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कथ्य, शिल्प और शैली का समन्वय होती हैं लघुकथाएं और इनका वैचारिक प्रभाव सूक्ष्म परमाणु विस्फोट की तरह होता है, उक्त कथन था लघुकथा शोध केंद्र द्वारा मानस भवन में आयोजित लघुकथा गॉष्ठी में साहित्यकार् श्री घनश्याम सक्सेना का। वे मुख्य अतिथि के तौर पर बोल रहे थे। कॉर्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री बटुक चतुर्वेदी ने की। उन्होंने अपनी प्रथम लघुकथा "बड़ा आदमी और आफू" का पाठ किया। मुख्य समीक्षक श्री युगेश शर्मा जी ने कहा कि लघुकथा का संदेश एकदम स्पष्ट्र होना चाहिए। श्री अशोक निर्मल ने कहा कि गोष्ठी की इस विशेषता ने मुझे प्रभावित किया कि यहां लघुकथा पाठक बड़े मनोयोग से, बगैर बुरा माने स्वयं की आलोचना सुनता है,
गोष्ठी का प्रारंभ सुनीता प्रकाश ने अपनी लघुकथा 'तिरंगा' का पाठ करके किया उनकी समीक्षा मृदुल त्यागी और सतीश श्रीवास्तव ने की। घनश्याम मैंथिल अमृत की लघुकथा अपने-अपने झंडे की समीक्षा करते हुए गोकुल सोनी ने कहा कि सब अपने रंग के झंडे का गुणगान करने में लगे हुए हैं कोई भगवा झंडे की पैरवी करता है तो कोई हरे झंडे की, इन सब में हमारा तिरंगा और हमारा हिंदुस्तान कहां है। इसकी सुन्दर मनोवैज्ञानिक समीक्षा विनोद जैन ने की। महिमा वर्मा ने लघुकथा 'कुछ अनकहा' का पाठ किया। किरण खोड़के और अशोक मनमानी ने इनकी समीक्षा करते हुए कहा कि पति पत्नी को एक दूसरे की पसंद और नापसंद जानते हुए संबंधों में सामंजस्य बैठाना चाहिए। डा गिरिजेश सक्सेना की लघुकथा 'जैसे को तैसा' की समीक्षा में रंजना शर्मा एवं घनश्याम मैथिल ने बताया कि समाज में रहे हैं तलाक की घटनाओं का इलाज करती है यह लघुकथा।
श्री एस के दीवान ने 'मदद' लघुकथा का पाठ किया जिसकी समीक्षा सतीश श्रीवास्तव एवं अशोक धमैनियाँ ने की। मधुलिका सक्सेना की लघुकथा 'जस जस भीगे कामरी' की समीक्षा मालती वसंत और सुनीता मिश्रा ने की और बताया कि शादी की वर्षगांठ पर गुलाब का फूल देकर प्रेम की अभिव्यक्ति संबंधों में ताजगी देता है।
कार्यक्रम का सफल संचालन श्रीमती जया आर्य ने किया। श्रीमती कान्ता राय ने दिल्ली, लखनऊ, इकाई की सक्रियता की प्रशंसा करते हुए, नई खण्डवा इकाई की स्थापना की जानकारी दी। जया आर्य, सभी अतिथियों एवम सदस्यों ने इस उपलब्धि हेतु उनका स्वागत किया।
अंत में सतीश श्रीवास्तव ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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