Impact Factor - 7.125

Friday, May 15, 2020

लघुकथा .....  फांस.... 

ठंड अब हल्की- हल्की पडने लगी थी.कार्तिक मास के छठ पर्व की  तैयारियां जोरों से चल रही थी. सेठ मूलचंद अग्रवाल वैसे तो दान- घर्म के मामले में सबसे आगे रहते थें, लेकिन, इस साल उनके घर पर छठ पर्व नहीं हुआ था. सो दुकान बंद करके घर जाने की तैयारी कर रहे थे. तभी उनका एक बहुत पुराना  ग्राहक बजरंगी कुछ जरूरी सामान लेने उनके पास आ गया, दुकान पर आते ही बजरंगी तत्परता से सेठ मूलचंद जी से बोला.

 भाई मूलचंद जी मुझे दस किलो गुड और दो किलो 

घी दे दो.

मूलचंद जी ने सामान देते हुए बजरंगी से कहा -" अमा यार तुमको पता नहीं है कि आज छठ पर्व का पहला अर्घ्य का दिन है . कुछ पूजा- पाठ, पुण्य का काम भी करने दिया करो यार.  सामान लेना है तो थोड़ी जल्दी आया करो "

बजरंगी हंसते हुए बोला - " पूजा- पाठ और  पाप- पुण्य की बात तुम न ही करो तो ज्यादा अच्छा है सेठजी..! "

 

सेठ मूलचंद अचकचाते हुए बोले - " क्यों न करें भाई, क्या पूजा - पाठ, दान - धर्म में हम किसी से कम हैं क्या.. क्या हम हिन्दू नहीं है ?? "

 

इधर, बजरंगी भी आज सबकुछ  कह जाने के मूड में था, बोला - " हिन्दू तो हैं, लेकिन इंसान नहीं है, पिछले साल  कर्फ्यू में आपने कितने ही बेकसों की  हाय, ली थी, चीनी 20 रू किलो की जगह 35 रू किलो बेचा था. आटा रहते हुए भी आपने ब्लैक रेट पर बेचा था. कितने लोगों की बद्दुआएं ली थीं, फिर आप कौन सा पुण्य का काम कर रहे हैं."

हांलाकि, ये बात बजरंगी ने मजाक में ही मूलचंद जी से कही थी! लेकिन, ये बात मूलचंद जी के मन में किसी फांस की तरह अटक गई थी ! 

क्या बजरंगी सही कह रहा था......???

 

महेश कुमार केशरी 

C/O -श्री बालाजी स्पोर्ट्स सेंटर

मेघदूत मार्केट फुसरो

बोकारो (झारखंड) 

829144

Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal May - 2024 Issue