मेरी आवाज़ सुनो
उजाले की सुनसान गलियाँ
शाम की गुलज़ार रतियॉ
घुँघरुओं और ढोलक की बतिया
बंद कपाटों कि सिसकीयॉ
रोज़ रोज़ परोसी जाती हूँ
हँसते हँसते पेश आती हूँ
खनकते सिक्कों मे तोली जाती हूँ
अंधेरी रातों के खोटे प्यार मे जलती हूँ
उजाले मे अपनी पहचान ढुंढती हूँ
श्रापित जीवन भोग रही हूँ
पल पल हर पल मर रही हूँ
आत्मा की चित्कार किसे सुनाऊँ
है कोई फ़रिश्ता जो मेरी आवाज़ सुने
रसहीन ज़िन्दगी मे स्वाद भरे
चारदीवारी से टकराती मेरी आवाज सुने
ख़ता क्या थी मेरी इस दर्दे दिल की पुकार सुने
घुटती साँसों मे ज़रा सी सुकून भर दे
ज़िन्दगी के इस दलदल को नरम दूब कर दे
क्या मजबुरी थी ए जननी तुझे
आ जाओ एक बार मेरी पहचान दे दो
कोई तो इक पता बता दो
सीने से लगा कर मेरी आवाज़ सुन लो।
सविता गुप्ता
राँची (झारखंड)
(Peer Reviewed, Refereed, Indexed, Multidisciplinary, Bilingual, High Impact Factor, ISSN, RNI, MSME), Email - aksharwartajournal@gmail.com, Whatsapp/calling: +91 8989547427, Editor - Dr. Mohan Bairagi, Chief Editor - Dr. Shailendrakumar Sharma IMPACT FACTOR - 8.0
Saturday, February 15, 2020
मेरी आवाज़ सुनो
Aksharwarta's PDF
अक्षर वार्ता अंतरराष्ट्रीय अवार्ड 2024 हेतु आवेदन आमंत्रण सूचना
अक्षर वार्ता अंतरराष्ट्रीय अवार्ड 2024 हेतु आवेदन आमंत्रण सूचना नवंबर 2024, माह के अंतिम सप्ताह में स्थान, उज्जैन,मध्य प्रदेश* India's r...
-
मालवी भाषा और साहित्य : प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | पुस्तक समीक्षा: डॉ श्वेता पंड्या | मालवी भाषा एवं साहित्य के इतिहास की नई भूमिका : लोक ...
-
सारांश - भारत मेे हजारों वर्षो से जंगलो और पहाड़ी इलाको रहने वाले आदिवासियों की अपनी संस्कृति रीति-रिवाज रहन-सहन के कारण अपनी अलग ही पहचान ...
-
हिन्दी नवजागरण के अग्रदूत : भारतेन्दु हरिश्चंद्र भारतेंदु हरिश्चंद्र “निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति कौ मूल” अर्थात अपनी भाषा की प्रगति ही हर...
No comments:
Post a Comment