Impact Factor - 7.125

Monday, March 23, 2020

"आस्था का व्यापार- उजले पाखंडियों की काली करतूतें "





"आस्था का व्यापार- उजले पाखंडियों की काली करतूतें "


आजकल ढोंगी साधुओं और धर्म गुरुओं की भरमार हो चुकी है ।खरपतवार की तरह उग आए हैं जहां तहां समाज में! आधुनिकता जो आदमी को अधिक से अधिक भौतिकवाद की ओर ले जा रही है आजकल जिस तरह नवयुवक  / नवयुवतियां पश्चिम का अंधानुकरण  कर रहे हैं बिना उचित-अनुचित का ख्याल कर बिना अपनी संस्कृति और सभ्यता का ध्यान रखे । आज  इस कारण से भी तनाव और अनगिनत परेशानियां उत्पन्न हो रही है और आदमी का  इन तथाकथित धर्म गुरुओं और साधु बाबाओ के  की शरण में जाने लगा, उनकी हकीकत और सच्चाई  जाने बगैर !


व्यक्ति आज के इस दौर में प्रसिद्धि दौलत,पद , प्रशंसा पाने की  दौड़ में शामिल हो गया है कोई भी रास्ता शॉर्टकट हो शीघ्रता से दिलवा दे यह सब , ढूंढता रहता है।


और उसकी इसी कमजोरी और मनोस्थिति  का फायदा  इन पाखंडी बाबाओं और साधुओं ने उठाकर  बेहिसाब संपत्ति  जमा की है ,अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया है और स्वयंभू सम्राट / भगवान बन अपने ऐशो-आराम, शानौ शौकत, भोगविलास के अकूत साधन एकत्रित कर लिए हैं।


  दोष अंधानुकरण करने वाले अंध भक्तों का भी कम नही, जो दुख का  निदान या महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति,छ्दम सुखों  के लिए , स्वयं के पुरुषार्थ और  परमात्मा  पर विश्वास न रखते हुए ना रखते हुए ऐसे साधु -बाबाओं के दरवाजे पर टेक लगाते रहते हैं।उनके झांसे में आ जाते हैं और इन्हीं जादूगर समझते हुए किसी चमत्कार की उम्मीद करते हैं।  समझने की बात  यह है कि  स्वर्ग नहीं धरती है  यहां बड़े महापुरुषों और भगवान तक को कष्टों का सामना करना पड़ा तो साधारण इंसान की बात ही क्या!!


क्यों नहीं हम अपने आप पर , विवेक ,बुद्धि ,मेहनत ,सच्चाई लगन ,भक्ति और शक्ति पर भरोसा ना करते हुए, असहाय निरूपाय ,बेबस किसी चमत्कार की उम्मीद करते हैं ,जैसे इन पाखंडी बाबाओं के हाथों में जादू की छड़ी है जो पलक झपकते ही छोटे-मोटे उपाय करने से सारी इच्छाएं पूरी कर देगी!


आधुनिकता और भौतिकवाद के चलते मनुष्य की इच्छाएं भी सुरसा के मुंह की तरह फैल गई है एक के बाद दूसरी और दूसरी से तीसरी ,चौथी और   अनंत। जो उसे कभी इस दर तो कभी उस दर भटकाती रहती हैं।


हमारे धर्म ग्रंथ सिखाते हैं सुख-दुख में निस्पृहऔर समभाव रखना ।थोड़ा मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं ।मन के हारे हार है ,मन के जीते जीत । जरूरत है अपनी अंतर्निहित शक्तियों को पहचानने, मनन, चिंतन करने , सकारात्मक सोच रखने , स्वयं में समस्याओं का समाधान खोजने की। बहुत सारी समस्याएं तो स्वाजनित हैं। जब हम भगवान में आस्था विश्वास खो देते हैं ,हमारा आत्मविश्वास डगमगा जाता है और हमारे चीजों को सही परिप्रेक्ष में देखने की शक्ति झीण हो जाती है ।


भगवान भी सब कुछ बिना किसी मूल्य के हर एक मनुष्य को प्रदान कर रहा है यह हवा, पानी, धरती  लेकिन आज धर्म के नाम पर कारोबार चल रहा है। कृपा की दुकान खड़ी  है । पैसा फेंको ,कृपा प्राप्त करो   अगर इनके व्यवसाय को फलता-फूलता देखना है ,तो  इंटरनेट पर इनकी वेबसाइट खोलें ,आधुनिक तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है किसी भी प्रोफेशनल व्यवसाई और विक्रेता से कम नहीं है !कृपा के खरीददार को लुभाने हेतु आकर्षक प्रस्ताव और फीस का पूरा प्रबंध किया गया है।भक्तो से पैसा लेकर उन्हें थ्री स्टार,फाइव स्टार सुविधाएं भी दी जाती हैं ।ढ़ोगी बाबा ,साधुओं के खजानों को भर रही है अज्ञानी जनता।


