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Tuesday, December 10, 2019

मिथिलेश्वर की कहानियों में स्त्रियों की दशा      

 प्राचीन काल में स्त्रियों की स्थिति सुदृढ़ थी, परिवार तथा समाज में उन्हें सम्मान प्राप्त था। उसे  देवी सहधर्मिणी, अद्र्धांगिनी माना जाता था। कोई भी धार्मिक अनुष्ठान होता तो पुरुषों के बराबर स्त्रियों की भी सहभागिता रहती थी। यद्यपि उस समय भी अरून्धती लोपामुद्रा और अनुसूया आदि नारियाँ देवी रूप में प्रतिष्ठित थीं।
 मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति मेें अधिक गिरावट आयी और महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया तथा बहुत सारी कुप्रथाओं ने अपना पाँव पसार लिया। जैसे - शिक्षा से वंचित कर दिया, पर्दा प्रथा, सती प्रथा, बाल विवाह जैसी वीभत्स प्रथाओं ने स्त्रियों की मन:स्थिति को झकझोर कर रख दिया। इसके बावजूद स्त्रियों ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती हुई दिखाई पड़ती है। आज भारतीय समाज में स्त्री अपने अपराजेय जीवन शक्ति के बल पर सदियों के बंधन तोड़कर प्रगति के पथ पर अग्रसर हो रही है और बहुत से सम्मानित पदों को सुशोभित कर रही है, लेकिन कुछ क्षेत्रों में स्त्रियों की दशा में बहुत परिवर्तन दिखलाई नही ंपड़ता। यहाँ हमें स्त्रियों की समानता का झूठा व्यवहार ही समझ आता है। स्त्रियों की मन:स्थिति का उनके पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक दशा का सही ज्ञान मिथिलेश्वर की कहानियों में दिखाई पड़ता है। मिथिलेश्वर बिहार के ग्रामीण परिवेश के कहानीकार हैं, इसी कारण से इन्होंने अपने कहानी के माध्यम से ग्रामीण परिवेश में लम्बे-लम्बे घूँघट काढ़कर घर की चहारदीवारी में घुटने वाली स्त्रियों को साहित्य के केन्द्र में लाने का सफल प्रयास किया है। मिथिलेश्वर की रचनाओं में हाशिए पर जीने वाली भारतीय ग्रामीण स्त्रियों का यथार्थ चित्र दिखाई पड़ता है। इनके नारी पात्रों में संघर्ष करती हुई, सुनयना, राधिया नरेश बहू, बुधनी सावित्री दीदी, झुनिया इत्यादि दिखाई पड़ती हैं। स्त्रियों का अनेक कारणों से सदियों से शोषण और उत्पीडऩ का शिकार होती रही हैं। ऐसी कुछ कहानियाँ - सावित्री दीदी, थोड़ी देर बाद तिरिया जन्म, रात शांता नाम की एक लड़की और संगीता बनर्जी में स्त्रियों के शोषण और उत्पीडऩ का यथार्थ चित्र उकेरा गया है।
 मिथिलेश्वर जैसे गंभीर सूक्ष्मदर्शी और अन्तर्दृष्टि सम्पन्न लेखकर स्त्रियों की दशा और उनके टूटते हुए सपनों को अनुमानित कर समाज के समक्ष चुनौती के रूप में प्रस्तुत करते हैं।
 'थोड़ी देर बादÓ कहानी में कॉलेज की फीस न दे पाने वाली लड़की की मजबूरी का फायदा उसका सहपाठी अमीर लड़का उठाता है। सहयोग का आश्वासन देकर होटल में उसके साथ दुव्र्यवहार करता है, जब लड़की को गलती का एहसास होता है तो वह ''काँपती हुई आवाज में कहती है यह क्या हो गया? लड़का समझाता है, आप बेकार घबरा रही हैं। आज के युग में यह सब वर्जित नहीं।ÓÓ1 विवशता की यही मनोदशा 'गाँव का मधेसरÓ कहानी में देखने को मिलता है, जब राधिया का बाप उसको हम उम्र के हाथ बेचता है तो राधिया को घर से भागने के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं सूझता।
