(1)कविता...
मजदूर -1...
अगर मजदूर न होते
दुनिया तब शायद
इतनी खुबसूरत न होती
चाहे वो बाबू साहेब के खेत हों !
जहां आज धान की बालियां
लहलहा रही हैं !
न बन पाती
दुनिया की वो तमाम
बड़ी और खूबसूरत इमारतें!
ताजमहल महल किसने
बनवाया इतिहास में जब ये
पूछा जाता है
जबाब यही होता है कि
ताजमहल शाहजहाँ
ने बनवाया!
तब, इतिहास भी जादुई झूठ
बोल जाता है!
कोई लालच नहीं है
उनके मन में
कई
बड़ी-बड़ी ,इमारतों
और दूसरों के सपनों
के आगे उनके अपने
सपने और हाथ
खुरदरे हो गए हैं !
नहीं बना पाते वो अपने
लिए कभी कोई कोठी!
क्योंकि, उनकी आंखें केवल
खुबसूरत सपने बुनना
जानती हैं
उनके सपने कभी नहीं होतें
हैं, साकार!
कभी भी उनके लिए एक
कटोरा भात से बडा़
नहीं होता है ख्वाब!!
उनकी आंखें जगती हैं
केवल, मालिक के सपनों के लिए!!
(2) कविता...
मजदूर -2......
शहर दुत्कारकर
भगा दे रहा है मजदूरों
को, जैसे किसी
कटाहे कुत्ते को लोग
अपने पास से भगा देतें हैं!
मालिक ने मुंह फेर
लिया है, मजदूरों से
जैसे उन मजदूरों से उसका
कभी कोई वास्ता ना रहा हो!
मालिक, भूल गये हैं ,
मजदूरों का कारखाने
के ऊपर किए जाने वाले
एहसान को!
कि एक बार मजदूरों ने
दंगाई - भीड को बलवा
करने से रोक लिया था !
कि उस समय दंगाइयों
के सर पर खून सवार था!
कि मालिक को याद नहीं है
कि कभी मजदूरों ने ही
बचाया था कारखाने को
भीषण- अग्नि कांड से !
कि मालिक के बदले
एक मजदूर ने अपने
ऊपर ले लिया था
धोखाधड़ी के एक
इल्जाम को! और
खटा था पूरे
छह महीने तक जेल !
कि अगर वो मजदूर
मालिक के बदले
जेल ना जाता तो
उन्हें भी खटना पडता
छह महीने का जेल !
कि आज मालिक
सबकुछ भूल गए हैं !
वे मजदूर जो जीवन
भर ओढते रहे थे मालिक
के दुखों का लबादा !
(3) कविता ---
बेआवाज़..
बस
कुछ किलोमीटर ही
शेष बची था पडाव
जब उसके पांव जबाब दे
गए और मौत ने लील लिया
उस छोटी सी बच्ची.. को !
मां-बाप उसकी
मौत पर स्तब्ध हैं.. !
अभी उसके सपनों
ने पंख खोलने शुरू किए थें
कि उसे भी उडना था उन्मुक्त
आकाश में.. !
(4) कविता ..
तकिये..
रात को सोते समय
हम रख देते हैं
अपना सर तकिये पर
और देखते हैं सपने!
तकिए, के
रूई के जैसे
मुलायम होते हैं
सपने!
नींद बुनती है खट्टे- मीठे
सपने
और
धुनिया बनाता है तकिए!
शायद, कभी धुनिया
ने सोचा हो
बनाते हुए तकिए !
कि जैसे सपने
मुलायम होते है
और नींद भी,
कि यही सोचकर
वो बनाता है रुई से
मुलायम तकिए!
नींद, सपने, और तकिए
तीनों मुलायम होते हैं!
दद्दा कभी- कभी कहते थे
कि जो ख्वाब हम अपने जीवन में
देखते हैं
लेकिन , उसे कभी पूरा नहीं
कर पाते!
इसलिए भी हमें
दिखते हैं सपने!
सपनों का होना जरूरी है!
आदमी के जिंदा होने के लिए!
(5) कविता...
चाय...
सर्दी के ठिठुरते हुए
दिनों में राहत देती है
चाय !
कई-कई बार
प्रेमी-जोडे , चाय के
बहाने भी मिलते हैं !
प्रेमसंबंधों को ऊर्जा से
भर देती है चाय!
पुरानी गलतफहमियों
को मिटाने / भूलाने
का जरिया भी
बनती है, चाय!
चाय के होने से एक
गर्माहट
का एहसास होता है!
संबंधों को भी अपनी
मिठास से भरती है
चाय!
(6) कविता...
मां के हाथ का स्वाद..
मां के हाथों से बनी चीजों
का अलग ही
स्वाद होता है!
नहीं मिल पाता
वो स्वाद अब औरों
के हाथों से!
मां को पता थी
खाने की चीजों में पडने
वाले मसालों की मात्रा
और आंच की ताप का
अंदाजा !
वो, बांट देती थी
थोडे़ से खाने को
बराबर- बराबर हिस्सों में !
उन दिनों थोडा़
सा खाकर भी मन तृप्त
हो जाता था !
बाद में कई होटलों
और रेस्टोरेंट
से मंगवाया हैं
मैने खाना
लेकिन, नहीं मिलती
उसमें वो महक ,
वो लाड, वो स्वाद!
महेश कुमार केशरी
मेघदूत मार्केट फुसरो
बोकारो झारखंड 829144
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