Impact Factor - 7.125

Saturday, February 15, 2020

कविता

कविता:-

        *"रोटी"*

"सुख संग मिले रोटी साथी,

जग में वो तो -

बड़ा हैं भाग्यवान।

सुख नहीं मिलता जहाँ रोटी में,

भागयहीन हैं वो तो-

कितना-चाहे हो वो धनवान।

रोटी तो रोटी हैं साथी,

जीवन में कभी-

करना न अपमान।

मिल बाँटकर खाये जो रोटी,

जीवन मे पग पग पर-

मिलता उसे सम्मान।

जो गृहणी पहली रोटी गाय को,

अंतिम रोटी दे कुत्ते को-

अन्नपूर्णा कहलाती पाती सबमें मान।

सुख संग मिले रोटी साथी,

जग में वो तो-

बड़ा हैं भाग्यवान।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःः   

 

कविता:-

           *"जीवन"*

"निष्कंटक होता जीवन सारा,

मिलता जो प्रभु का सहारा।

सत्य-पथ चल कर साथी-साथी,

कभी न कोई मन से हारा।।

सुख की चाहत में पल पल साथी,

क्यों- भटका ये मन बेचारा?

मिटती भटकन तन-मन की साथी,

साथी-साथी बने सहारा।।

मंझधार में डूबी जीवन नैया,

मिलता नहीं उसको किनारा।

त्यागमय होता जीवन साथी,

मिलता अपनो का सहारा।।

मैं-ही-मैं संग जीवन पग पग,

बनता अहंकार का निवाला।

त्यागे मैं जीवन का साथी,

बनता अपनो का सहारा।।

अपनो के लिए जीते जो साथी,

उनका सुख होता तुम्हारा।

निष्कंटक होता जीवन सारा,

मिलता जो प्रभु का सहारा।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः         

 

 कविता:-

        *"माँ"*

"माँ की ममता अनमोल ,

सदा करे उसका-

जीवन में सम्मान।

माँ की ममता देती जीवन में,

तरूवर सी शीतल छाँव-

हैं सुख ही सुख दु:ख का नहीं भान।

सींच नेह से इस जीवन को,

महकाती जीवन बगिया-

खिलते फूल महान।

दु:ख सह कर भी सुख देना सीखा,

माँ का देखा-

पग पग बलिदान।

मुँह का निवाला भी देती 

बच्चो को,

अन्नपूर्णा बन देती भोजन-

अतिथि को भी देती सम्मान।

माँ की ममता अनमोल ,

उसका सदा करे -

जीवन में सम्मान।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःः           

कविता:-

       *"मैं अलग होऊँगा"*

"जीवन में संग चलते चलते,

थक गया मैं-

अब मैं अलग होऊँगा।

अपने के धोखे से सहम गया हूँ,

अब न संग चलूँगा-

अब मैं अलग चलूँगा।

स्वार्थ में तुम्हारे मैं साथी ,

छोडूँगा नहीं  सत्य-पथ-

अब मैं अलग होऊँगा।

तुम संग चल उपजे जो,

विकार मन में-

छोडृ उनको मै अलग होऊँगा।

प्रेम पथ पर चलकर साथी,

पाया था तुमको-

पनपे स्वार्थ में मैं अलग होऊँगा।

जीवन में संग चलते चलते,

थक गया मैं-

अब अलग होऊँगा।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःः     

कविता;-

      *"तेरी बेक़रारी"*

"तेरी बेक़रारी का साथी,

क्या-दे सकते हम -

तुमको इसका नहीं आभास।

तुम तो अपनी थी साथी,

क्यों-नहीं रहा तुमको-

हम पर विश्वास।

मिलते रहे हम तो तुम से,

क्यों-अपनत्व का-

हुआ नहीं अहसास।

बीत गया पतझड़ जीवन का,

कयों-फिर भी बैठी उदास-

छाया हुआ हैं मधुमास।

अच्छी नहीं तेरी बेक़रारी इतनी,

क्यों -नहीं करती इन्तज़ार-

बदलेगा मौसम रखना विश्वास।

तेरी बेक़रारी का साथी,

क्या -दे सकते हम-

तुमको इसका नहीं आभास।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःः     

 

कविता:-

      *"पतझड़"*

"देखता ही रहा जीवन में,

पतझड़ संग-

पत्तो की झरन।

बेबस सोचता रहा हर पल,

कब-थमेगी साथी-

जीवन की घुटन।

प्रतीक्षा में मधुमास की,

साथी बढ़ती रही-

जीवन में कुढ़न।

बढ़ती रही पीड़ा पतझड़ की,

साथी मिला नहीं-

मधुमास का संग।

भौरो की गूँजन से साथी,

जीवन में-

मोह हुआ भंग।

चाहत में मधुमास की साथी,

हो गया जीवन में-

प्रतीक्षा का अंत।

देखता ही रहा जीवन में,

पतझड़ संग-

पत्तो की झरन।।"

ःःःःःःःःःःःःःःःःःःःः        सुनील कुमार गुप्ता

S/0श्री बी.आर.गुप्ता

3/1355-सी,न्यू भगत सिंह कालोनी,

बाजोरिया मार्ग,सहारनपुर-247001(उ.प्र.)

Aksharwarta's PDF

Aksharwarta International Research Journal May - 2024 Issue