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Saturday, April 18, 2020

ग़जल

सूरज के संग टकरा जाना खेल नहीँ होता 

शोलों पर चल कर दिखलाना खेल नहीँ होता 

 

खेल नहीँ होता कोई लहरों से अठखेली करना खेल नहीँ होता 

तूफानों में नाव चलाना खेल नहीँ होता 

 

ऊँची ऊँची बाते तो सब लोग यहाँ पर करते है 

कह कर उसको कर दिखलाना खेल नहीँ होता 

 

फूलों के संग गुजर बसर तो कोई भी कर लेता है 

कांटों के संग दिल बहलाना खेल नहीँ होता 

 

अपनो को ही गले लगा कर गाँधी वादी बनते हो 

दुश्मन कोभी गले लगाना खेल नहीँ होता 

 

भारी भरकम शब्द सजाकर गीतकार बन बैठे हो 

सहज सरल शब्दो से रिझाना खेल नहीँ होता 

 

अपने मन में इर्षाओ की गाँठ लिए बैठे है लोग 

कुंठाओं की बर्फ गलाना खेल नहीँ होता 

 

मैल ह्रदय में भरा हुआ हो वह फ़िर भी छुप सकता है 

धवल वस्त्र पर दाग़ छुपाना खेल नहीँ होता 

 

इक दूजे को प्यार करेंगे आपस में समझौता है 

समझौते को सही निभाना खेल नहीँ होता 

 

उल्टी सीधी कूद फांद तो कोई भी कर लेता है 

ग़ज़ल सुनाकर रंग जमाना खेल नहीँ होता 

 

ग़ज़ल 

 

चरणों का इक दास भी होना मँगता है 

कुछ तो अपने पास भी होना मँगता है 

 

अल्लम गल्लम बहुत भर लिया झोली मेंं 

अब थोड़ा सा ख़ास भी होना मँगता है 

 

काजू और बादाम रखे हैँ प्लेटों मेंं 

हाथों मेंं अब ग्लास भी होना मँगता है 

 

काँपते हाथों से क्या क्या कर पाओगे 

ज़ीवन मेंं कुछ पास  भी होँना मँगता है 

 

पतझड़ ही पतझड़ अपने ज़ीवन मेंं 

ज़ीवन मेंं मधुमास भी होँना मँगता है 

 

मीरा राधा  रुकमणि सब आ गईं यहाँ 

व्रन्दावन मेंं रास भी होना मँगता है 

 

 

ऊपर वाला पार लगायेगा तुमको 

इतना तो विश्वास भी होना मँगता है 

 

जिन गुनाहों की सज़ा मिली है तुमको 

उन सब का एहसास भी होना मँगता है 

 

कब तूफ़ान मचेगा अपने ज़ीवन मेंं 

इसका कुछ आभास भी होना मँगता है

 

राम नें फ़िर से जन्म लिया है धरती पर 

अब के फ़िर बनवास भी होना मँगता है 

 

जानें क्या क्या हज़म कर गये नेता जी 

अब तो इक उपवास भी होना मँगता है 

 

कौन किसी को याद रखेगा पारस जी 

अपना इक इतिहास भी होना मँगता है

 

ग़ज़ल 

 

कभी तो ऊपर जाकर देखो 

दिल मेंं भी समाकर देखो 

 

बहुत खुला आकाश मिलेगा 

अपने पर फैला कर देखो 

 

मुद्दत हुईं ज़मी पर चलते 

स्वर्ग मेंं जगह बना कर देखो 

 

नाच  रहे हो जिनके  इशारों पर 

उनको भी कभी नचा कर देखो 

 

गुमसुम से क्यूँ पड़े हुवे हो 

कभी तो रास रचा कर देखो 

 

सबकी सुनता है  ऊपर वाला 

दिल से शोर मचाकर देखो 

 

मीठा मीठा खाया अब तक 

अब कड़वा भी खा कर देखो 

 

हरदम  क्यूँ रूठे रहते हो 

सबसे  हाथ मिला कर देखो 

 

दिलसे दिल मिल जाएँ शायद 

कभी  तो हाथ बढ़ा  कर देखो 

 

सपनों मेंं खोये रहते हो 

सच से आँख मिला कर देखो 

 

ग़ज़ल 

 

नदिया जब भी उफान पर आई 

खेत की मिट्टी कटान पर आई 

 

खड़ी फ़सल की देख भाल करने को 

रात की रोटी मचान पर आई 

 

फूल की तरह खिल गए चेहरे 

फ़सल जब खलियाँन पर आई 

 

हमने पूरी की है अपने बचचौ की 

जो भी ख्वाइश जुबान पर आई 

 

लोग उसका मोल भाव करने लगे 

अस्मत जब भी दुकान पर आई 

 

मरते दम सिकंदर भी हो गया बौना 

जब उसकी मिट्टी कब्रिस्तान पर आई 

 

हमने सर भी कटा दिए पारस 

बात जब आन बान पर आई 

 

 

ग़ज़ल 

 

 

अपनों से जब दूर पिताजी होते हैँ 

बेबस और मज़बूरपिताज़ी  होते हैँ 

 

बेटे साथ खड़े होते हैँ जब उनके 

 

हिम्मत से भरपूर पिताज़ी होते हैँ 

 

दादाजी से मिलनें जब भी जाते हैँ 

 

थक कर के तब चूर पिताज़ी होते हैँ 

 

अम्मा जबभी कोई फरमाईश करतीं हैँ

 

तब कितने मज़बूरपिताज़ी होते हैँ 

 

बेटे बहुएँ मिलकर सेवा करते हैँ 

 

ऐसे भी मशहूर पिताज़ी होते हैँ 

 

बच्चों के संग मेंं बच्चे बन जाते हैँ 

 

खुशियों से भरपूर पिताज़ी होते हैँ 

 

पूरा कुनबा एक जगह जब होता है 

 

रौशन सा इक नूर पीताज़ी

होते हैँ 

 

हर ग़लती पर सबको टोका करते हैँ 

 

आदत से मज़बूर पिता ज़ी होते हैँ 

 

बहन बेटियों के लिऐ है प्यार बहुत 

 

पर पाकिट से मज़बूर पिता ज़ी होते हैँ 

 

बच्चे जब उनकी बात नहीँ सुनते 

 

हिटलर से भी क्रूर पिता ज़ी होते हैँ 

 

उदास देखते हैँ किसीको जब अपने घर मेंं 

 

तब ग़म से रन्जूर पिता ज़ी होते हैँ 

 

जब कोई अच्छी कविता लिख लेते हैँ 

 

कबिरा और कभी सूर पिताज़ी होते हैँ 

 

सारा दिन मेहनत करते हैँ दफ़्तर मेंं 

 

कभी अफ़सर कभी मज़दूर पिताज़ी होते हैँ  

 

डॉ रमेश कटारिया पारस 30,गंगा विहार महल गाँव ग्वालियर म .प्र .

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