Impact Factor - 7.125

Tuesday, December 10, 2019

   भूमण्डलीकरण और हिंदी कहानी  (1900-2000)                        

शोध संक्षेप:-प्रस्तुत शोधपत्र में भूमंडलीकरण के भारत में आगमन एवम् तत्कालीन साहित्य में उसके प्रवेश के माध्यम से हिंदी कहानी पर पडने वाले प्रभाव को अंकित करने का प्रयास किया गया है स उदयप्रकाश, जयनंदन, अखिलेश आदि कथाकारों की कहानियो से भूमंडलीकरण के भारत में पडने वाले प्रभाव को समझा जा सकता है स  किसी भी रचनाकार कि रचना जब अपने समय के परिवेश के साथ तादात्म स्थापित कर लेती है तब वह रचना और भी सशक्त और प्रभावी बन जाती है प्रस्तुत शोधपत्र में 1990 से 2000 के मध्य के कथा साहित्य से तत्कालीन परिवेश को जानने का प्रयास  किया गया है।
 प्रस्तावना :- भूमंडलीकरण जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है -भू यानि पृथ्वी, मण्डल  यानि समूह, करण अर्थात एकीकरण करना। इस प्रकार भूमंडलीकरण शब्द  को समझा जा सकता है। भूमंडलीकरण अंग्रेजी के ग्लोबलाईजेशन का हिंदी रूपांतरण है। कहा जाता है कि भूमंडलीकरण की संकल्पना अमेरिका ने दिया और अमेरिका कि यह शुरुआत 1990 में धीरे.धीरे भारत में प्रवेश करने लगी।
 नवम्बर 1989 से जून1991 तक राजनीतिक माहौल इतना अस्थिर रहा कि उसमे किसी आर्थिक विकास कि संभावना ही नही थी नरसिंह राव के प्रधानमंत्रीत्व काल में 1 अप्रेल 1992 को आठवीं पंचवर्षीय योजना का आरम्भ हुआ जो 1997 तक चली इस अवधि में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह द्वारा आर्थिक उदारीकरण कि नीति लागू करने के बाद भारत आर्थिक संकट से मुक्त  हुआ। आर्थिक उदारवाद कि नीति के दृडतापूर्वक पालन का देश कि अर्थव्यवस्था  पर व्यापक और सुदीर्घ प्रभाव पडा। आर्थिक उदारीकरण के साथ ही उत्तर आधुनिकता और भूमंडलीकरण का दर्शन भारत पंहुचा।
 भूमंडलीकरण की प्रक्रिया में एक देश दूसरे देश पर निर्भर हो जाते है, और लोगो के बीच नजदिकिया आ जाती है एक देश का विकास दूसरे देश के विकास से जुड जाता है। प्राचीन काल से भारत विश्व के सुदूर भागो में व्यापार करता रहा है प्राचीन काल से मसालों और इस्पात का निर्यात हो रहा है। रोम के भारत से सम्बंध थे वास्को डी गामा 1948  में कालीकट पंहुचा था उसकी इस यात्रा से पुर्तगाल को  इतना लाभ हुआ कि अन्य यूरोपीय भी भारत से व्यापार करने को आतूर हो गये।