आलस, ईर्ष्या ,लालच, स्वार्थ, मक्कारी, भ्रष्ट आचरण, चरित्रहीनता, हिंसा ,क्रोध हमारे भीतर ही है और उन्हें दूर किए बगैर हम सारी खुशियां पा लेना चाहते हैं किसी भी रास्ते पर चलकर येन-केन-प्रकारेण !! हमारी स्वार्थ गत सोच ,लालच हमें चेतना के निम्न स्तर पर ले जाकर  तामसिक कर्म करवाती है और हम खुद के बनाए दुखों के जाल में फंसते हैं, फिर ऐसे ढोंगी साधु बाबाओं की शरण में जाकर सुखी होना चाहते हैं जो प्रकृति के नियम के खिलाफ है।


क्या   उन सुखों को पाने के हम सच्चे हकदार हैं जिन्हें पाने हेतु हम लगातार भटके हैं , दौड़ लगा रहे हैं  ! क्या हम भगवान के सच्चे और ईमानदार भक्त हैं !इतने शुद्ध, पवित्र हैं  कि सारी खुशियां हमारे दामन में चली आएं! बहुत सारी अंध गलियों में भटक रहा है आज का आदमी।  उसकी कमजोरी, विवेकहीनता  अज्ञानता का फायदा उठाकर कारोबार कर रहे हैं ढोंगी साधु ।
खूब प्रचार प्रसार हो रहा है विभिन्न चैनलों माध्यमों से धर्म के कारोबार का  ,भक्तों से पैसा लूट कर उन्हें ही रिश्ता फाइव-स्टार की सुविधाएं दी जा रही हैं और अपने लिए भोग विलास के महल खड़े किए जा रहे हैं। पहले कभी नहीं सोचा गया कि सत्संग में जाने का कथा सुनने का मूल्य चुकाना है!
सत्संग के अच्छे और सच्चे तत्वों को  आत्मसात करना और तत्सम्मत जीवन में व्यवहार ,एक आदर्श , विवेक पूर्ण, संतुलित और परिपूर्ण जीवन जीना ,यही था इसका सार ।


अब दुकानें खुल गई है कृपाएं बिक रही हैं ।नित्यानंद आसाराम, रामपाल, रामवृक्ष राम रहीम और जाने कितनों ने कर दिया है धर्म को बदनाम! 


धर्म है  धारणा ,कहां से आई इसमें पाखंडी की अवधारणा!!


अभी कितने और रावण राम के वेश में भारत में जमे हैं ! कितने और गंदे धंधे अंधेरी गुफा में छिपे हैं ! कितनी और महिलाओं निर्दोषों का शोषण और दुराचार बाकी है!  कितने अंधभक्त, मूर्ख, अज्ञानी तथाकथित धार्मिक भेड़चाल में लगे हैं  ! अभी कितने और कंस कृष्ण का रूप ले रहे हैं !
कब शीघ्र और सटीक न्याय की व्यवस्था होगी और ऐसे अपराधियों को कड़े से कड़ा दंड तुरंत किया जाएगा!


जो पाखंडी, दरिंदे बाबा गुफा से बाहर लाए जा चुके हैं उन्हें और जो अभी तक बाहर उजले बने हुए ,काली गुफाओं में छुपे हुए हैं,  उन्हें भी बाहर निकाला जाए और भारतीय धर्म ,संस्कृति गरिमा ,श्रेष्ठ ऋषि परंपरा और भारतीय धर्म संस्कृति गरिमा श्रेष्ठ ऋषि परंपरा को धूमिल करने उपहास, अपमान करने अपनी मानसिक विकृति और व्याभिचार का गंदा रंग मिलाने, महिलाओं का शोषण और दुराचार करने जैसे जघन्य अपराधों के लिए उदाहरण स्वरुप कड़ा से कड़ा दंड दिया जाए ,ताकि कोई  पाखंडी, दुराचारी साधु का चोंगा ओढ़ भारतीय धर्म, संस्कृति, अस्मिता के साथ खिलवाड़ न कर सके।


@ अनुपमा श्रीवास्तव'अनुश्री, साहित्यकार, एंकर, कवयित्री, समाजसेवी । भोपाल
Mob- 8879750292


 

 



 



Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal May - 2024 Issue