभी-कभी थोड़ासा विश्राम लेती और फिर नयी उत्साह से शुरू हो जाती | पता नही क्यों पर अपनी गति वही रखती ऐसे मौसम मे कही घूम 

कर आने का मन कर रहा था | तो मैं उत्साह से घर से बाहर निकल आया और नांदेड शहर में गोदावरी नदी के तट पर विराजमान हुजूर साहिब गुरुद्वारा हैं | तो मैने वहाँ जाने का सोच लिया और चला गया क्यों कि यह रिम-झिम बारिश और वहाँ की बहती नदी और दौड़नेवाली हवा लाजबाब..! ऐसा मन मे उत्साह भर देती की यूँ हि इच्छा ना होकर भी होटो पर पंक्तियाँ अपने आप उभर कर आ ही जाती सच्च कहूँ तो मुझे ऐसा मौसम बहुत ही अच्छा लगता हैं | इसीलिए मैं घूमने आया था,वहाँ पहुँच कर सीढ़ियों से नीचे उतर रहाँ था | वह बहते जल की ध्वनि और दौडनेवाली हवा जबरदस्ती से गालो को चूम रही थी | बारिश के कारण भीड़ कम थीं जो भी थे वह कॉलेज के प्रेमी युगल  और नयी शादी के बंधन में बंधे हुऐ जोड़े रिम-झिम बारिश का मजा ले रहे थे | इसके बीच मैं अकेला छाते के साथ था | फिर भी मैं खुश था क्यों कि मेरी वाली मेरे साथ नही थी , मगर दिल के पास थी, जो कि ओरो की साथ थी मगर दिल के दूर थी |

         अचानक बारिश बंद हो गयी और हवा  का उत्साह बढ़ गया वह पागल सी दौड़ रही थी | तभी एक महिला मेरे पास आयी और कहने लगी, " कहाँ के हों..."

    " जी मैं यहाँ का ही हूँ, और आप कहाँ से...", "...मैं पंजाब अमृतसर से इधर गुरुजी के सेवा में आयी हूँ , सभी जोड़ियाँ है मगर तुम अकेले क्यों ?"

     महिला की बाते सुनकर मैं बिल्कुल अकेला हो गया, क्यों कि मैं यहाँ... फिर मैने कहाँ, " मैं अकेला कहाँ मेरे साथ मेरा छाता हैं, और साथ रहने वाली दिल मे है, तो मैं अकेला कैसा देखो हवा भी हैं ,अब तो आप भी हों... देखो मैं अकेला नही यहाँ की सभी प्रकृति मेरे साथ हैं ...|"

     महिला ने सभी गंभीरता से सुन लिया और कहने लगी ,

   "अच्छा हैं... अकेले हो मगर खुश हो...मुझे अच्छा लगा तुमसे मिलके और हाँ तुम्हारा बोलने का ढंग एकदम नाटकीय , क्यों क्या करते हो तुम |" इतना कहकर वह एकदम शांत हो गयी जैसे लगा कि उसने कुछ कहाँ  ही नही | "मैं हिंदी एम .ए प्रथम वर्ष में हूँ ,यहाँ के पिपल्स कॉलेज में युही घूमने आया था मैं यहाँ, आप क्यों आयी हो यहाँ...क्या आप अकेली हो या हैं कोयी साथ मे...|"

     उसने मेरी बातो को रोकते हुए कहाँ ," तुम्हारी तरहाँ ही घूमने आयी हूँ... न कोयी मेरे साथ है और नाही तुम्हारी तरहाँ दिल मे... बिल्कुल अकेली सिर्फ ईश्वर मेरे साथ है |"

 इतना कहकर वह उदास हो गयी फिर रुककर कहने लगी , " जो अकेले रहने में खुशी है...वह किसीके साथ... पता नही किसीसे जुदा होकर जीना मुश्किल है ... छोड़ो मैं भी ना देखो कितनी अच्छि हवा चल रही है | नदी का जल भी देखो मस्ती में

बहता हुआँ दिखाई दे रहा है| और ऐसे मोहल मे किसी अपने का हाथ, अपने हाथ मे हो और बहुत सी बातें हो...यहाँ घूमते-घूमते... चलो तुम्हरा नाम तो बताओ , मेरा भी एक बेटा हैं तुम्हारी तरहाँ अमृतसर में पढाई करता है...|"

