3-लघुकथा - मैं किसी से नहीं डरता
राम और अमर बचपन के बहुत अच्छे मित्र हैं।दोनों इस वक्त दसवीं कक्षा के विद्यार्थी है।एक दूसरे से हर बात शेयर करते हैं।कोरोनावायरस संकट के समय जहां हर आदमी अपने-अपने घरों में रुका हुआ है और सिर्फ जरूरत के कामों से ही घर से बाहर जा रहा है।ऐसे दौर में भी अक्सर राम ने देखा कि अमर बिना मास्क लगाए घर से बाहर घूमता रहता है।
सब पाबन्दियों को नकारता हुआ वह अक्सर पार्क में सुबह और शाम घूमता नजर आता है।यहां तक कि अपनी रोज सुबह रनिंग करने की आदत के कारण पार्क में रोज रनिंग करने और योगा करने से भी बाज नही आ रहा है।
राम ने उसे बातों ही बातों में कई बार समझाया यार रनिंग और योगा का टाइम तो आगे बहुत मिलेगा। लेकिन इस समय थोड़ी सावधानी रखनी चाहिए और अपने घर में ही रहने की कोशिश करनी चाहिए और हो सके तो घर मे रहकर ही योगा करो।
राम ने उसे समझाया कि केवल जरूरी काम से ही बाहर निकलो।अमर बचपन से बड़बोला किस्म का लड़का है।उसने बड़े ही लापरवाही से राम को जवाब दिया और कहाँ "अरे यार कुछ नहीं होता मैं किसी से नहीं डरता। कोरोनावायरस मेरा कुछ नहीं बिगड़ने वाला,तुम बहुत ज्यादा डरते हो।
धीरे-धीरे जब लॉक डाउन का समय समाप्त होने का समय आया तो अचानक शहर के कुछ हॉट स्पॉट जगह को सील करने की खबर आई।राम ने अब भी अमर को समझाया,यार अब तो बहुत ही सावधानी रखने की जरूरत है।माना कि हमारा एरिया सील नहीं हो रहा लेकिन हमारी कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि उसको सील करने की नौबत ही ना आए।
फिर भी अमर ने राम की बात नही मानी उसका जवाब फिर वही था।अरे यार कुछ नहीं होता तू डरता बहुत है,जो होगा देखा जाएगा।अमर की लगातार इस तरीके की बातो से राम का भी मन को भटकने लगा।वह काफी समय से घर में पड़े-पड़े बहुत परेशान हो गया था।
उसने विचार बनाया कि वह भी अमर की तरह सुबह-सुबह घूमने जाएगा और कुछ रनिंग करने की भी कोशिश करेगा।अमर भी राम की इस बात से बहुत खुश था और शाम को दोनों ने पार्क में घूमने का विचार बनाया।सब लोग अंदर थे लेकिन दोनों पार्क में घूमने लगे।
आमतौर पर राम को घूमने फिरने और रनिंग की आदत नही थी।वह अपने शरीर पर ज्यादा ध्यान नही देता था।उसे लगा इस लॉक डाउन के समय मे वह भी अपने शरीर को काफी हद तक घूमने का आदि बना लेगा।खैर अमर पार्क में रनिंग करने लगा लेकिन क्योंकि राम को रनिंग करने की आदत नहीं थी तो उसने पार्क में धीरे धीरे चलना शुरू कर दिया।
कुछ देर बाद राम को पुलिस के गाड़ी की हॉर्न की आवाज जोर-जोर से सुनाई पड़ने लगी।राम बिना अमर की तरफ ध्यान दिए अपना धीरे-धीरे पार्क में घूम रहा था।अचानक पार्क के अंदर पुलिस वाले आ गए और ठीक राम के सामने खड़े हो गए।
राम ने चारों तरफ अमर को देखा तो उसकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।उसने देखा कि अमर बहुत तेजी से भागता हुआ पार्क के बाहर निकल गया और अपने घर की तरफ भाग गया।वह अब समझ गया कि एक शेखचिल्ली की बातों में आकर आज वह फस गया है।राम खुले पार्क में पुलिस वालों के हाथों दंड स्वरूप अपनी गलती पर उठक-बैठक लगा रहा था।उसने अपने कान पकड़े और पुलिस वालों से माफी मांग कर अपने घर की तरफ चल पड़ा।