 भूमंडलीकरण  कोई नया विचार नहीं है लगभग 2000 ई. पूर्व से 1000 ई. तक पारस्परिक क्रिया और लम्बी दूरी तक व्यापार 'सिल्ट रूट'के माध्यम से हुआ सिल्ट रूट मध्य और दक्षिण-पश्चिम एशिया में लगभग 600 किमी. तक फैला हुआ था और चीन को भारत पश्चिम एशिया और भूमंडली क्षेत्र से जोडता है।  सिल्ट रूट के साथ वस्तुओ एलोगो और विचारो चीन,भारत और यूरोप के बीच हजारो किमी. कि यात्रा की, 1000 से 1500 ई. तक मध्य एशिया में लम्बी-लम्बी यात्राओ द्वारा बैचारिक आदान प्रदान होता रहा इसी दौरान हिन्द महासागर में समुद्री ब्यवस्था को महत्व मिलास अत: यह कहना नितांत आवश्यक हो जाता है कि भूमंडलीकरण कोई नई अवधारणा नहीं है। यह भूमंडलीकरण भारत तथा अन्य देशो के बीच परस्पर शिक्षा,संस्कृति,व्यापार आदि के माध्यम से कई वर्षो पूर्व से होता चला आ रहा है। आज भारत दुनिया में 18 वा सबसे बडा निर्यातक देश बन चुका है। परन्तु अब के भूमंडलीकरण में काफ ी परिवर्तन देखने को मिलता है अब एक देश अमेरिका ही सम्पूर्ण देश पर अपना विस्तार स्थापित कर रहा है। 
 यह बार-बार याद दिलाया जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण है। जैसे-जैसे समाज में राजनीतिक बदलाव आर्थिक समस्याएं परंपरागत रुढियो का दोहन होता है यह साहित्य में भी अपना असर  डालता है। रुढियो के दोहन का परिणाम है कि आज स्त्री अपने अधिकारों के लिए खुल कर सामने आ रही है और इसी तरह साहित्य कि गोद में अनेक विमर्श उत्पन्न हो रहे है। जैसे - स्त्री विमर्श,दलित विमर्श, वृद्ध विमर्श आदि, कही न कही इन सब में भूमंडलीकरण का ही प्रभाव दिखता है। जहाँ एक ओर सम्पूर्ण भूमंडल के एकीकरण की बात हो रही है वही हम समाज में एकाकी परिवारों की संख्या को भी बडता देख रहे है। जिसकी वजह से वृद्धो के लिए वृद्धाआश्रम बनाये जा रहे है यह कैसा एकीकरण है जो विश्व को तो एक करता है परन्तु परिवारों को अनेक कर देता है। अपने स्त्रीत्व को तलासती स्त्री आज आत्मनिर्भर बनने के लिए जब प्रयास करती है तब उसकी आवाज को  दबा दिया जाता है। समाज के ठेकेदारों ने गरीब लोगो का जमकर शोषण किया इस शोषण का शिकार सबसे ज्यादा स्त्री बनती है ऐसा ही उदयप्रकाश कि कहानी 'मैगोसिल'में दिखाई पडता है। दरोगा के कहने पर विल्डर शोभा के घर उसे अपनी हवस का शिकार बनाने के लिए जाता है रमाकांत (शोभा का पहला पति) शोभा के लिए दलाल ढूढता था जिससे उसे कुछ पैसे मिल जाये और उसे शराब मिल जाये स पुलिस के दरोगा की नजर शोभा पर पड जाती है। जिसके बाद शोभा की जिंदगी नरक से भी भयावह बन गयी स्त्री के शोषण की इतनी भयावह कथा  बहुत ही कम दिखाई पडती है। शोभा के साथ हुआ दुव्र्यवहार  उपभोक्तावादी संस्कृति का चरम रूप है जहाँ स्त्री भी एक उपभोग की वस्तु रह गयी है। 
