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Saturday, April 18, 2020

आज की नारी 

सदियों से नारी शोषित दमित रही है और हमनें मांन लिया कि दर्द ही औरत की नियति है और कविताओं में कहानियों में भी उसके दर्द को महिमा मंडित करके प्रस्तुत करते रहे 

लेकिन आज की नारी वह नारी नहीं है जिसका चीर हरण भारी सभा में हुआ था ना ही वह नारी है जिसको उसका अपराध  बताये बिना त्याग कर बाल्मीकि जी  के आश्रम में छोड़ दिया गया था बल्कि आज की नारी का रूप रणचंडी का है जो अपनें अपमान का बदला वह स्वंय लेती है और जुल्म का प्रतिकार करती है 

आज की नारी वैज्ञानिक है डॉक्टर है इंजीनियर है एस पी है कलेक्टर है न्यायाधीश है  प्रगति के इस युग में वह हर छेत्र में अग्रिणि है पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है ऐसे में हम साहित्यकारों कवियों का कर्तव्य है कि हम उसके इन रूपों को भी अपनी कविताओं कहानियों में उजागर कर पूर्व में किए गये उसके साथ अन्याय का प्रायश्चित करें ना कि उसके दर्द को उसकी पीड़ा को महिमामंडित एवं डेकोरेटेड कर के उसे यह याद दिलाते रहें कि वह अबला है असहाय है पुरुषों पर आश्रित है हमें ऐसे समय में उसका साथ देंना चाहिए ताकि वह अपनें पैरों पर स्वंय खड़ी हो सके 

आज की नारी को स्वंय भी समझना चाहिए कि यह समय उसकी पारीक्षा का है और उसे स्वंय भी इस परीक्षI को अच्छे नंबरों से उतीर्ण होँना है ना कि फ़ैशन की अंधी दौड़ में अपने शरीर का भौंडा प्रदर्शन कर के नारी के  देवी रूप को लजाना हैं तभी हम गर्व से कह सकेंगे यत्र नारी पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता 

 

डॉ रमेश कटारिया पारस 30, गंगा विहार महल गाँव ग्वालियर म .प्र .

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Aksharwarta International Research Journal, April 2024 Issue