*कहानी का सार सिर्फ इतना है कि हर समय लोगों की बातों पर ध्यान नही देना चाहिए और अपना दिमाग भी लगाना चाहिए।क्योंकि कुछ लोग अगर बातों को गलत तरीके से बता रहे हैं तो जरूरी नहीं है संकट पड़ने पर वह आपका साथ देंगे।ऐसे मित्रों से कान पकड़िए और इनकी बातों में ना आने का प्रयास करें।अक्सर ऐसे शेखचिल्ली आपको अपने इर्द गिर्द काफी दिखाई देते हैं।इनसे बचने का प्रयास करें।*
4-कोरोना को हराना है
चाहे छाये हर और सूनापन,मिलना हो जाये एक दूजे से कम।
कितना भी मन घबराए,चाहे कितनी भी दहशत बढ़ती जाए।
*करना है एक ही प्रण,किसी भी तरह कोरोना को हराया जाए।*
व्यवसाय कैसे चल पाएंगे और अब कैसे बच्चे पढ़ पाएंगे।
चाहे कितनी भी विपदाएं आये,घर मे मन कितना भी घबराए।
*करना है एक ही प्रण,किसी भी तरह कोरोना को हराया जाए।*
देश की लड़ाई लड़ते जाए,किसी तरह कोरोना को मार भगाए।
अंधकार से लड़ते जाए,नए उजाले की और बस बढ़ते जाए।
*करना है एक ही प्रण,किसी भी तरह कोरोना को हराया जाए।*
जब अकेले कुछ ना हो पाए,एक दूजे से क्यों ना मिल जाए।
एक दूजे हम समझाए,कोई भी बस घर से बाहर जाने ना पाए।
*करना है एक ही प्रण,किसी भी तरह कोरोना को हराया जाए।*
5-कोरोना
कोरोना ने आज करा दिया सबको ये एहसास।
धन दौलत सब मिथ्या,ना रहेगा कुछ भी पास।।
जीवन मे सब कर लो , अब प्रभु से ये अरदास।
सबको रखना सुरक्षित,सबको अपनो के पास।।
सबकुछ अब तुम त्याग दो,करो घर मे निवास।
कोरोना अगर हो गया , कोई ना आयेगा पास।।
आपस की दूरी बढ़ी , जब बढ़ी दौलत की प्यास।
मौत के एक एहसास ने किया सबको पास-पास।।
6-कोरोना का कहर
कोरोना के कहर से कांप उठा संसार।
अब भी संभल जाओ दुनिया के लोगो,
वर्ना चारो और मच जाएगा हाहाकार।।
देशभक्ति की बाते करते - करते जो कभी नही थकते।
वही किसी के समझाने पर अपने घर क्यों नही रुकते।।
प्रशासन को सख्ती करने पर क्यों करते हो मजबूर।
कुछ दिन की बात है प्यारो,रह लो एक दूसरे से दूर।।
विकट विपदाओं के घेरे में भारत माता आज घिरी है।
संकट की घड़ी में एक - दूजे से दूरी ही आज भली है।।
आओ मिलकर पूरे विश्व को ऐसा कुछ कर दिखलाये।
पूरे विश्व मे भारत माता की जय जयकार हो जाये।।
बस कुछ दिन घर रहकर अपने देश के काम आ जाओ।
दुनिया भर को गर्व तुम पर हो,ऐसा कुछ कर दिखलाओ।।
7-मरुस्थल सा मैं
मरुस्थल सा जीवन है मेरा,पूर्णतया निराशा भरा,
फिर भी कभी-कभी कुछ ओश की बूंदों से मिलता हूँ।
सोचता हूँ , समेट लू सबको अपनी आगोश में,
मेरे गर्म एहसास से मिलकर बूंदे भाँप बन उड़ जाती है।
गर्म रेतीले मरुस्थल सा मौन जीवन के साथ चल रहा है।
कभी-कभी शाम की ठंडी हवा के मुखर झोंके से मिलता हूँ।
अक्सर सोचता हूँ,तोड़ दू सारी बंदिशे अपने मरुस्थल होने की,
बस इन गुदगुदाती ठंडी मुखर हवाओ में अविरल बहता जाओं।
नीरज त्यागी
ग़ाज़ियाबाद ( उत्तर प्रदेश ).
मोबाइल 09582488698
65/5 लाल क्वार्टर राणा प्रताप स्कूल के सामने ग़ाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश 201001
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