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Friday, May 22, 2020

कविता

कविता:-

         *"साथी"*

"बहके कदम जब मेरे यहाँ,

बढ़कर थाम लेना साथी।

संग-संग चल कर मेरे तुम,

सत्य- पथ दिखलाना साथी।।

छाए कटुता मन में जब जब,

छोड़ दूर ना जाना साथी।

सुना मधुर गीत यहाँ कोई,

मन को तुम बहलाना साथी।।

कहे न बेगाना कोई फिर,

वो राहें दिखलाना -साथी।

निभाये साथ जीवन में जो,

वो साथी तुम बनना-साथी।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःः         

 

कविता:-

     *"घर वापसी"*

"महामारी की बढ़ी चाल,

घर में रहे-सुरक्षित रहे-

तभी बचेगी जान।

फँसे है जो जहाँ कहीं,

वही रहे-

समय की करें पहचान।

घर वापसी की दौड़ में,

खो न जाना-

जान है-जहाँंन है इसे मान।

बेरोज़गार हुए लोग,

भूख से व्याकुल-

घर वापसी को चल पड़े इन्सान।

कब -कहाँ -पहुँचेगे वो-

इसका भी नहीं उन्हें भान।

घर वापसी होगी जरूर,

थोड़ा करो-

सब्र और ध्यान।

महामारी से बचने को,

घर में रहे सुरक्षित रहे-

तभी बचेगी जान।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःः         

 

कविता:-

        *"मन"*

"जान सके तो जाने मन,

कैसे-अपने होते है?

पग-पग  संग निभाए जो,

साथी अपने होते है।।

छोड़ सके न अहं जब तक,

तब मन बसता सवार्थ है।

छोड़ सके उसको जग में,

जीवन बनता यथार्थ है।।

रो न ओ रे मन बावरे,

जो छोड़े संग साथ है।

मिले जीवन पथ पर यहाँ,

जहाँ अपनत्व का साथ है।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःः           

 

कविता:-

      *"फिर तुम याद आये"*

"जीवन में संग चले थे कभी,

यादो के झरोखो से-

फिर तुम याद आये।

बहुत दूर हो तुम हमसे,

कभी मिल न पाओगें-

फिर तुम याद आये।

साया बन संग चले जो,

कभी जीवन में-

फिर तुम याद आये।

यादो के साये गहराने लगे,

भूले थे तुमको-

फिर तुम याद आये।

मिले न जीवन में तुम,

मिलने की आस में-

फिर तुम याद आये।

सपने तो सपने है-साथी,

उसमें भी-

फिर तुम याद आये।।"

ःःःःःःःःःःःःःःः

 

 कविता:-

     *"मेल मिलाप"*

"मेल मिलाप तो अच्छा साथी,

जीवन में अब-

मिलने से डर लगता है।

दूर रह कर ही हम तो साथी,

कर लेगे सब्र-

तुम रहो आबाद दिल कहता है।

महामारी का देख प्रकोप साथी,

क्या-मेल-मिलाप में रखा-

सुरक्षित रहो मन यही दुआ करता है।

स्वस्थ हम रहे-तुम रहो साथी,

मिलेगे मिलने के मौके बहुत-

मन यही कहता है।

मेल-मिलाप तो अच्छा साथी,

जीवन में अब-

मिलने से डर लगता है।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 

 

कविता:-

*"क्या-पाया फिर साथ में?"*

"साथ निभाया साथी तुमने,

क्या-पाया फिर साथ में?

झूठ फ़रेब संग साथी फिर,

खोया जीवन विवाद में।।

बहक रहे यहाँ कदम साथी,

कौन-चलता फिर साथ में?

सत्य-पथ चल साथी यहाँ,

क्या-पाया सौगात में?

छूट गये वो संगी साथी,

यहाँ चले संग- साथ में।

साथ निभाया साथी तुमने,

क्या-पाया फिर साथ में?"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःः         

सुनील कुमार गुप्ता

S/0श्री बी.आर.गुप्ता

3/1355-सी ,नयू भगत सिंह कालोनी, 

बाजोरिया मार्ग, सहारनपुर-247001(उ.प्र.)

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