        मैंने डरते हुऐ स्वर में कहाँ ,"मेरा नाम मारोती है और आपका " उसने मेरा नाम सुन लिया और मन ही मन मुस्कायी

मेरी तरफ देखकर कहाँ, "मैं बताती हूँ चलो घूमते- घूमते बाते करते है|" इतना कहकर मेरा हाथ पकड़कर मेरे साथ चलने लगी मैं भी उसके साथ घूम रहाँ था | क्यों कि वह मेरे माँ  के उर्म की थी | और उसने भी कहाँ था कि मेरा भी एक बेटा है | तो उसने भी बेटा समझकर मेरा हाथ पकड़ा हो... हम चलने लगे तो एकदम सी हवा रुक गयी और धूप चमक उठी यह देखकर मुझे ऐसा लगा कि यह प्रकृति मुझपर नाराज हो गयी | चलते-चलते उसने कहाँ कि , " मेरे पास सबकुछ था, अब भी है मगर मन में बेचैनी... क्यों कि मेरे पास मेरा पति नही, इसलिए मैंने संसार का त्याग कियाँ और गुरुजी की सेवा में आ गयी | मगर अब तो यहाँ पर भी मन लगता नही , मैं यहाँ से भी बाहर निकलना चाहती हूँ ,पर कैसे ... कहाँ जाऊँ , जहाँ से आयी हूँ वहाँ जाके क्या करूँ...क्यों कि मेरा सबकुछ खत्म हो गया है |"

वह बोलती रही और मैं सोचता रहाँ कि ऐसा क्यों कह रही है यह, कि मेरा पति नही और माथे पर तो भारतीय संस्कृति के नुसार बिंदी चमक रही हैं | इसे पुछू तो कैसे कही इसे बुरा तो नही लगेगा ? पता नही मेरा मन इसको यह सवाल पूछने को क्यों...|"तभी उसने कहाँ,

      "किस सोच में खो गए तुम, मैं बोलती रही और तुमने सुना भी या कुछ नही |" तो मैने भी धीमे स्वर में कहाँ,

      " तो क्यों छोड़कर आयी तुम यहाँ...इतना सबकुछ अच्छा तो था...मैं सुन रहाँ था ना... तुम्हारी बाते , यहाँ आना ही था तो ऐसे ही आसकती थी तुम सबकुछ त्यागकर आनेकी आवश्यकता क्या थी |"

      "क्या बताऊँ कुछ - कुछ परेशानियाँ रहती है...वह जीने भी नही देती और मरने भी नही देती चैन से इसीलिए मैने मेरा घर, खेत सबकुछ छोडा और यहाँ आयी... कुछ महीने अच्छा लगा मुझे पर अब... फिर वही बेचैनी दिन तो ढलता है, किसी तरहाँ मगर ... रात कैसे काटु यही सवाल हर पल सताता है , उधर मेरा बेटा जो कि इंटर पास हो चूँका वही अच्छे अंको से मैं उसे फोन पर बात करती हूँ...वहाँ का सभी खेत मेरे देवर देखते है | मेरा बेटा उनिके पास हैं... खैर छोड़ो मैं मेरा ही बता रही हूँ  तुम्हारा ही कुछ सुनाओ ना...|"

    " मेरा क्या..! बताना जो कुछ भी हूँ आपके साथ हूँ , मगर बताओ ना...की तुमने ऐसा क्यों किया...|" वे फिर से बोलने लगी,

     "तुम नही समझोगे हमारी बाते क्यों कि अभी तक तुम संसार से दूर ही हो इसीलिए मैं बताऊँ तो भी तुम्हें झूठ लगेगा और तुम मुझे गलत समझोगे फिर भी जो  है ईश्वर की कृपा अच्छा है, तुम्हारी भी कोई होगी ना...GF है तभी तो बिना ओठ खोले हँस रहाँ है चलो बताओ...|"

