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Friday, May 22, 2020

व्यंग्य - बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना

   हमारे एक मित्र बचपन से ही बाराती बनने के शोैकीन  रहे हैं। कस्बे में शायद ही कोई ऐसा शादी शुदा  बचा होगा जिसके विवाह  में उन्होंने नागिन डांस न किया हो या दूल्हे के घोड़े से लेकर दूल्हे के ससुर तक को गाइड न किया हो। जैसे आजकल फिल्मों में एक आयटम गर्ल होती हेै ऐसे ही  वे हर बारात की इसेंशियल आयटम थे। लोग उन्हें इस लिए भी बाराती बना देते थे ताकि बारात का लंबे से लंबा रास्ता आराम से कट जाए। कइयों ने उनका सीक्रेट नाम चाचा रौेनकी राम रख दिया था जो उनको खुद नहीं मालूम था। 

     हर परिवार से जबरदस्ती आत्मीयता दिखाने के कारण उन्हें सबसे पहले गुलाबी पगड़ी से सजा कर हलवाई के पास बिठा दिया जाता था और दोनों का टाइम अच्छा पास हो जाता था। मिलनी में भी ये जनाब सेल्फ सर्विस के अंडर , शगुन और शाल दुशाले या कंबल पकड़ने में नंबर वन रहते। नगर में यदि शादीे के एल्बम देखे जाएं तो सबसे अधिक इनका चेहरा नजर आता हैे चाहे फोटो में एक आंख ही कयों न दिख रही हो।

   इस कस्बे से  अक्सर बारातें आस पास ही जाती थी। लेकिन यह पहला मौका था कि इस बार  लव मैरिज के कारण एक बारात को 8 राज्य पार करके जाना था । हिमाचल से बंगाल। बारात ट्रेन से पहुंची । बाबू रामलाल ने पूरे जोश से  सोलन नंबर वन की बाटली पकड़ कर घोड़ी के आगे रितिक रोशन की तरह सड़क पर सूट पहने हुए लोट लोट कर वैसे ही डांस किया जैसा कंगना रणौत ने आप की अदालत कार्यक्रम में रजत शार्मा को बताया था। मुंह में नोट फंसा फंसा के बाजे वालों के आगे काफी उछलकूद मचा मचा कर बाराती होने का धर्म और फर्ज निभा रहे थे और नड़की वालों पर पूरा इंप्रैशन जमा रहे थे  । बाद में पता चला कि नोटों की गडड्ी लड़के के बाप से उन्होंने पहले ही झटक ली थी । माले मुफत दिले बेरहम । जब बाबू रामलाल  झकाझक सफेद सूट पहनकर जितेंद्र की तरह जंपिंग जैक बनते हुए सड़क पर बार बार गिरते तो एक सज्जन उनके सफेद कोट को कीचड़ से बचाने की कोशिश करते परंतु तब तक दूसरी टुन्न पार्टी उन्हें दोबारा लपेटे में ले लेती। एक अन्य टल्ली  जुंडली बार बार  उन्हें फिर खींच खांच कर सेंटर में ले आती ओैर उनका कोट बचाने वाले सज्जन को नाचते नाचते कार्नर पर धकेल देती। एक बाराती जिस पर मोहन मेंिकंस की पूरी की पूरी ब्रूरी ही , पूरी तरह हावी हो चुकी थी, उनसे उलझ पड़े औेर अंग्रेजी में पूछने लगे- ‘ व्हाट इज योर प्राबलम गंजे ?’ वे सज्जन बोले - डियर ये जो व्हॉइट सूट पहन कर इतनी उछल कूद मचा रहे है, ये सूट मेरा है , इस  मैरिज के लिए स्पेशियली सिलवाया था । मैं लड़के का फूफा हूं । इसने मुझ से सिर्फ एक दिन के लिए उधार मांगा था ।

