क्या इंसानियत - सबसे बड़ा धर्म है?
कहते है, जिंदगी में हमेशा अच्छे कर्म करो वही आपका परिचय देगी जिसकी नीति अच्छी होगी तो हमेशा उन्नति होगी कोई भी व्यक्ति किसी के पास तीन कारणों से आता है भाव से, अभाव से या प्रभाव से यदि भाव से आया है तो उसे प्रेम दो अभाव से आया है तो उसकी मदद करो और यदि प्रभाव से आया है तो प्रसन्न हो जाओ की परमात्मा ने तुम्हें इतनी क्षमता दी है, क्योंकि जब कोई दुविधा में होता तब उन्हें उन्हीं लोगों का खयाल आता है जो किसी भी संकट में उपस्थित होकर उनके अंधकारमय जीवन में प्रकाश भर देगा। किसी भी स्थिति में उस व्यक्ति का खयाल पहले मस्तिष्क में आता है।
नेत्र दृष्टि प्रदान करती है परंतु हम कहाँ क्या देख पाते है। लेकिन सब हमारे मन पर निर्भर होता है कि हम क्या सोचते है। क्या कर्म करते है उसी का ठीक फल प्राप्त होता है हा, लेकिन इस बात पर निर्भर करता है कि क्या सोचते है हमारे विचार सही है या गलत। कर्म करने में मनुष्य स्वतंत्र होता है लेकिन कर्म करने के पीछे हमारी मनशा कैसी है वह भी हमारे कर्म पर निर्भर करता है लेकिन दोष किसी और का करना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। हम ईश्वर को कोसते है कि वह हमारे साथ हमेशा गलत करता है। लेकिन क्रिया पर क्या प्रतिक्रिया होगी इसमें ईश्वर का जरूर हाथ होता है। अगर हम उदाहरण के साथ समझे तो एक चोर के हाथ में छुरी है और एक डॉक्टर के हाथ में छुरी है एक व्यक्ति चोरी करते वक्त पकड़े जाने पर छुरे से हमला करता है और एक डॉक्टर मरीज का छुरे से ऑपरेशन करता है कार्य में कोई भेद नहीं है लेकिन दोनों का कार्य करने का उद्देश्य मनशा अलग है। महत्त्वपूर्ण है हम किस कार्य को किस ढंग और कैसे करते है।
आज के बदलते आधुनिक समाज में संवेदनाएँ कहाँ रह गयी है। कहते इंसानियत और मानवता सबसे बड़ा धर्म है। लेकिन क्या यह शब्द आज के समय में लोगों के लिए मायने रखता है ?आज अपने अपनों के नहीं रहे तो परायों से क्या उम्मीद रखी जा सकती है। माँ-बाप दस बच्चों को पाल सकते है लेकिन दस बच्चे अपने एक माता-पिता को नहीं संभाल पाते। दुनिया में कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो इंसान को घिरा सके। लेकिन इंसान, इंसान द्वारा गिराया जाता है। अपनों से संबंध नहीं रहे। इंसान से बड़ा खुदगर्ज मनुष्य प्राणी और दुनिया में कोई नहीं हैं। आज मनुष्य अपने और अपने स्वार्थ के लिए जीता है,जैसे अपना स्वार्थ पूरा हुआ फिर उस व्यक्ति को पहचानने से भी इनकार कर देते है। किसी की किए अच्छाई को कभी भी याद नहीं रखा जाता। दूसरे को दुख से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, किसी के दुख को देखकर हँसने वाले बहुत मिलेंगे। इंसान की इंसानियत उसी समय खत्म हो जाती है, जब उसे दूसरों के दुख में हँसी आने लगती है। आज दुनिया चलती है तो सिर्फ अपने मतलब से जैसे अपना मतलब निकल गया वैसे पहचानने से इनकार कर देते है। भले हम आज पढ़े-लिखे हो लेकिन पेपर के पन्ना सिर्फ डिग्री नहीं होती हमारे व्यवहार से किस व्यक्ति के साथ हम कैसे पेश आते है उस पर हमारी डिग्री का पता चलता है। हम किसी के आँखों के आँसू के मोहताज न बने तो किसी के चेहरे के हँसी का मोहताज बने। किसी के आँखों में आँसू लाना बहुत आसान है लेकिन उसके परिणाम बहुत घातक होता है। क्योंकि दूसरों को दुख देने वाला व्यक्ति खुश भला कैसे रह सकता है लेकिन आज किसी की निंदा करने में लोगों को जो आनंद मिलता है वह उन्हें आनंद किसी और वस्तु में नहीं मिलेगा। हम किसी की निंदा करते थकते नहीं निंदा करते-करते हम यह भूल जाते है कि हम कितने अच्छे है हममे क्या बुराई है।