 दहेज का भयंकर अभिशाप शहरों की अपेक्षा गाँवों में अधिक प्रलयकारी रूप धारण कर चुका है। दहेज की भयावह स्थिति ने लड़कियों के जीवन को बद से बदतर बना दिया है। भारत सरकार का दहेज निरोधक कानून जैसे केवल कानून बनकर रह गया हो, दहेज उत्पीडऩ से आये दिन स्त्रियों की हत्या हो रही है। मिथिलेश्वर की कहानी 'जमुनीÓ में बेटी रतिया के विवाह में कर्ज लेकर बाप जिउत और उसका भाई सरभू मालिक के पास वर्षों तक बनिहार और चरवाह बने रहते हैं फिर जमुनी भैंस का दूध बेचकर कर्ज से मुक्त होते हैं। रतिया के गौने के अवसर पर पाहुन और गवनहारी को भरपेट खिलाकर बक्सा ट्रंक, झापी-झपोला, पलंग पोशाक आदि से भरी दो बैलगाडिय़ाँ एक चितकबरी गाय दहेज स्वरूप भेजी गईं। 'सावित्री दीदीÓ कहानी में दहेज का एक भयावह रूप सामने आता है कि दहेज के कारण सावित्री को आत्महत्या करनी पड़ती है, लड़की होने की सजा उसे जान देकर चुकानी पड़ी। सावित्री की माँ आए दिन उसको गालियाँ देते हुए कहती है, 'मर जाना चाहिए इस कुलक्षणी को इसका भर्तार ही नहीं है इस दुनिया में बाप-भाई इसके चलते दरवाजे-दरवाजे मारे फिर रहे हैं। इसे जहर खा लेना चाहिए, जीकर क्या करेगी यह हरामजादी, जब बाप-भाई को कंगाल बना देगी हे भगवान ! तू इसे उठा ले तीनों कुल तर जायेंगे।ÓÓ2 इस कहानी में लेखक द्वारा यह चित्रित किया गया है कि ठीक ढ़ंग से चलने वाले घरों के लड़कों के अभिभावक शोषक हो गए हैं और शोषित बेचारी लड़कियाँ हो रही हैं। 'तिरिया जनमÓ कहानी में मिथिलेश्वर बहुत मार्मिक और तार्किक ढ़ंग से अपने विचार प्रकट किये हैं तथा दहेज की समस्या पर चोट करते हुए बताते हैं कि सुनयना के शादी के समय घर वाले वर खरीदने में सस्ता ढ़ूँढ़ रहे थे, लेकिन भाइयों के समय स्थिति विपरीत थी। खूब मोलभाव किया जा रहा था। इस भारतीय समाज में विशेषकर गाँवों में लड़की और लड़कों में भेद क्यों किया जाता है? लड़कियों को बोझ माना जाता है। सुनयना को याद है, ''उसके बाबा कहा करते थे कि शास्त्र में भी लिखा है कि पुत्री के जन्म होने पर धरती एक बिस्वा नीचे धँस जाती है और पुत्र के जन्म होने पर एक बिस्वा ऊपर उठ जाती है।ÓÓ3 इसी कहानी में मिथिलेश्वर यह बताने का प्रयास करते हैं कि समाज में पुरुषों का कितना अधिक वर्चस्व है कि स्त्री को सही होने पर भी उसे गलत ठहराते हैं। सुनयना को जब संतान नहीं होती तो वह अपना और अपने पति का डॉक्टर से जाँच कराती है। रिपोर्ट में सुनयना शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ है। कमी उसके पति में है, लेकिन उसका पति सुनयना को लताड़ लगाते हुए कहता है कि ''साली ने डॉक्टर के पास ले जाकर बेइज्जत किया, साला डॉक्टर क्या कहेगा? भला मर्द में दोष होता है, बाँझ तो औरतें होती हैं।ÓÓ4 अर्थात पुरुष शारीरिक रूप से असमर्थ होते हुए भी समक्ष है और स्त्री पूर्ण रूप से सक्षम होते हुए भी असक्षम हैं।
 नारी जीवन की विभीषिकाओं में बलात्कार सबसे निकृष्ट कृत्य माना जा सकता है। समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, समाचार चैनलों आदि कई माध्यमों से प्राप्त सूचनाओं के मुताबिक भारत में बलात्कार की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है। मिथिलेश्वर ने 'चर्चाओं से परेÓ कहानी में सरना की पत्नी की वेदना को व्यक्त किया है, जो गाँव के बाबुओं, पहाड़ी ढलान पर चोर और शहर जाकर कई अन्य बाबुओं द्वारा इतनी बार बलाकृत्य होती है कि अन्तत: शारीरिक बीमारी के कारण उसका सुंदर शरीर कुत्सित और जीर्ण हो जाता है। इसी प्रकार 'भोर होने से पहलेÓ कहानी में गरीब नौकरानी बुधनी को उसके मालिक के बेटे बलात्कार करते हैं और घर के बड़े मालिक रविकांत अपना दुख प्रकट करते हुए कहते हैं कि ''इन छोकरों ने हमें कहीं का रहने नहीं दिया। अब हम गाँव में कौन-सा मुँह दिखायेंगे। बुधनी का क्या होगा?5 'रातÓ कहानी में बनिहार की मृत्यु के बाद उसकी बेटी झुनिया को बाबू जोगिन्दर सिंह और उसके यार-दोस्त सामूहिक बलात्कार करते हैं।
