Impact Factor - 7.125

Monday, April 13, 2020

जलप्रपात के स्वर

चित्रकूट में जो राग सुनी धीरे-धीरे,


तार तार से बनती है धार यह धीरे धीरे


खुद ब खुद छोड़ देती तान, बड़ी-बड़ी पत्थरों को यहां


परिचित से लगते हैं यह स्वर


जब प्रकृति स्वयं जाती है गुनगुनाती है|


लोग मदहोश हो जाते हैं प्रपात कि इस धार में


ढूंढता नहीं कोई उसमें भाषा जातीय अपना देश


जब प्रकृति स्वयं गाती है गुनगुनाती है|


गरजती उफनती प्रपात के फुहारों में अंतर्मन भिगो रहे होते हैं


तब हमें याद नहीं आता संगीत के सप्त स्वर, कान सप्तक सुन रहे होते


जब प्रकृति स्वयं गाती है गुनगुनाती है----


श्रीमती आशा रानी पटनायक,


स्टेट बैंक कॉलोनी लालबाग जगदलपुर जिला बस्तर छत्तीसगढ़


Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal, April 2024 Issue