      उसका मुड़ अब एकदम फ्रेश हो चूँका का था| उसकी उदासी उससे दूर हो रही थी और वह खुशी की तरफ कदम बढ़ा रही थी | ऐसा उसकी बातों से और मेरी बातें सुनने के उत्साह से 

पता चल रहाँ था | तभी मैने चौक कर कहाँ , " क्या ? आपको तो अंग्रेजी भी आती हैं...फिर भी ऐसी हालत क्यों बनाई इसी कारण से हमारे देश की नारी आज भी...जितनी चाहें उतनी सफल नही ,ऐसी शिक्षा का क्या फायदा जो जिंदगी जीने के काम ना आऐं छोड़ो मुझे क्या मगर मेरी कोई अब GF नही... होती तो मैं यहाँ तुम्हारे साथ नही उसके साथ होता ,पर लगता है  यहाँ का मौसम देखकर की उसे फिर से मनाऊँ और पुराना रिश्ता नयी तरहाँ से आरंभ करूँ..."

       इतना कहकर मैं भावूक हो गया और कुछ बोल ना पाया... तो उसने कहाँ ," माँ से क्या छुपाना मान जाऐगी वह...अरे रुठ ही गयी है , जमाना तो नही छोड़ा उसने...सब्र कर, खुद पर विश्वास रख, वह मुझे कितना प्यार करती हैं यह मत देख , तू उसे कितना चाहता है,यह देख क्यों कि जिसका मन शांत हो ... उसके पास स्थिरता आती हैं, और स्थिरता जिसके पास उसीके निरंतरता , अखंडता रहती हैं | और यही चीजे रिश्तें निभाने में काम आती है इंनमेसे एक भी गुण कम हो गयाँ तो सभी रिश्ते बिखरते है , मगर मन की चंचलता पर जीत हासिल करो तो सबकुछ आसान होता है | चाहें वह कौनसा ही रिश्ता क्यों न हो वह प्यार का हो,या पति-पत्नि का हो...बस! इंसान के पास सब्र होना चाहिए , क्यों कि खुशी किसीकी मौजूदगी हासिल करने से ज्यादा उसका साथ महेसुस करने में है , मेरे पास सबकुछ था मगर मैं एक ही बात से चली आयी क्यों कि मेरे पास तभी यह गुण नही थे... अब आऐ...क्या फायदा... कुछ भी नही...| "

       इतना कहकर वह व्याकुल सी हो  गयी तभी मैने उसकी तरफ देखा तो, रंग गोरा , काले बाल और लम्बा सा नाक , हाथ मे चूडियाँ और मन मे अंधेरा ही अंधेरा था | अब मैं क्या बोलू कुछ मैने मुख से शब्द निकालने का प्रयास कियाँ मगर वह भी  असफल रहाँ | फिर भी मन मे उसका पति कहाँ चला गया यह जानने की उत्सुकता थी | मगर यह कैसे जानु..? अचानक धूप कम हो गयी और काले बादलों की काली सी छाया चहू ओर छाँ  गयी फिर से बारिश आने की संभावना दिखाई दे रही थी | लेकिन उस बारिश से जादा इसके आँखों मे पानी दिखाई दे रहाँ था | तब उसने कहाँ ,

       " लगता है बारिश आने वाली है, तुम भिग जाओगे चलो अंदर मंदिर में चलते हैं...अरे सुनो बातो-बातो में मैं तो मेरा नाम बताना भूल ही गयी चलो कुछ तो है मेरा नाम मगर तुम मुझे माँ समझ सकते हो |" 

     ऐसा कहकर उसने अपनी गर्दन निचे झुका ली और मंदिर की ओर कदम बढ़ाने लगी तभी बिजलियों कि चमक और मेघो की गर्जना बढ़ गयी सारा नदी का किनारा सुनसान हो गया सभी आस पास के  दुकानों में या इधर- उधर बारिश से बचने के लिए भाग गऐ बारिश धीरे-धीरे रौद्र रूप धारण कर रही थी | बहते जल की ध्वनि भी गुस्से में चिल्ला रही थी | और चमक ने वाली बिजली नदी के पानी में शितल हो रही थी और हम दोनों पता नही क्यों भिग रहे थे |

 नदी किनारे कुछ पल                           

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Aksharwarta International Research Journal May - 2024 Issue