कच्चे स्लेटदार सुंदर सलोने मकान।
सांझा सुंदर कितना सुखदायी आंगन।।
धमाचौकडी मचाता वो भोला बचपन।
संग परिवार युवती नारी करती थिरकन।। चाचू दादा बोल रहा मासूम लड़कपन।
अम्मा बापू कहती थी दिल की धड़कन।। मंदिर अधुना बना खो गया वह पुरातन।
पीपल बूढ़ा खो गया मूर्ति का अद्यतन।।
यादों में चौपाल की बैठकों का सुघड़पन। संस्कृति दर्पण झलकाता हरेक युवातन।
अमृत बेला सुंदर रोटी पकाता नारीजन।
लोक गीत सुनाती प्रफुल्लित होता मन।।
सुभाषित ध्वनि सुन जाग उठा नगरजन।
मूर्छित नगर संस्कृति जगाता गीत दर्पण।
भारी घास गठरी उठाता नहीं थकता तन।
शिकन नहीं दुःख बांटता उल्लासित जन। कथा सुनाता बुढपन सुनता खुशी से जन
तैयार सहयोगके लिए होता वो लड़कपन
पनघट में सुख-दुख बांटती हर नारीजन।
ईर्ष्या द्वेष रहित सब में समाया भोलापन।
सहयोग में नहीं अखरता ये अकेलापन।
बोझ नहीं देवतारुप मानता अतिथिगण।
महान संस्कृति दर्शन कराता ग्रामीण जन
वृक्ष लगाता रक्षा करता बनाता पर्यावरण
हीरा सिंह कौशल गांव व डा महादेव सुंदरनगर मंडी हिमाचल प्रदेश
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