 ग्रामीण समाज के पत्नी को सम्पत्ति समझा जाता है। पुरुष-स्त्री को वस्तु की भाँति भोग करता है। पति के पत्नी पर अत्याचार करने पर भी पत्नी उसका सम्मान करती है। 'तिरिया जनमÓ कहानी की ''सुनयनाÓÓ को भी अपने मायके की कुछ बहुओं की याद आती है। उसने देखा था मर्द निर्दयता से उन्हें पीटते हैं, लेकिन मर्द द्वारा पीटे जाने के कुछ देर बाद वे मर्द के पास जाकर तेल मलने लगती थी, पीटे जाने के प्रति कोई रोष नहीं।6 'नरेश बहूÓ एक ऐसी औरत की कहानी है, जो अपने सासू और पति के अत्याचार के कारण अपना गाँव छोड़कर दूसरे गाँव में शरण लेती है और वहाँ उसकी रक्षा अवश्य होती है, लेकिन सुरेन्दर और लहठन चौधरी जैस मनचले कामुक शोहदों से उसकी रक्षा करने में असमर्थ रहते हैं।
 ग्रामीण परिवेश में बाँझ औरत के जीवन को कष्टमय और लांछित बना दिया जाता है। 'तिरिया जनमÓ कहानी सुनयना के विवाह के कई वर्षों के बाद जब संतान नहीं हुई तो बाँझ करार दे दिया गया, लेकिन जब डॉक्टर से जाँच करायी तो कमी उसके पति में ही मिली। इसके बावजूद भी उसका पति दूसरी शादी करता है। ''सुनयना को अजीब लगता है। पति बच्चा पैदा करने में अक्षम है, फिर भी दूसरी पत्नी उतारने की तैयारी में लगा है। औरतें कितनी सस्ती हो गईं। यह कैसा ग्रामीण समाज है, जहाँ पुरुषों पर दोष विचार ही नहीं किया जाता।7
 लेखक स्पष्ट करते हैं कि चिकित्सीय उपचारों से अज्ञान ग्रामीण स्त्रियाँ अपने बाँझपन से मुक्ति के लिए ओझा-गुनियों के चक्कर लगाती है, झाड़-फूक, जादू-टोना, बलि और मनौतियों के दलदल में धसती जाती हैं। ओझाओं के  दोगलेपन को उन्होंने 'अजगर करने न चाकरीÓ कहानी में उजागर किया है। तिवारीडीह के देवधाम में आयोजित तिरिया मेले का वर्णन करते हुए बताते हैं कि इस मेले में संतान की आस में रात-रात तक पड़ी रहने वाली औरतों के साथ पास के खेतों में ओझाओं और मुस्तंडों द्वारा संभोग क्रिया को अंजाम दिया जाता है। पति की शारीरिक कमी की अस्वीकृति मिलने पर संतान प्राप्ति का सारा दायित्व पत्नी के माथे पर मढऩे वाले समाज में बेवस पत्नियाँ पर पुरुषों के साथ धार्मिक आड़ में अनैतिक शारीरिक संबंध बनाकर बाँझपन के कलंक से मुक्ति का प्रयास करती हैं। इन संवेदनशील प्रसंगों को मिथिलेश्वर की लेखकीय ईमानदारी व सजग दृष्टिकोण ने निर्भीक अभिव्यक्ति दी है। मिथिलेश्वर जैसे समाजधर्मी कलमकार केवल सामाजिक समस्याओं का कच्चा चि_ा प्रस्तुत कर अपने कर्तव्य का पूर्ण निर्वहन ही नहीं समझते, बल्कि कई अन्य रचनाओं में नारी की मुक्ति का स्वर बुलंद करते हैं। स्त्री की दशा का यथार्थ चित्रण करते हैं। 'रास्तेÓ कहानी में प्रोफेसर शरण के माध्यम से लेखक का दृष्टिकोण पाठकों को प्रेरित करता हैं ''इस देष में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों के आत्मनिर्भर होने की ज्यादा जरूरत है। तभी वे नारी होने की नियति और विडम्बना से मुक्त हो सकती हैं।ÓÓ8
संदर्भ सूची :-
1. मिथिलेश्वर, मिथिलेश्वर की प्रतिनिधि कहानियाँ 'थोड़ी देर बादÓ,  प्रथम संस्करण, राजकमल प्रकाशन, नईदिल्ली, 1989, पृ. 146
2. मिथिलेश्वर, मिथिलेश्वर की प्रतिनिधि कहानियाँ 'सावित्री दीदीÓ,  प्रथम संस्करण, राजकमल प्रकाशन, नईदिल्ली, 1989, पृ. 136
3. मिथिलेश्वर, मिथिलेश्वर की प्रतिनिधि कहानियाँ 'तिरिया जनमÓ,  प्रथम संस्करण, राजकमल प्रकाशन, नईदिल्ली, 1989, पृ. 67
4. वही, पृ. 77
5. मिथिलेश्वर एक और मृत्युंजय, 'भोर होने से पहलेÓ, दूसरा   संस्करण, लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद, 2016, पृ. 39
6. मिथिलेश्वर, मिथिलेश्वर की प्रतिनिधि कहानियाँ 'तिरिया जनमÓ,  प्रथम संस्करण, राजकमल प्रकाशन, नईदिल्ली, 1989, पृ. 74
7. वही, पृ. 78
8. मिथिलेश्वर भोर होने से पहले कहानी संग्रह 'रास्ते, प्रथम   संस्करण, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, दिल्ली, 1994, पृ. 108


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Aksharwarta International Research Journal May - 2024 Issue