 उपभोक्तावादी संस्कृति  का एक भयावह रूप 'अखिलेश' कि कहानी 'यक्षगान' में भी देखने को मिलता है सरोज कहानी की नायिका है। 'सरोज जिस दिन पैदा हुई थी विस्नुदत्त पाण्डेय ने चार बीघे खेत का मुकदमा जीता था उसी के हफ्ते भर बाद उनकी पुरानी गठीया की  वीमारी में फायदा होना शुरू हुआ था और जब साल भर के भीतर ही गाय ने बछडा जना तब उनको लगा था कि सरोज बेटी भाग्योदय बनकर आयी है। उसी सरोज को गाँव के ही लडके छैलबिहारी से प्रेम हो जाता है और सरोज उसके साथ भाग जाती है। अर्धसामंती पूजीवादी समाज में जिस प्रकार मजदूर, किसान,शोषक शक्तियों के झांसे में आकर उन्ही को अपना उद्धारकर्ता मान लेते है,उसी प्रकार सरोज छैल बिहारी को अपना मुक्ति दाता मानकर प्रेम कर बैठी, एक दिन छैलबिहारी अपनी नौकरी के चलते अध्यक्ष को सरोज से मनमानी करने देता है लाचार सरोज जब उसके सामने गिडगिडाती है तो उसका पति छैलबिहारी कहता है 'तुमने तो देखी थी न नौटंकी द्रोपदी के पांच पति थे कि नहीं..... फिर तुम्हारे तो चार ही होंगे। दूसरे जब राजा दशरथ की तीन रानियाँ थी तो तुम्हारे चार पति क्यू नहीं?... यही समझ लो कि अध्यक्ष जी तुम्हारे सबसे बडे पति है। 'भूमंडलीकरण जहाँ एक ओर एक देश से दूसरे देश की संस्कृति को अपनाने पर बल देता है वही इस कहानी में छैलबिहारी अपने देश कि परम्पराओ को ताक पर रखता नजर आता है।' तू अनायास ताव खा रही है छैलबिहारी ने उसे शांत करने का एक और प्रयत्न किया। 'कुंती ने नहीं सूर्य से सम्बंध बनाया था?... अहिल्या को नहीं इंद्र ने हासिल किया था?... फिर सबसे बडी बात तुम्हारा तो पति तुम्हे ऐसा करने कि आज्ञा दे रहा है....'
भूमंडलीकरण के कारण समाज का दोहन हुआ है और होता ही जा रहा है। युवा पीढी पर उपभोक्तावादी समाज और बाजार वाद का विशेष प्रभाव पडा है। भूमंडलीकरण के द्वारा नैतिकता  और मर्यादाऐं टूट रही है डॉ.अमरनाथ भूमंडलीकरणके विषय में कहते है-'अपराधो में बृद्धि,मनोरंजन के व्यापार में शो बिजनेस के साथ-साथ मुक्त यौनाचार,उद्धाम संगीत और अश्लील साहित्य का हमारे यहाँ भी उद्योग बन चूका है। दूर दराज के उन क्षेत्रो में जहाँ लोगो को साफ पेय जल और सडके व अन्य मौलिक सुविधाये उपलब्ध नहीं है टी.वी. कि पहुँच के कारण लोग काल्पनिक दुनिया व यथार्थ में फ र्क करना भूल चुके है। जहाँ सिर्फ स्वार्थ लाभ और भ्रष्टाचार का ही घिनौना रूप दिखाई देता है। जिस समाज में पति ही पत्नी के लिए दलाल ढूंढ रहा हो उस समाज कि संस्कृति किस ओर जा रही है? भूमंडलीकरण ने सिर्फ हमारी संस्कृति पर ही प्रभाव नहीं डाला अपितु हमारी भाषा, जीवन पद्धति और खानपान पर भी बुरा असर डालना शुरु कर दिया है। भूमंडलीकरण के कारण पूंजीपतियों का बर्चस्व और मजदूरो कि दयनीय स्थिति का एक रूप हम 'जयनंदन' कि कहानी 'पानी बिच मीन पियासी' में देखने को मिलता है। आर्थिक उदारवाद कि नीति के फलस्वरूप पूंजीपति कि मनमानी के प्रति आक्रोश और मजदूरो कि छटनी के लिए विरोध का चित्रण किया गया है। भूमंडलीकरण  का स्वागत करने वाला उदारीकरण किसानो तथा ग्रामीण समाज पर सीधा एव बुरा असर डालता है। भूमंडलीकरण कि प्रक्रिया स्वरूप कृषि