शीर्षक - मेरे ये मौन शब्द..
जब भी मौन-भाषा
चुपचाप करती है संवाद ,
झंकृत होती हैं भावनाएं
और..
उद्वेलित मन
स्वीकार करता है सहजता से
सब कुछ !!
सुनों..
मेरे पास नहीं है कुछ
सिवाय,
इन भाव-विह्वल शब्दों के ,
..कि अभी गढ़ना है बहुत
..रचना है बहुत ,
बस, एक बार
स्वीकार तो करो
मेरे "ये शब्द" ..
मेरा ये मौन..!!
Namita Gupta"मनसी"
शीर्षक - इस बार..
सुनों..
नहीं कह सकते क्या
फिर से वही
जो नहीं कह पाए थे तब !!
..जो छूट गया था
बिना लिखे ही ,
रहा अनुत्तरित
हां, वही प्रश्र !!
क्या उगा सकते हैं
फिर से वही सपनें ,
बस, मिल जाना
हर हाल में तुम !!
और सुनों..
क्या नहीं कर सकते
ट्रैंसप्लांट्
प्रेम का !!
Namita Gupta"मनसी"
शीर्षक - वो कुछ खास पल..
रविवार-सोमवार की तरह
नहीं होते वो दिन..
कलैंडरों में नहीं छपतीं वो तारिखें..
घड़ियां नहीं बतातीं वो समय..
भीतर मन में गहरे कहीं
संदूक में बंद कर
फेंक आते हैं चाबी
दूर.. बहुत दूर ..
उन पलों की ,
कि रहते हैं फिर भी
पास.. बहुत पास..
वो कुछ खास पल !!
Namita Gupta"मनसी"
शीर्षक - टूटा हुआ तारा..
उस दिन..
अपलक देखती रही
इस नीले आकाश को ,
मापने लगी
अथाह सीमाओं को ,
..पहले तो
सिर्फ नीला ही था
फिर दिखने लगे एक-एक कर
तारे..
तारों के झुरमुट ,
एक कोने में
..वो अकेला सा चांद ,
और..
और एक टूटा हुआ तारा !!
.. महसूस करने लगीं हूं अब
कि दर्द भी देता है सुकून
कभी-कभी !!
Namita Gupta"मनसी"
शीर्षक - उस दिन ईश्वर को देखा..
वो तराशता था पत्थर
मूर्तियों में ,
कभी शिव..कभी राम..
कभी दुर्गा..कभी जीसस..
..और सारे ईश्वर ,
वो बेचता रहा..
लोग खरीदते रहे..
और..
"वो" बिकता रहा
खुलेआम ।
असंमंजस में हूं
बताओ ईश्वर कौन है इनमें !!
Namita Gupta"मनसी"
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