खाना वाना , फोटो सेशन अभी स्टार्ट ही हुआ था कि जैसे ही जयमाला दुल्हन ने डाली , बारातियों ने फूल बरसाए, देवताओं ने आशीर्वाद दिया,  तभी उधर से आकाशवाणी हुई -  भाइयो ओर बहनों - खटाक्- 12 बजे से पूरा भारत बंद। 

 फिर सब कुछ फास्ट फारवर्ड । फेरे शेरे भी खटाक फटाक ।

  अगली सुबह बारात विदा करने के कई जुगाड़ लगाए गए। कुछ जुगाड़ू अपने अपने लिंक ओैर सोर्स आजमाते रहे परंतु वापस जनवासे में आकर पिछवाड़ा सिंकवाते रहे ओैर हाथ पैेर मलवाते रहे। नाई , हलवाई, बाई, कसाई सब हो गए हवा हवाई। दो चार रोज का मेहमान ही मेहमान होता है, इससे ज्यादा तो सब जानते हैं......।  कुछ दिन बाद बाराती घराती बन गए। अब कितने दिन मेहमनवाजी चल सकती थी ? कुछ  दिन बाद लड़की वालों ने भी हाथ खड़े कर दिए। स्कूल के एक कमरे को शरणार्थी शिविर बना दिया गया। कुद दिन कई नए नए समाज सेवक बाल्टियों में दाल और थालों  में रोटिया  लाते रहे ओैर उनके साथ फोटो खिंचवा कर ऐसे गायब हो गए जेैसे गधे के सिर से सींग।  फिर कुछ नए दानी सज्जन दूसरी पार्टी से आ गए। कुछ दिन खिंच गए। और एक दिन सभी सामाजिक संस्थाओं, दानी सज्जनों, लंगर के शौकीनों , फोटो खिंचवाने वालों के धैर्य का स्टॅाक खत्म हो गया और इधर चौथा लॉक डाउन डिक्लेयर हो गया।

 सभी बारातियों की हवाइयां उड़ने लगीं । काफी प्रयासों के बाद और कई सरकारों की मदद से बारात अपने ठिकाने पर लौटी। आस्मान से गिरे तो खजूर पर लटके। सीधे 14 दिन और  कवारंटाइन हो गए। कई लोग तो दिनों की गिनती ही भूल गए कि 22 मार्च से घर पहुंचने में कितने दिन लगे? बाबू रामलाल की श्रीमती ने उन्हें पहचानने से ही  इंकार कर दिया। वे कोरोना बाबा लग रहे थे। एक ही कुर्ते पायजामें में 70 दिन काट दिए।

  अभी बाबू रामलाल नार्मल हुए ही थे कि उनके द्वार एक सज्जन  शादी का कार्ड लेकर प्रकट हो गए। बाबू रामलाल को ऐसा करंट लगा कि उन्हें बाहर से ही वापस भागने के आर्डर दे दिए। बोले ये कार्ड वार्ड अपने पास रखो। अभी  तक रोम रोम  दर्द कर रहा है। जो शगुन लेना वेना है, हम दिए देते है। पर कार्ड को उंगली तक नहीं  भी  लगाएंगे। 

  मित्र बोले- भाई  जी ! ये कार्ड है, इन्कम टैक्स का सम्मन नहीं  है, पकड़ तो लो। बाबू रामलाल कोरोना से इतने डरे हुए थे कि पत्नी को हाथ सेनेटाइज करने के बाद कार्ड पकड़ने को कहा। फिर पत्नी को आदेश दिया कि पढ़कर बताओ  बारात कहां और कब जानी है? लोकल हेै या बाहर जानी है।

    पत्नी ने लंबा चौड़ा रंग बिरंगा , कई तहों वाला कार्ड खोला ओैर पढ़ कर सुनाया-

- भेजा है प्रियवर निमंत्रण तुम्हें  विवाह में बुलाने को

हे मानस के राजहंस, दौड़ न आना खाने को........

 

मदन गुप्ता सपाटू, 458, सैक्टर 10, पंचकूला .134109

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Aksharwarta International Research Journal, March 2024 Issue