Impact Factor - 7.125

Saturday, February 15, 2020

मेरी आवाज़ सुनो

मेरी आवाज़ सुनो

उजाले की सुनसान गलियाँ
शाम की गुलज़ार रतियॉ
घुँघरुओं और ढोलक की बतिया
बंद कपाटों कि सिसकीयॉ
रोज़ रोज़ परोसी जाती हूँ
हँसते हँसते पेश आती हूँ
खनकते सिक्कों मे तोली जाती हूँ
अंधेरी रातों के खोटे प्यार मे जलती हूँ
उजाले मे अपनी पहचान ढुंढती हूँ
श्रापित जीवन भोग रही हूँ
पल पल हर पल मर रही हूँ
आत्मा की चित्कार किसे सुनाऊँ
है कोई फ़रिश्ता जो मेरी आवाज़ सुने
रसहीन ज़िन्दगी मे स्वाद भरे
चारदीवारी से टकराती मेरी आवाज सुने
ख़ता क्या थी मेरी इस दर्दे दिल की पुकार सुने
घुटती साँसों मे ज़रा सी सुकून भर दे
ज़िन्दगी के इस दलदल को नरम दूब कर दे
क्या मजबुरी थी ए जननी तुझे
आ जाओ एक बार मेरी पहचान दे दो
कोई तो इक पता बता दो
सीने से लगा कर मेरी आवाज़ सुन लो।

सविता गुप्ता
राँची (झारखंड)