मन का खोट कुए के पानी की तरह होता है। जितना भी निकालो खत्म नहीं होता। मन में दूसरों के प्रति सिर्फ द्वेष, घृणा और तिरस्कार होता हैं। मन में सुबह से लेकर शाम तक बस यहीं चलता रहता है कि मेरा भला कैसे होगा और दूसरों का बुरा। अपने जीवन से ज्यादा दूसरों के जीवन में क्या चल रहा है यह जानने कीसबसे बड़ी उत्सुकता रहती है। दूसरों की जिंदगी से अपने जीवन को कैसे बेहतर बनाए जिससे कुछ लोगों के बीच सम्मान पा सके। लेकिन कोई कभी यह समझ नहीं पाता कि दूसरों को सम्मान देने से खुद सम्मान पाते है। आज सबसे बड़ी दुर्दशा यह है कि आदमी सड़क परतड़प-तड़प कर मरता है,लेकिन उस समय कोई उनकी मदद के लिए नहीं दौड़ता इंसान पशु से भी बत्तर होता जा रहा है क्योंकि पशुओं को एक खूटे से बाँध दिया जाए तो वह अपने आप उसी अवस्था में ढाल लेता है जबकि,मानव परिस्थितियों के मुताबिक गिरगिट की तरह रंग बदलता हैं। पशु प्राणी कभी संचय नहीं करता लेकिन मनुष्य हमेशा संचय करने में लगा रहता है। रात-दिन मेहनत करता है, लेकिन जानवर कभी भूखा पेट नहीं मरता। चेहरे पर मुखौटा लिए लगाए घूमते है व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है वह समझ नहीं आता। घाव के बिना शब्दों से गंभीर घाव दिया जाता है। जानवर जब सामने आता है तब पता चलता है कि वह हम पर हमला करेगा,लेकिन मनुष्य सामने से कैसे वार कर सकता है इसका आकलन लगाना बड़ा मुश्किल है।
जीवन में खाली पेट और खाली जेब जो सीख सिखाती है वह बात शिक्षक नहीं सीखा सकता। क्योंकि कठिन परिस्थिति में कैसे जीना और उस स्थिति से कैसे उभरना है वह समय ही बताता है। चौरासी लाख यौनियों में से मनुष्य ही धन कमाता है, लेकिन मनुष्य का पेट कभी नहीं भरता। मनुष्य अपना संपूर्ण जीवन सब कुछ पाने के लिए गवाता हैं। जीव, जन्तु, प्राणी, पशु, पक्षियों को कभी कमाते नहीं देता फिर भी जीवन में संतुष्ट रहते है। जीव कभी भूखा नहीं मरता और मनुष्य का कभी पेट नहीं भरता। अपने जीवन में जितना है उससे अधिक पाना चाहता हैं।श्रेष्ठता का भाव मनुष्य के अंदर हमेशा विद्यमान रहता हैं। बस थोड़ी सी जीत पर मनुष्य ऐसे घमंड करता है। जैसे रेस में जीतने वाले घोड़े को यह पता भी नहीं होता कि जीत वास्तव में क्या है वह तो अपने मालिक द्वारा दी गयी तकलीफ की वजह से दौड़ता है।
आज हम अपनों से ही कट रहे है, प्रकृति से हमारा संपर्क नहीं रहा बस जीवन जी रहे भाग रहे है लेकिन रुकना कहा है यही नहीं पता, घिरते को उठाना भी हम आज भूल गए है। रोज एक खोफ के साथ बीत रही है जिंदगी न जाने किस मोड पर जा रही है जिंदगी बेबस है इंसान बेबस है साँसे कितनी सस्ती हो गयी है इंसान की साँसे न जाने कल जो साथ हँस रहे थे। अब किस हाल में होंगे ये आगे।समाज में जानवरों कि प्रताड़ना, शारीरिक दुष्कर्म बढ़ते जा रहे है। हमने अपने साथ अपनी सोच को भी कैद कर लिया है। डिजिटल दुनिया में हम भी डिजिटल यानी मशीन हो गए है। मनुष्य की जान बहुत सस्ती हो गयी है। उसी प्रकार रिश्ते ही सिकुड गए है आज बाते दिल से नहीं सिर्फ दिमाग से होती है। आज हृदय का स्थान मस्तिष्क ने ली है क्योंकि आज लोग दिल से ज्यादा दिमाग का इस्तमाल कर रहे हैं।
आज हम कहने के लिए इंसान रह गए है लेकिन इंसानियत खत्म हो चुकी है जहाँ किसी का स्वार्थ समाप्त होता है वहीं से इंसानियत आरंभ हो जाती है। जीवन में किसी की मदद करना किसी के बारे में बुरा नहीं सोचना यही सच्ची मनुष्यता है। इसमें कभी स्वार्थ नहीं होता जो भी किसी के लिए कुछ किया जाता है वह दिल से किया जाता है। उसमें लेन देन नहीं होता। और जहाँ लेन-देन है वहाँ प्रेम नहीं हो सकता। जीवन में हर एक की सुनों और हर एक से कुछ न कुछ सीखो क्योंकि हर कोई सब कुछ नहीं जानता लेकिन हर एक कुछ न कुछ जरूर जानता हैं। रिश्तों की सिलाई अगर भावनाओं से हुई तो रिश्ता टूटना मुश्किल है और अगर स्वार्थ से हुई है तो टिकना मुश्किल है अगर लोग अच्छाई को कमजोरी समझते है तो वह उनकी समस्या है आपकी नहीं आप जैसे है वैसे बने रहिए। क्योंकि लोगों को अच्छाई में भी बुराइयाँ धुंडने की आदत होती है। जब तक इंसान आँखों के सामने होता है तब तक इंसान का मूल्य समझ में नहीं आता। कोई जीवन में आगे बढ़ता हुआ किसी से देखा नहीं जाता वह उस व्यक्ति को पीछे लाने के लिए तत्पर खड़ा होता हैं। न कोई किसी का हालात समझता है न जज़्बात।
पूजा सचिन धारगलकर
इडब्ल्यूएस 247, हनुमान मंदिर के पास, हाउसिंग बोर्ड रूमदामल दवर्लिम सालसेत (गोवा) -403707
No comments:
Post a Comment