को अन्तर्राष्ट्रीयबाजार में सम्मिलित किये जाने के कारण किसानो और ग्रामीण जीवन पर सीधा प्रभाव पडा है। कृषि के भूमंडलीकरण का एक अन्य तथा अधिक प्रचलित पक्ष बहुराष्ट्रीय कंपनियों का इस क्षेत्र में कृषि मदों जैसे बीज,कीटनाशक तथा खाद के विक्रेता के रूप में प्रवेश हुआ। खेती का न होना तथा कुछ मामलो में उचित आधार अथवा बाजार मूल्य के आभाव के कारण किसान कर्ज का बोझ उठाने अथवा अपने परिवारों को चलाने में असमर्थ हो जाते है। किसानो कि कुछ ऐसी ही समस्या का चित्रण करती है,'जयनंदन'कि कहानी'छोटा किसान'यह उदारीकरण कि नीति का परिणाम है कि आज पुराने ढंग कि खेती में कोई बरकत नहीं रह गयी है। किसान यदि खाद बीज पानी और कीटनाशको के लिए महाजनों से कर्ज लेते है तो उसे चुका नहीं पाते और उन्हें अपनी जमीन रेहन रखनी या बेचनी पड जाती है।'दादू महतो ने तय कर लिया कि अब वे बेटो के पास शहर  चले जायेंगे अपने बडकू को उन्होंने बुलवा लिया पूरा गावं यह जानकर सन्न रह गया कि जिस आदमी को अपनी घूर जमीन बेचने में भी खून सुखने लगता था स आज वह अपनी पूरी घर-जमीन बेचने का एलान कर रहा है।'
 निष्कर्ष:-भूमंडलीकरण के दौर में सभी अपनी-अपनी दुकानदारी और दलाली में व्यस्त है, मानवीय मूल्य और नैतिकता तार-तार होती नजर आ रही है, मानव मूल्यों का स्थान बाजार मूल्यों ने ले लिया है सम्पूर्ण संसार एक संवेदनाहीन वस्तु कि तरह हो गया है जो बिकने तथा बेचने को तत्पर प्रतीत हो रहा है। मनुष्य अपनी पहचान खोता जा रहा है ऐसे में साहित्यकार अपने साहित्य में संवेदना और मूल्यों को जीवित रखने की कोशिश कर रहे है। विश्व बाजार वाद ने जिन समस्यायों को जन्म दिया साहित्यकार उन समस्यायों के निष्कर्ष भी प्रस्तुत करता है स भूमंडलीकरण के दौर में साहित्यकार की सामाजिक जिम्मेदारिया और भी बड जाती है हमें याद है कि आजादी कि लडाई में हमारे कवियों ने अपनी-अपनी कविता से क्रांतिकारी वीरो में  चेतना भर दी, उसी प्रकार आज भी साहित्यकार  समय-समय पर भूमंडलीकरण के दुष्प्रभाव से चेताते रहेंगे, युग का बदलाव चेतना के बदलाव का कारक बनता है और युगीन चेतना तथा उससे प्रभावित विचार धारा मानवीय जीवन के सभी क्षेत्रो व्यावहार और चिंतन को प्रभावित करती है।


सन्दर्भ सूची :-
01. द्धह्लह्लश्चह्य://4शह्वह्लह्व.ड्ढद्ग/1द्घ३र्०ं७१६रुष्रू  02. मैंगोसिल कहानी संग्रह एउदयप्रकाश 
03. द्धह्लह्लश्च://222द्धद्बठ्ठस्रद्बह्यड्डद्वड्ड4..ष्शद्व/
 ष्शठ्ठह्लद्गठ्ठह्ल/९२३७/१/यक्षगान अखिलेश 
04. हिंदी आलोचना की पारिभाषिक शब्दावली,डॉ. अमरनाथ    राजकमल प्रकाशन 
05. पानी बिच मीन पियासी,कहानी,जयनंदन 
06. छोटा किसान कहानी संग्रह,जयनंदन


Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal May - 2024 Issue