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Thursday, June 4, 2020

कविता     बंजारा.   (स्वरचित) 

कविता          बंजारा.   (स्वरचित) 


अनजाने रास्ते पर यकायक क्यों चल पड़ पांव।

पता है कठिन डगर नहीं मिलेगी रती भर छांव।।

मृगतृष्णा लिए घुम रहा पीछे छूट गया गांव। 

बेचारगी बैचेनी देख न जाने क्यों ठिठक जाते पांव।। 

धरा के इस छोर से उस छोर तक तूझे का ढूंढने चाव।

पथरीले पत्थरों से पग में पड़ छाले हुये घाव।।

क्रोध सी अनर्गल बातें सुन भी फूटे मधुर भाव।

अनासक्ति भाव की तामीर में बदलना है स्वभाव।। 

यायावर की जिंदगी में न जाने होगें कितने उतार चढाव। 

तेरे पाने की चाह में बन जाऊं बंजारा बने रहे सुंदर भाव।। 

 

 

हीरा सिंह कौशल गांव व डा महादेव सुंदरनगर मंडी हिमाचल प्रदेश 

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Aksharwarta International Research Journal August - 2024 Issue